सर को झुकाकर
तन को तुड़वाकर
साथ सबके मिलकर
मन की आवाज़ दबाकर
भाग रही भीड़ इस दंभ पर।
सोयी दुनियाँ होने भोर पर
कैसे होगी पार ये दौड़ कर
शक्ल तो है रंग उस दीवार पर
पार उसके क्या ये तो तू गौर कर
साथ अपना दे इस दुनियाँ को छोड़ कर।
समेट जरा बिखरकर
उठ जरा सा गिरकर
हो न बेचैन अब सब्र कर
अपनी धुंध का तू अंत कर
मिलेगी सफलता उसी पथ पर।
-अमित(Mait )