मंगलवार, 30 अगस्त 2022

झुलसते सपनो के बीच

टूटते सपनो के टुकड़ों पे जो हम सो रहे है
बीतते हर लम्हे में हम खुद को ही खो रहे हैं ।

समझ नही पा रहे अपनी इस मुश्किल का हल
आत्मा है दुखी बह रहे नेत्रों से जल निश्छल।

तलाश में सुकून के दिन भर यूं भागते भागते
मान बैठे आराम ही भागना चाहते ना चाहते।

भटकते भटकते जब इन रास्तों में तुम खो जाओगे
पाकर मेरा सान्निध्य पुनः तुम पथ प्रशस्त कर पाओगे।

याद रखना मैं मिलूंगा उसी जगह पे 
जहा तुम कभी किसी और को न पाओगे।

गीता की कई बार हुई भाषा परिवर्तन
इस बार परिवर्तन पे गीता मैं बताऊंगा।
रचा जिस समय को देखने तेरी ताकत
उस ताकत का रहस्य मैं सुलझाऊंगा।

किया जो तुमने इंतजार जो इतने युग
रखो धैर्य और थोड़ा और जाओ रूक।
गलत वो झेलेंगे जो सही वो भी झेलेंगे
क्योंकि रात या हो सुबह बच्चे तो खेलेंगे।

हैं अधूरी ये कथा ये बात मेरी मान लो
पूरी तुम्हे ही करनी ये व्यथा भी जान लो
हो अगर पढ़ रहे दूसरी बार इस पंक्ति को 
तुम्ही बदलोगे इस जग को ये बात मन में ठान लो।

-अमित(mAit)

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

हारती किस्मत से लड़ती मेरी हिम्मत

बढ़ने लगे हद से ज्यादा जग में हैवानियत

जब होने लगे ज़माने भर में हमारी जिल्लत 

कर्म क्षेत्र में हो वक़्त की बेइंतहा किल्लत

संदेह में हो जब हमारी ये सच्ची मासूमियत 

खोने लगे आस्था श्रद्धा भक्ति प्रेरणा ये जगत 

तब खुद से खुद जंग हैं ये समय की जरुरत

मरती उम्मीदों के संग मेरी असंख्य जुर्रत 

पुराने खयालो के रंग मेरी अनूठी जिद्दत 

भिड़ता रोज बचाने को धरा की ये अस्मत  

हारती किस्मत से लड़ती मेरी अनंत हिम्मत। 


-अमित (Mait)




मंगलवार, 23 अगस्त 2022

राजनीति

आया था जो बन एक नए युग का गीत 
आज है दफ़न ओढ़े स्वार्थ का संगीत 

मिल रही जो कुर्सी उसका न कोई मान 
सिर्फ जेब भरने पे ही लोगो का ध्यान 

जो था धर्म का काम खो चूका सम्मान 
हर तरफ हो रहा इसका अपमान 

बढ़ रही कुरीति घेरती अनीति 
लोग समझ रहे इसे राजनीती 

अब भी वक़्त दूर करो ये अज्ञानता
चलो धर्म पथ पर लाओ समानता 

वरना एक दिन ये जग खुद बोलेगा 
लोगो के दिल दिमाग का खून खौलेगा  

कुर्सी तो न दिखेगी तख़्त भी डोलेगा 
सीधा  प्रजा का प्रजा पे शासन होवेगा 

बैठेगा न कोई नेता कुर्सी पे कंप्यूटर बैठेगा 
आवाज होगी जनता की पर मशीन बोलेगा 

लोकतंत्र का नया अध्याय अब जग में घोलेगा 
न किसी को कोई व्यक्ति बेवजह तौलेगा 

-अमित (mAit)

मंगलवार, 16 अगस्त 2022

उलझन

जाएं तो जाए कैसे उस पार
बहाव पानी का बहुत तेज है
खुद को न जानना ही हार
बाकी सब तो सिर्फ जीत है
यूं तो खड़ी थी ट्रेन स्टेशन में
पहुंच न पाया ये खीझ हैं।

सुलगती रही आग कुछ
इस तरह सीने में
खुद को झुलसा दिन रात 
भिगा पसीने में
आने लगा मजा बेपरवाह 
खुशी से जीने में।

