स्वप्न लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
स्वप्न लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 10 जुलाई 2022

स्वप्न

स्वप्न जो था 

सच न वो था 

सुकून था 

पर जो भी था 

टूटा जब 

टूटा मैं 

अंदर से। 


जगा जब 

जग सोया था 

भोर हुआ था 

तारे लौटते थे 

सूर्य क्षितिज पे 

इंतजार में 

नयी सुबह के। 


उठा बिस्तर से 

न निकला स्वप्न से 

दुविधा ऐसी 

जान लगी फसी 

गायब हुई हसी 

स्वप्न सही या 

जीवन सही। 


लड़ाई चली उम्र भर

न स्वप्न हुए ख़त्म 

न भरे कोई जख्म 

चोट ऐसी दिल पे 

खायी ऐसी हमने 

सो जाये तो भय 

जागे तो लगे स्वप्न।


-अमित(Mait) 

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...