रविवार, 12 अगस्त 2018

84 कठिनाइयाँ - समाधान तथ्य

कर्म हो अच्छे या निकृष्ट 
परिणाम हो शुन्य या उत्कृष्ट 
होती विजय सदा तथ्य की
ना झूठ की ना सत्य की
कर्म ही धम्म है
धम्म ही धर्म है 


किसी व्यक्ति ने जब बुद्ध की ख्याति सुनी तो वह उनके दर्शन और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास गया. जैसा हम सबके जीवन में प्रायः होता है, वह किसान भी अनेक कठिनाइयों का सामना कर रहा था. उसे लगा कि बुद्ध उसे कठिनाइयों से निकलने का उपाय बता देंगे. उसने बुद्ध से कहा:
“मैं किसान हूँ. मुझे खेती करना अच्छा लगता है. लेकिन कभी वर्षा पर्याप्त नहीं होती और मेरी फसल बर्बाद हो जाती है. पिछले साल हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं था. और फिर कभी ऐसा भी होता है कि बहुत अधिक वर्षा हो जाती है और हमारी फसल को नुकसान पहुँचता है.”
बुद्ध शांतिपूर्वक उसकी बात सुनते रहे.

“मैं विवाहित हूँ”, किसान ने कहा, “मेरी पत्नी मेरा ध्यान रखती है… मैं उससे प्रेम करता हूँ. लेकिन कभी-कभी वह मुझे बहुत परेशान कर देती है. कभी मुझे लगने लगता है कि मैं उससे उकता गया हूँ”.
बुद्ध शांतिपूर्वक उसकी बात सुनते रहे.
“मेरे बच्चे भी हैं”, किसान बोला, “वे भले हैं… पर कभी-कभी वे मेरी अवज्ञा कर बैठते हैं. और कभी तो…”
किसान ऐसी ही बातें बुद्ध से कहता गया. वाकई उसके जीवन में बहुत सारी समस्याएँ थीं. अपना मन हल्का कर लेने के बाद वह चुप हो गया और प्रतीक्षा करने लगा कि बुद्ध उसे कुछ उपाय बताएँगे.
उसकी आशा के विपरीत, बुद्ध ने कहा, “मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता.”
“ये आप क्या कह रहे हैं?”, किसान ने हतप्रभ होकर कहा.
“सभी के जीवन में कठिनाइयाँ हैं”, बुद्ध ने कहा, “वास्तविकता यह है कि हम सबके जीवन में 83 कठिनाइयाँ हैं, मेरा, तुम्हारा, और यहाँ उपस्थित हर व्यक्ति का जीवन समस्याओं से ग्रस्त है. तुम इन 83 समस्याओं का कोई समाधान नहीं कर सकते. यदि तुम कठोर कर्म करो और उनमें से किन्हीं एक का उपाय कर भी लो तो उसके स्थान पर एक नयी समस्या खड़ी हो जायेगी. जीवन का कोई भरोसा नहीं है. एक दिन तुम्हारी प्रियजन चल बसेंगे, तुम भी एक दिन नहीं रहोगे. समस्याएँ सदैव बनी रहेंगीं और कोई भी उनका कुछ उपाय नहीं कर सकता.”
किसान क्रुद्ध हो गया और बोला, “सब कहते हैं कि आप महात्मा हो! मैं यहाँ इस आस में आया था कि आप मेरी कुछ सहायता करोगे! यदि आप इतनी छोटी-छोटी बातों का उपाय नहीं कर सकते तो आपकी शिक्षाएं किस काम की!?”
बुद्ध ने कहा, “मैं तुम्हारी 84वीं समस्या का समाधान कर सकता हूँ”.
“84वीं समस्या?”, किसान ने कहा, “वह क्या है?”
बुद्ध ने कहा, “यह कि तुम नहीं चाहते कि जीवन में कोई समस्या हो”.

तो आप मेरी 84 वीं समस्या ही सुलझा दें,” वह व्यक्ति पुनः विनम्र होते हुए बोला। “और ऐसा मैं कैसे करूँ?” उसने पूछा।
बुद्ध मुस्कुराए और व्यक्ति के नेत्रों में गहराई से देखने लगे, वे नेत्र जो लालसा, भ्रम, व चिंता से परिपूर्ण थे।

यदि तुम समझ लो कि जीवन कभी समस्याओं से रहित होता ही नहीं, तो वह इतना बुरा नहीं लगेगा।”
हालांकि उस व्यक्ति को अपनी आशानुसार हल नहीं मिला, तथापि बुद्ध की करुणामयी दृष्टि से उसे शांति का अनुभव हुआ, भले ही अस्थाई रूप से।
बुद्ध ने यह कहते हुए वार्ता समाप्त की – “विनम्र बनो, उद्दात बनो। जीवन को उसके उस रूप से आगे देखना सीखो जैसा ‘आप’ उसे देखना चाहते हो।”