-अमित


मंगलवार, 9 अगस्त 2022

कोशिश एक और

जहा तक फैला सको फैला दो कोशिशें हजार
चाहे मिले नाकामी हो पराजय हजार बार
फिर खड़े हो करने पूरी क्षमता से वार प्रहार
जब तक ना पहन लो विजय श्री का हार।

रविवार, 7 अगस्त 2022

साल बीते

आज यूं चलते चलते तुम्हारी याद आ गयी 
तूफान के शोर में ये वीरानी क्यों छा गयी 
संग चलते चलते क्यों ये रस्ते बदल गए
हम कही थे और तुम कही निकल गए। 

तुम साथ थी तो पानी भी शराब लगती थी 
ये अमावस की रात भी गुलजार लगती थी 
न जाने किसकी नजर लगी दिन जो बीती 
बदल गयी समय की गति और परिस्थिति। 

चेहरा चाँद सा ना जाने किस आकाश में है 
खोजने के खातिर दर बदर भटक रहा है
शायद खोज न अब इस जन्म पूरी होनी है 
अब मेरी उम्मीदें खोखली आंखे सूनी है। 

साल बीते अब दो हजार पाँच सौ पांच 
आशा ना छूटी न आयी ना कोई आँच 
सिद्धार्थ से थेरा तक को दुनियाँ जानती
भूली क्यों जसोधरा माया को न मानती। 

-अमित 

शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

सिर्फ तेरा ही नाम होगा।

कल जब इस जहां में गहन अंधकार होगा
इस नजर को तेरा सिर्फ तेरा इंतजार होगा
यूँ तो पीढ़ियां गुज़री हजारों काम करते करते
कोई ना जाने आने वाले कल क्या अंजाम होगा
पर लेने के लायक सिर्फ सिर्फ तेरा ही नाम होगा
हर दिल पर सिर्फ तेरा ही तेरा निशान होगा
हर राह के अंत में तेरा ही मुकाम होगा।
-अमित 

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

इतिहास रच जायेगा।

आने वालों का हमें जर्रे जर्रे से इंतज़ार होगा
जब कल सुबह होगी तो दिन गुलज़ार होगा।

किसी का एक तो किसी का हजार बार होगा
दिल है जो मेरा हर किसी का शुक्रगुजार होगा।


खोया था सम्मान उसे पाया जाएगा
सोया था जो शेर उसे जगाया जायेगा
होने को तो अभी भी काफी हैं पर
अपनी ताकत को और बढ़ाया जाएगा
जो उठाते है उंगलियां खामखां हमपर
उन्हें वक्त आने पर दिखा दिया जायेगा
तिरंगा जब फहराएगा करोड़ों घरों में
तब वक्त खुद ही इतिहास रच जायेगा।

बुधवार, 3 अगस्त 2022

चाहत

बिना तेरी चाह के चाहा हर रोज तुझे खुद से भी ज्यादा 

न हुई कोई मुलाकात हमारी न देखी तेरी सूरत दुबारा 

बीते साल पे साल पर न प्रेम हुआ कम पर आँखे नम 

बीत जाये जिंदगी सारी पर हमारी ये उम्मीद है कायम 

मिलेंगे उसी रस्ते पे जिसपे थे कभी एक दूसरे के संग

देखेगा ये जहां एक अधूरे पर अनूठे प्रेम के नूतन रंग। 


-अमित 




मंगलवार, 2 अगस्त 2022

In meeting with soul

I feel the hazards of waste
Filled in many human brain 
Looks like just now normal
But with depth not so formal

With eagernes we all are loosing
Due to lack of inner voice listening
All the people want to do the same
But everyone want name and fame

Let's begin the change in right
Look at the innovative sight
Be the first to hold the light
Make other life more bright

One day there will be only life
Without repetition of the vibes
Signatures of ours in the time
All world smile in my regime.


