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बुधवार, 12 जुलाई 2023

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी 

जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे 

दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी 

देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे 

राह पकड़ मनमानी ख़ुशी क्षणिक तुम्हारी 

रास्ते अपने बदलने पे मजबूर हो जाओगे 

मंजिल मिलेगी तुम्हे ये कह नहीं सकते 

हर मोड़ पे लेकिन तुम हमें ही पाओगें 

पलटना चाहोगे जो फिर से पीछे तुम 

हर द्वार पे तुम टाला लटकता पाओगें 

जो कोशिश की साथ चलने की तो फिर 

वादा है सफर ख़त्म वही तुम पाओगे 

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

आत्मनिर्भर भारत हमारा प्रण

जिस देश की है भुजा हिमालय

सागर की लहरे सुर और लय 

गंगा नर्मदा कावेरी गोदावरी 

सींच बनाते सीने को हरी भरी 

मानसून देता प्रबल बरसात 

लद्दाख जिसके सर का ताज 


श्री राम जी जिसके आदर्श है 

श्री कृष्ण जी जिसकी पहचान 

श्री बुद्ध जी का प्रखर प्रकाश 

श्री महावीर जी सादगी के प्रमाण 

है तो अनंत महापुरुषों की कतार 

उन सभी को मेरा आत्मीय प्रणाम। 


दुनियाँ बसती थी जंगल में आचार पशु सम 

तब सिंधु घाटी में हुआ सभ्यताओ का संगम 

विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला में 

भास्कराचार्य ने बताया वर्ष के दिन कितने 

खोज शून्य बता दिया विश्व को सही आकार 

दिया प्रकृति का सन्देश आयुर्वेद से उपचार 

ध्यान, योग, विपश्यना से किया साधना पूरा 

एक विश्व - एक धर्म का किया पालन पूरा 


लक्ष्य बड़ा था संभाले रखना हमें अपना 

गौरवशाली अतीत 

समय की है खासियत यही हो अच्छा या बुरा 

जाता जरूर बीत 


दस हजार सालो में खुद ही से 

लडे हो हज़ार बार 

पर एक बार भी दूसरे देश पर 

आक्रमण न एक बार 


सिंध के राजा दाहिर ने रोका खलीफाओं को 

उड़ाई नींद चटाई धुल मुस्लिम आक्रांताओ को 

कासिम ने अंततः पायी जीत रक्तरंजित सिंध पर  

उस क्रूर का अंत कर दाहिर पुत्री ने किये प्राण अर्पण  


हो गया प्रारम्भ लूट और मार - काट का दौर 

भारत में प्रवेश मुस्लिम आततायियों का जोर 

बहने लगी रक्त की धराये हुआ बहुत अन्याय 

धीरे - धीरे भारत बना एक मुस्लिम सराय 


चित्तौड़ के राजा को मार जाहिल खिलजी 

जब किले में घुसना चाहा था 

पद्मावती ने उसके किले में आने से पहले 

अग्नि स्नान कर डाला था। 


इक्यासी किलो का भाला ले महाराणा 

क्रूर अकबर की हिम्मत को तोडा था 

छत्रपति शिवाजी ने छापामार युद्ध कर 

तनाशाह औरंगजेब को झकझोरा था 

सहनशील गुरु गोविन्द सिंह जी ने 

मुस्लिम आतंक को ललकारा था। 


अब जब जागरण हुआ शुरू सरे आम 

एक नई गुलामी की शुरुआत की दासता

अबकी बार थी व्यापार सभ्य लूट तमाम 

अंग्रेजो से लड़ना था और साथ चलना था 


सन सत्तावन में मंगल पांडे उठा सर 

जगा गया पूरा भारत संवत्सर 

लक्ष्मीबाई लड़ी अंतिम साँस तक 

आज़ाद भगत सिंह हुए बलिदान 

नहीं लिख सकता हर एक नाम 

फिर भी सबको मेरा करबद्ध प्रणाम। 


थक चूका मुस्लिमो और अंग्रेजो की गुलामी से 

सन सैतालिस में आज़ाद हुआ

26 नवंबर सन 1949 बना संविधान 