साभार(सिद्धार्थ गौतम)
-अमित कुमार मौर्य 

शनिवार, 11 अगस्त 2018

कहानी

परिंदो की कहानी, उड़ान लिखती है
जीत की कहानी, हर हार लिखती है।

आसमान की कहानी, सितारे लिखते है
सूरज की कहानी, हर सुबह लिखती है।

अचरज की कहानी, धैर्य लिखती है
फ़तह की कहानी, कोशिशे लिखती है।

फूलो की कहानी,कलियों ने लिखी है
जंग की कहानी, गलतफहमियों ने।

विकास की कहानी, नवोन्मेष ने लिखी है
चरित्र कि कहानी, संस्कारो ने लिखी है।

खुदा की कहानी भी मैंने लिखी है
इंसान की कहानी भी मैंने लिखी है

हर दिन की कहानी भी मैंने लिखी है
हर रात की कहानी भी मैंने लिखी है 

कुछ कहानी लोगो ने सुनी है
कुछ कहानी लोगो ने बनाई है।

जब जब बात कहानी पे आयी है
याद सिर्फ मुझको मेरी ही आयी है।

कहानी तो कहानी है
जो सदियों पुरानी है।
झूठ संग पानी है
सच की ये रानी है।।

आज सुनो

आज सुनो


कर्म की आग में तुम हो
धर्म के राग में तुम हो
जन्म के उपहार में तुम हो
जीव के संहार में तुम हो
।।
 
सत्य की राह पे मैं हूँ
धर्म की चाह में मैं हूँ
 मृत्यु की पनाह में मैं हूँ
खुद के इंतज़ार में मैं हूँ
।।

 तुम शाम की बची धुप हो
मैं भोर के पहले की रात्रि हूँ
 कुछ पल में खुद को खो दोगी
मैं दिन बन जहाँ में छाऊँगा
।।
 
तुम थक चुकी अब इस पहर
मैं थकावट सब की मिटाऊंगा

न कोई गांव न बचा कोई शहर
नयी सुबह जब होगी इस पहर
।।
 
तुम अंत हो कार्य दिवस का
मैं आरम्भ हु इस जग का
 नए दिन न हो कोई उदास
उजाले से होता ये प्रयास
।।

थका वही जो रुका कही
उठा वही जो रुका नहीं
 बंधा वही जो टूटा कही
जीता वही जो हारा कही
।।

सुनो बस आज मेरी बात
फिर कह लेना सारी रात
 ना मैं कुछ कहूंगा इसके बाद
न हो पायेगी कोई मुलाकात।।।।

-Mait

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

सारे जहाँ से अच्छा

रात की छाँव में
दिन की धूप में
गीत की धुन में

शोर के मौन में
शान्ति के खौफ में
जीत की हार में

खुशियो की डोर में
जन्मो के भोर में
आतंक के दौर में

रहस्य की खोज में
कर्मो के योग में
घटनाओ के संयोग में

अनंत के अंत में
अंत के अनंत में
शीत के समर में

पर्वत के शिखर में
समुद्र के गर्त में
प्रकृति के मर्म में

सारे जहां से अच्छी 
मुस्कान है तुम्हारी

मुस्कान ही वो अंत है
जहां खुशिया अनंत है
कर्म हो कितने सख्त ही
रख मुस्कान एक दरख्त ही

बहे क्यो न रक्त ही
टूटे ध्येर्य जब कभी
कर मुस्कान अमर ही
जीत होगी तेरी ही

स्वीकार न तू हार को
साहस की बना ढाल तू
रख सहस्त्र मुस्कान तू
शत्रु न देख पाए तो

तोड़ दे भ्रम भूल सारे ग़म
उठा कदम और अपने हाथ
साहस और ध्येय के साथ
दिशाएँ सारी होंगी साथ

अस्त्र- शस्र्त्र और है गाथा  ये 
हर युद्ध की विजय शलाका है ये
सभी की एक पहचान ये
हर एक की मुस्कान ये।।।।



-Mait

समानता


समानता


ऊँच नीच और भेद भाव
शहर बड़े और छोटे गांव
हैसियत और ये हक़ीक़त
खुदा भी न हो सके सहमत

ये जमीन और आसमान
होती यदि जो घमासान
मिल भिड़े जो एक बार
मिट जाएंगे नामो निशान

समानता का नारा दे कर
करते जो तुम व्यापार
छोटो को बड़ो से और
बड़ो को छोटो से दूर

रात की चादर जो हटी
निकली जो उजली किरण
न होने पाए कोई धोखा
खत्म हो ये विविधीकरण

व्यापारी हो या कर्मचारी
न भिन्न है अब उम्मीदवारी
न होगा कोई किसी पे भारी
अब होगी दुनिया उजियारी||||

-अमित कुमार मौर्य

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...