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शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

समेट जरा बिखरकर

सर को झुकाकर 

तन को तुड़वाकर 

साथ सबके मिलकर 

मन की आवाज़ दबाकर 

भाग रही भीड़ इस दंभ पर। 


सोयी दुनियाँ होने भोर पर 

कैसे होगी पार ये दौड़ कर 

शक्ल तो है रंग उस दीवार पर 

पार उसके क्या ये तो तू गौर कर 

साथ अपना दे इस दुनियाँ को छोड़ कर। 


समेट जरा बिखरकर 

उठ जरा सा गिरकर 

हो न बेचैन अब सब्र कर

अपनी धुंध का तू अंत कर

मिलेगी सफलता उसी पथ पर। 


          -अमित(Mait )



राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...