राजेंद्र प्रसाद जी की अध्यक्षता में 

लोकतंत्र बने और मजबूत सच में 

इसलिए लागु हुआ दो माह बाद ये। 


भारत की हर लड़ाई में सिर्फ मानवता ही है सर्वोपरि 

है संविधान लागू भारत पर लड़ाई है बाकि कई 

राजनीति से ऊपर उठ राष्ट्र नीति ही धर्म है 

सभी सुखी हो सभी स्वस्थ्य हो बस यही मर्म हैं। 


मंगल तक पहुंचे एक बार में हुआ विश्व चकित 

चंद्र पहुँचा दो बार वो भी स्वदेशी तकनीक पर 

इसरो के C-३७ ने १०४ उपग्रह पहुचाये एक बार में 

बनाया ये एक कीर्तिमान बना भारत का अभिमान।


विश्व शक्ति कहलाने वाले अमेरिका, फ़्रांस

और ब्रिटेन हो रहे चीनी विषाणु से बेहाल 

भारत ने सही समय पे किया सही लॉक डाउन 

शीर्ष १० ग्रसित देशो से सन २१ में  हुआ बहाल 


आत्मनिर्भर बनेगा हमारा भारत यह हमारा प्रण है 

अंतिम साँस तक भारत माँ का हम पर ऋण है 

वसुधैव कुटुंबकम की भावना हमारी प्यारी है 

दुनिया चाहे जो भी बोले अब तो अपनी बारी है। 


--अमित मौर्य 

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

तलाश

है जो रुक रही ये मेरी सांसें 

ये तो तेरी कमी का असर हैं 

खुद अब तू मिलना भी चाहें 

मिल जाना भी अब कहर हैं। 

 

प्यार न सही साथ की थी तमन्ना 

अब तो दिल टूट के चुका बिखर

दूरी ने दिल को कर दिया छन्ना 

अब तो ख़ुशी से दूर दिल बेफ़िकर। 

 

शांत वृक्ष की तलाश मिली केवल ठूठे  

पर न जाने राह में कितनो के हाथ छूटे

हर पड़ाव पर न जाने कितने हमसे रूठे 

पर मानव धर्म यही जो कर्म से ही ऊपर उठे।

सोमवार, 1 जून 2020

बदलता वक़्त

वो न गली के आखिरी घर तक गया 
न हर मोहल्ले के कोने कोने तक गया
फिर भी देखते ही देखते खौफ उसका 
हर एक के मन में इस कदर फैल गया। 

वो सड़क जिसमें हमने भी काटे थे दिन
आज दिखते लोग कुछ ही गिनती गिन
वो जिम और कैफे जहां लगता था मेला 
वहाँ जमती  रही धूल महीनो रहा अँधेरा। 

वो सड़क आज हमसे कुछ यूँ  रूठ गयी
सड़क तो रही वही पर मंजिल छूट गयी 
चलने की थी जल्दी बहुत जिस सड़क में 
आज वो सड़क सुनसान इस मौसम में। 

सिनेमा जिसमें देखी हमने कहानी बहुत
आज लगे उसमे ताले हो गया वक़्त बहुत 
गुपचुप चाट के ठेलो पे लगती थी जो भीड़ 
आज चुपचुप से बहुत घरो में खाते गुपचुप।

वो हॉर्न और सायरन से खुलती थी जो नींद 
आज चिडियो के चहकने से होता शुरू दिन 
ठहर किनारे जो घंटो फोन पे बाते होती थी 
आज घरो में छतो से ही वो बातें होती है। 

वो सड़क जिसमें हम कभी चलते ना थे पैदल 
आज सिर्फ गिनी चुनी गाड़िया ही दौड़ रही है 
लोग भूल गए है पिज़्ज़ा बर्गर और मोमोस 
घर में दाल रोटी और चावल ही रहे है ठूस। 

शायद ये वक़्त लोग भूल जाये 
सीख समय की गुल हो जाये 
लेकिन सीखने लौटेगा वक़्त जरूर 
टूटेगा मानव फिर तेरा गुरुर। 

आज जो हाथ धो मास्क लगा तुम 
खुद को रहे सुरक्षित समझ तुम
पर रखना याद हर पल ये तुम 
विषाणु भले ही मार लो हजार तुम 
पर रहना सदा मेरे कृतज्ञ तुम 
क्योकि ये जीवन है मेरी देन 
न रखना बंद कर अपने नैन 
गर भूल गए प्रकृति से मिलाप 
न बचेंगे बच्चे न कोई बाप 
ख़त्म हो जाएगी तुम्हारी हर व्यथा 
न बचेगी कोई भी तुम्हारी व्यवस्था 
खोना न वक़्त तुम कागज बटोरने में 
वक़्त न लगेगा मुझे तुम्हे समेटने में...... 