-MAIT

रविवार, 31 जुलाई 2022

स्वतंत्रता


जिस स्वतंत्रता का सूर्य न होगा कभी अस्त

गान करता देश समस्त, दिन है वो पंद्रह अगस्त। 


जिज्ञासा थी जिस आज़ादी की मिली वो अंशतः 

बाकि है स्थापित होनी सद्भाव सद्मार्ग शांति पूर्णतः। 


७५ वर्ष भी पड़े कम पाने में लक्षित गति 

अब तय करने होंगे त्वरित और तीव्र रणनीति। 


अब बात नहीं करने होंगे सारे लंबित काम तमाम 

वरना आगे होंगे न इतिहास में हमारे तुम्हारे नाम। 


ज्ञान जो एकत्रित किया सदियों से उसका मान रखो 

अनुपयोग पे काम करो सदुपयोग पे जान रखो। 


जो समझे उसे समझाओ वक़्त यूँ अब न बिताओं 

युद्ध के द्वार पर बैठे मायूसी से सर न झुकाओ। 


शायद मुश्किल हो जीत ये लेकिन लड़ना बहुत जरुरी है 

अब आगे तुम सब ये देखोगे यही अंतिम मजबूरी है। 


धर्म युद्ध की इस बेला पर अब हाथ जो न उठा पायेगा

अधर्म का वाहक उसका सर तन से उड़ा ले जायेगा। 


आज शायद ये सोच कर तुम गलत को सह जाओगे 

कल सही खोजने को तुम यूही भटकते रह जाओगे। 


शाम को जब कोशिशों के बाद नींद ना तुम्हें आयेगी 

याद रखना मेरी ही बात तुमको स्वप्न में ले जाएगी।  


शब्द भटक सकते है मेरे अर्थ तुम कुछ भी निकाल लेना 

भावनाओं के मेरे इस भवसागर से तुम स्वयं को बचा लेना। 


-अमित (M AIT )


शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

समेट जरा बिखरकर

सर को झुकाकर 

तन को तुड़वाकर 

साथ सबके मिलकर 

मन की आवाज़ दबाकर 

भाग रही भीड़ इस दंभ पर। 


सोयी दुनियाँ होने भोर पर 

कैसे होगी पार ये दौड़ कर 

शक्ल तो है रंग उस दीवार पर 

पार उसके क्या ये तो तू गौर कर 

साथ अपना दे इस दुनियाँ को छोड़ कर। 


समेट जरा बिखरकर 

उठ जरा सा गिरकर 

हो न बेचैन अब सब्र कर

अपनी धुंध का तू अंत कर

मिलेगी सफलता उसी पथ पर। 


          -अमित(Mait )



सोमवार, 25 जुलाई 2022

शपथ

बीत गई वो रात 
जिसकी करते थे बात
चल पड़े नए पथ पर
लेकर नई शपथ।

अब ये पथिक
न घाव देखेगा अपने
न देखेगा कोई सपने
न देगा कदमों को रुकने
ले शपथ चला अपने पथ।

थाम सको तो थामो हाथ
दे सकते तो दो साथ
न करना विश्वासघात
इतना करो आत्मसात
हो चाहे दिन या रात।

बहुत हुआ ये पथ का पाठ
लक्ष्य से भटके हुए हालात
स्वयं किए तुमने आघात
अब कहते हो क्या हुई बात
थोड़ा तो करो शर्म और लाज
झुक न सको तो स्नेह ही दो
स्नेह न हो तो आदर ही दो
वो भी न हो तो निरादर न हो
जीवन पथ की हो यही शपथ।


"एक सत्य ही एक धर्म सत्यपथ ही सत्यधर्म सनातनम
समय घड़ी ही ईश्वरत्व कालचक्र परमेश्वर आदिअनंतम"

-अमित(Mait)


रविवार, 24 जुलाई 2022

लक्ष्य वही है बस राह बदल गए


कुछ बाते यूँ ही लिखे गए 

विवाद यही कि क्यों न पढ़ें गए

लगता है तुम्हें किताब बदल दिए 

किताब वही हैं बस पन्ने पलट गए। 


कल न किसी ने रोटी खिलाये  

आज मौत पे उसकी नेता भी रो दिए 

खीचने फोटो लोग ये तमाम भिड़े 

गर खुलवा लेते उसके ओठ सिले 

न बुझते देश के गुमनाम दिये। 


कोई रोये कितना अंत में तो हँसे 

मुस्कान हर हाल के चेहरे में दिखे 

न किसी का किसी से दिल दुखे

आशा यही आबाद हर कोई रहे। 


थके कितना नींद सुकून की मिले 

नींद वही है बस ख्वाब बदल गए 

शब्द वही है बस विचार बदल गए 

लक्ष्य वही है बस राह बदल गए। 


-अमित 

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

स्मृति

कल रात सोया
सुबह उठा फिर सोया 
सोकर उठा और फिर सोया
ना जाने इस आलस में मैंने
कितने कीमती पलो को खोया।

