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सोमवार, 1 जून 2020

बदलता वक़्त

वो न गली के आखिरी घर तक गया 
न हर मोहल्ले के कोने कोने तक गया
फिर भी देखते ही देखते खौफ उसका 
हर एक के मन में इस कदर फैल गया। 

वो सड़क जिसमें हमने भी काटे थे दिन
आज दिखते लोग कुछ ही गिनती गिन
वो जिम और कैफे जहां लगता था मेला 
वहाँ जमती  रही धूल महीनो रहा अँधेरा। 

वो सड़क आज हमसे कुछ यूँ  रूठ गयी
सड़क तो रही वही पर मंजिल छूट गयी 
चलने की थी जल्दी बहुत जिस सड़क में 
आज वो सड़क सुनसान इस मौसम में। 

सिनेमा जिसमें देखी हमने कहानी बहुत
आज लगे उसमे ताले हो गया वक़्त बहुत 
गुपचुप चाट के ठेलो पे लगती थी जो भीड़ 
आज चुपचुप से बहुत घरो में खाते गुपचुप।

वो हॉर्न और सायरन से खुलती थी जो नींद 
आज चिडियो के चहकने से होता शुरू दिन 
ठहर किनारे जो घंटो फोन पे बाते होती थी 
आज घरो में छतो से ही वो बातें होती है। 

वो सड़क जिसमें हम कभी चलते ना थे पैदल 
आज सिर्फ गिनी चुनी गाड़िया ही दौड़ रही है 
लोग भूल गए है पिज़्ज़ा बर्गर और मोमोस 
घर में दाल रोटी और चावल ही रहे है ठूस। 

शायद ये वक़्त लोग भूल जाये 
सीख समय की गुल हो जाये 
लेकिन सीखने लौटेगा वक़्त जरूर 
टूटेगा मानव फिर तेरा गुरुर। 

आज जो हाथ धो मास्क लगा तुम 
खुद को रहे सुरक्षित समझ तुम
पर रखना याद हर पल ये तुम 
विषाणु भले ही मार लो हजार तुम 
पर रहना सदा मेरे कृतज्ञ तुम 
क्योकि ये जीवन है मेरी देन 
न रखना बंद कर अपने नैन 
गर भूल गए प्रकृति से मिलाप 
न बचेंगे बच्चे न कोई बाप 
ख़त्म हो जाएगी तुम्हारी हर व्यथा 
न बचेगी कोई भी तुम्हारी व्यवस्था 
खोना न वक़्त तुम कागज बटोरने में 
वक़्त न लगेगा मुझे तुम्हे समेटने में...... 





गुरुवार, 30 जनवरी 2020

चुप क्यों हैं तू


हर एक सवाल का जवाब बन
हर नींद का हसीं ख़्वाब बन।
सदियों के बंधनो को तोड़ कर
आसमां से ऊंची उड़ान भर।

संभल कर चल सके इस जग में
मन को इतना मजबूत कर ले।
कोलाहल में भी सच को सुन ले
ऐसा ढृढ़ निश्चय तू अब कर ले।

थी जो बाधा आगे बढ़ने में तेरी
ख़त्म हुई पिछली सदी बहुतेरी।
जो बाकि है रोक टोक वो भी
ख़त्म हो रही शिक्षा से सभी।

नारी सम्मान की बात न करना
पर अपमान भूल से न करना।
जब भी लिखा इतिहास युद्ध का
कारण बना यही पृष्ठ मूल का।

अब तो यह दो हजार बीस है 
न मन में अब कोई टीस है।
आगे कहानी अब चुकी है बढ़
नर नारी में नहीं कोई अनपढ़।


बुधवार, 6 नवंबर 2019

सिर्फ

खुदा(मैं)

ना हार में न जीत में
ना ही मैं तकदीर में
 न प्रश्न में ना हल में
जड़ में न हलचल में

ना मौन में न कोलाहल में
न दिन में न अँधेरी रात में
ना वृहदता में न सूक्ष्मता में
न कृतज्ञता में न कृतघ्नता में।

ना दूर मैं न साथ मैं
न राग में न त्याग में
ना योग में न भोग में
किंचित नहीं सहयोग में।

हर पल बस एक राह हूँ
जो चले तो उपहार हूँ
जो न चले तो ख्वाब हूँ
पर खुदा भी मैं इंसान हूँ।


रविवार, 18 अगस्त 2019

अभी बाकी है

कुछ तो नींद अभी बाकी है
कुछ तो जागना बाकी है
कुछ तो भीगना बाकी है
कुछ बरसात अभी बाकी है।

सूरज की रोशनी में भी
कुछ किरणों की कमी है
चाँद की चांदनी में अभी
ठंडक थोड़ी बाकी  है।

मन तो है भिड़ जाऊ अभी
पर थोड़ी तैयारी बाकी है
पहुंच तो जाऊंगा मंजिल तक
कुछ भटकना अभी बाकी है।

शनिवार, 8 जून 2019

प्यार

सूखापन ही तो है मौत का कारण
बेरुखी से ये सारे रिश्ते क्यो मरते
पानी जब ना मिले प्यार के चलते
रेगिस्तानों में कांटे ही क्यों खिलते।।

सिक्को की खनक परेशान भले करती
नोटों की परेशानी भीगने में ही है दिखती
रिश्ता हो सिक्को सा तो क्या है उलझन
जो हो शोरदार पर हर हाल काम तो आये।।

हैं भूल नही तो और क्या ये हर दिन की
कभी हैं जो तैयारियां रखि रखी रह जाती हैं
कुछ भूल होती हैं और कुछ ग़लतियाँ मेरी
हँसना हर कोई चाहता है हँसाना ना कोई।।

कुछ पंक्तियां लिख मैं ना पाया सिर्फ ये सोचकर
ना जाने क्या अर्थ निकालेंगे जब सुनेंगे कानभर
ना अर्थ मेरा वो जो हर कोई समझ पाया
न अर्थ मेरा वो जो कोई न समझ पाया
है ये जो अधूरापन वही तो है मेरा आईना
बस समझ सके जो कोई अलिखित पंक्तियों को
तो फिर क्या फर्क मुझमें और तुझमें रह जाएगा।।

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...