बढ़ने लगे हद से ज्यादा जग में हैवानियत
जब होने लगे ज़माने भर में हमारी जिल्लत
कर्म क्षेत्र में हो वक़्त की बेइंतहा किल्लत
संदेह में हो जब हमारी ये सच्ची मासूमियत
खोने लगे आस्था श्रद्धा भक्ति प्रेरणा ये जगत
तब खुद से खुद जंग हैं ये समय की जरुरत
मरती उम्मीदों के संग मेरी असंख्य जुर्रत
पुराने खयालो के रंग मेरी अनूठी जिद्दत
भिड़ता रोज बचाने को धरा की ये अस्मत
हारती किस्मत से लड़ती मेरी अनंत हिम्मत।
-अमित (Mait)