जब उठा पलंग से 
सूरज दूर क्षितिज से
चमक रहा आग के गोले सा
सूखे गमले में पौधों को
पानी डाल मुस्काया मैं।

सपना जो देखा वो 
स्मृति में ठहरा इस कदर
न भूल सका मैं कई पहर
कोशिश की जब लिखने की
भूला पहला ही अक्षर।

डराते हैं जो सपने 
वो कई बार जगाते भी है
जो लुभाते है अपने
वो कई बार सताते भी है
स्मृति का खेल ये।

-अमित(Mait)




कब चालू होगा

रथ जो ठहरा ये
ज्ञान का
फैले हुए अज्ञान से
पता नही
कब चालू होगा।

रुका जो चक्र ये 
शुद्धता का
फैले हुए प्रदूषण से
पता नही
कब चालू होगा।

बाधित हुआ पथ ये
मानवता का
फैली हुई कट्टरता से
पता नही
कब चालू होगा।


-अमित(Mait)

रविवार, 10 जुलाई 2022

अनूठा सफर

हारती कोशिशों में मैं हूँ 
फस चुका इस कदर 
बीतते हर लम्हे में रहा 
खो अपनी उमर 
अब तो सांसे लेना भी 
होता जा रहा दूभर।

थका हूँ विश्राम से मैं 
हर रोज इस कदर 
उठता हूँ सुबह तो दिन 
जाता है ठहर 
कोशिश आगे बढ़ने की 
पर बीतते सिर्फ पहर। 


उठ गया जो मैं चलने 
अपना ये सफर 
ख़त्म होगी हर मुश्किल 
बनेगा अमृत हर जहर
जहाँ चाह वहाँ राह 
ये एक ही डगर। 


तेरा साथ हो या न हो 
मै चलूँगा हर पहर 
मोह से भी न रुकूंगा 
न कोई गांव न शहर 
ध्येय से पहले न थमेगा 
मेरा ये अनूठा सफर। 

-अमित(Mait )




चुप क्यों हैं तू

चुप क्यों हैं तू,


मैं  नारी हूँ, मैं हारी हूँ
ना तू यह मलाल कर,
ना खड़ी तू देख गलत को,
अब तो तू बवाल कर,

रास्ते  ना मिले तो तू,
खुद की राह निर्माण कर।

चुप क्यों हैं तू,
ना तू अपनी आवाज दबा,
अब तो तू सवाल कर,
ना मिले जवाब तो,
खुद जवाब तलाश कर,
कुछ तो अच्छा ढूँढ़ ले खुद में,
ना मन को यूँ तू उदास कर।

चुप क्यों हैं तू,
जो भी पास है तेरे,
उससे ही तू कमाल कर,
शिक्षित हुआ समाज,
फिर भी कोख़ में मारी है,
ना खड़ी तू देख गलत को,
अब तो तू बवाल कर।

 







हिंदी दिवस मनाने को

जो करे साइन न करे हस्ताक्षर 

न कर सके प्रण जो बच्चो को 

हिंदी माध्यम में पढ़ाने का 

नहीं है अधिकारी वो 

हिंदी दिवस मनाने को

हिंदी नहीं कोई  मंजिल ये तो हैं सफर
कोरोना की चिंगारी पर माँ ये भारी
प्रारम्भ होना चाहिए देश का विकास 

पिता का पत्र हिंदी मूल महाकाल

शोर मत करो बनो परिश्रमी किसान

जो बोओगे वही काटोगे जाओ मान 

हिंदी ही है हिंदुस्तान की जान। 


अमित(MAIT)

 



उद्देश्य

चले मीलों बिना उद्देश्य 

मिला न कोई भी सन्देश। 


जब चले संग ले लक्ष्य एक 

मिला जीवन को ये उद्देश्य। 


भोर में उठ कर भागा जो भी 

साँझ में उसका हक़ विश्राम 

हो किसी का जीवन संग्राम

जीत मिली और भागी हार 

जिसने आगे बढ़ किया प्रहार। 


-अमित(Mait)