गुरुवार, 30 जनवरी 2020

चुप क्यों हैं तू


हर एक सवाल का जवाब बन
हर नींद का हसीं ख़्वाब बन।
सदियों के बंधनो को तोड़ कर
आसमां से ऊंची उड़ान भर।

संभल कर चल सके इस जग में
मन को इतना मजबूत कर ले।
कोलाहल में भी सच को सुन ले
ऐसा ढृढ़ निश्चय तू अब कर ले।

थी जो बाधा आगे बढ़ने में तेरी
ख़त्म हुई पिछली सदी बहुतेरी।
जो बाकि है रोक टोक वो भी
ख़त्म हो रही शिक्षा से सभी।

नारी सम्मान की बात न करना
पर अपमान भूल से न करना।
जब भी लिखा इतिहास युद्ध का
कारण बना यही पृष्ठ मूल का।

अब तो यह दो हजार बीस है 
न मन में अब कोई टीस है।
आगे कहानी अब चुकी है बढ़
नर नारी में नहीं कोई अनपढ़।


मंगलवार, 28 जनवरी 2020

समय का परिवर्तन

है जो वक़्त ये अभी
शस्त्र से न कम कभी।
बढ़े जो ये एक पग भी
मुड़े न पुनः ये कभी।

हो हर्ष फिर या हो शोक
लगा न सका कोई रोक।
बस बढ़ा बढ़ता ही गया
हुआ न कभी इसका लोप।

है बदलता रोज ये
रचता इतिहास नए।
धुप हो या हो छाँव
बनाते रहता पड़ाव नए।

वक़्त से की मित्रता 
मिली उसे सहजता।
न हुई कोई व्यर्थता
जिसने दिखाई गंभीरता।

सच्चाई जिसके समय में
ईमानदारी है जिसके कर्म में।
मेहनत हो अनुशासन से
संसार उसके चरणों में।

वक़्त की गोद में खेलने वाला
दुनिया को झुका सकता है।
वक़्त से बेवक़्त खेलने वाला
वक़्त को बदल सकता है।

हर बार वक़्त जल्द नहीं बदलता
कई बार वक़्त भी इंतज़ार करता है।

वक़्त का ताज हार स्वीकार कर
पुनः प्रयास करने पे मिलता है।

वक़्त की आदत है
इंसान की फितरत है।
प्रकृति का नियम है
हमारा संयम है।

आप देर कर सकते है पर वक़्त नहीं

"समय का परिवर्तन"

-आँचल मौर्य

रविवार, 27 अक्तूबर 2019

दीपक

कुछ दीपक रूपी व्यक्तित्व हमें हमेशा मार्ग दिखाते है 
फिर चाहे वे इस संसार में हो या न हो इस बे-फर्की  से 

कुछ दीप मन में भी जलने चाहिए
सिर्फ घर बाहर जलाने से क्या होगा।

कुछ उजाला बुद्धि विवेक का भी हो
सिर्फ प्रकाश के छलावे से क्या होगा।

थोड़ा तो मंथन खुद के कर्म का भी हो
सिर्फ दुसरो को राय देने से क्या होगा।

अमीरी तो उस भिखारी की मुस्कान में देखो
चिंतित राजा बन शमशान पहुंचने से क्या होगा।

एक दिया इस दीपावली मन में जला कर देखो
शायद सारा संसार ही कल तुमसे जगमग होगा।।

रविवार, 18 अगस्त 2019

अभी बाकी है

कुछ तो नींद अभी बाकी है
कुछ तो जागना बाकी है
कुछ तो भीगना बाकी है
कुछ बरसात अभी बाकी है।

सूरज की रोशनी में भी
कुछ किरणों की कमी है
चाँद की चांदनी में अभी
ठंडक थोड़ी बाकी  है।

मन तो है भिड़ जाऊ अभी
पर थोड़ी तैयारी बाकी है
पहुंच तो जाऊंगा मंजिल तक
कुछ भटकना अभी बाकी है।

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...