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रविवार, 24 जुलाई 2022

लक्ष्य वही है बस राह बदल गए


कुछ बाते यूँ ही लिखे गए 

विवाद यही कि क्यों न पढ़ें गए

लगता है तुम्हें किताब बदल दिए 

किताब वही हैं बस पन्ने पलट गए। 


कल न किसी ने रोटी खिलाये  

आज मौत पे उसकी नेता भी रो दिए 

खीचने फोटो लोग ये तमाम भिड़े 

गर खुलवा लेते उसके ओठ सिले 

न बुझते देश के गुमनाम दिये। 


कोई रोये कितना अंत में तो हँसे 

मुस्कान हर हाल के चेहरे में दिखे 

न किसी का किसी से दिल दुखे

आशा यही आबाद हर कोई रहे। 


थके कितना नींद सुकून की मिले 

नींद वही है बस ख्वाब बदल गए 

शब्द वही है बस विचार बदल गए 

लक्ष्य वही है बस राह बदल गए। 


-अमित 

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...