........करनी होगी
बिगड़ी जो तबियत है
रूठी जो किस्मत है
वक़्त की जो जरूरत
हालात की मरम्मत।
वक़्त की ये ललकार
नव किरणों की बौछार
पक्षियों की चहचहकार
रात की वो करुण पुकार।
जब हार पहुंच चुकी हो द्वार पर
सेना का मनोबल हो ढलान पर
तब जो हो लड़ने को जोश भर
जीत उसी की निश्चित तौर पर।
टूटती हुई पंक्तियों से
भाव जोड़ने की
कोशिश इस हार को
जीत में बदलने की।
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