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मंगलवार, 16 अगस्त 2022

उलझन

जाएं तो जाए कैसे उस पार
बहाव पानी का बहुत तेज है
खुद को न जानना ही हार
बाकी सब तो सिर्फ जीत है
यूं तो खड़ी थी ट्रेन स्टेशन में
पहुंच न पाया ये खीझ हैं।

सुलगती रही आग कुछ
इस तरह सीने में
खुद को झुलसा दिन रात 
भिगा पसीने में
आने लगा मजा बेपरवाह 
खुशी से जीने में।

-अमित


राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...