स्वप्न

स्वप्न जो था 

सच न वो था 

सुकून था 

पर जो भी था 

टूटा जब 

टूटा मैं 

अंदर से। 


जगा जब 

जग सोया था 

भोर हुआ था 

तारे लौटते थे 

सूर्य क्षितिज पे 

इंतजार में 

नयी सुबह के। 


उठा बिस्तर से 

न निकला स्वप्न से 

दुविधा ऐसी 

जान लगी फसी 

गायब हुई हसी 

स्वप्न सही या 

जीवन सही। 


लड़ाई चली उम्र भर

न स्वप्न हुए ख़त्म 

न भरे कोई जख्म 

चोट ऐसी दिल पे 

खायी ऐसी हमने 

सो जाये तो भय 

जागे तो लगे स्वप्न।


-अमित(Mait) 

युद्ध का तत्व

जंग के मैदान में जब खुद को पाया 

लड़ने से न खुद को रोक पाया 

काल का साया चहुओर छाया 

युद्ध गीत जो तुमने गाया 

तैयार खुद को हमने पाया। 


उखड़ने लगे आलीशान दरख़्त

ह्रदय होने लगे कुछ और सख़्त 

जमीं पे फैलने लगा लाल रक्त 

समझ गया बचा है कम वक़्त 

यही इस युद्ध का तत्व। 


-अमित(Mait) 

चांदनी

जिस चाँद के लिए सूरज को भुलाया

किसी और के लिए मुझे किया पराया। 


जिसके लिए रात भर खुद को जलाया

दिन होते ही अपने लिए अँधेरा पाया। 


शाम को जब दुबारा चाँद आया 

चांदनी ने दिल को खूब रिझाया। 


खो गयी सारी की सारी छाया 

जब अमावस्या का दिन आया। 


आज तो ऐसा दिन हैं आया

खोयी चांदनी खोया उजाला। 


न प्याली बची न प्याला 

ख़त्म हुई मधुशाला।


-अमित(Mait )

शनिवार, 9 जुलाई 2022

नजारा

सुना कि जल रहा किसी का नीड़
नजारा देखने लगी है बहुत भीड़।
अब चलना होगा एक नए सफर पर
पाने हर समस्या की स्थिर तदबीर 
लिखने को एक नई तक़दीर।

बताया रास्ता जो बताने वालों ने मुझे
पथिक को गलत या नज़र सही आया।
जब पहले पड़ाव से पहले ये दिन गया गुजर
साथ देने वादा किया जिन्होंने वो गए मुकर।
छाया जो नशा हमे इस डूबती शाम का
इस नजारे को सुबह की शुरुआत बताया।
जाए जिसको जाना हो वापस लौट कर 
हमे तो केवल अपने लक्ष्य को हैं पाना।

नजारा कुछ यूं बदला चलते चलते 
साथ देने का वादा किया जिन्होंने
वो सब नदारद हुए कारवां से
जब मुकम्मल हुआ सफर तो 
पैर थे अंजुमन में।

हर नजारा हैं बिखरता
कौन समय जो टिकता
उजाले के बाद अंधेरा 
रात के बाद सवेरा।

मौका जो मिले मुझे बता देना
अगर हो कोई शिकवे गिले
की कौन सा नजारा जो भाया
कौन जिसने आखो को भिगाया
हो सके जहा तक साथ चले
पूछने का मौका मिले न मिले।

अब देख कर मेरे कातिल को 
न मेरी रूह कांपी थी
शरीर ठंडा हो चुका मेरा 
देख उसने जश्न मनाया था
फेक सड़क पर मेरी लाश
हुआ वो थोड़ा हताश
की फेका वो तो मिट्टी था
बन मटका फिर वो आएगा
पी कर पानी उस मटके का
जब वो शांत हो जायेगा
उभर पड़ेगा वो विष
जो उसने जग में घोला था
अंत होगा जब उसका
वो संभल न पाएगा।

लौटूंगा फिर इसी पावन धरा पर
यही मेरी पहली और अंतिम प्रण
ले वे भले प्राण मिले जीवन अल्प
पर न बदला न बदलेगा ये संकल्प।

-अमित(Mait)


भटकता मन

ढूंढने उजली सुबह इस उलझी रात के बाद
टूटे दिल और भटकते मन के साथ
अब इंतजार नहीं किसी भोर का
क्योंकि लाना है उजाला
खुद ही को जलाकर।


जब तकलीफ बताने की इच्छा ना हो 
तो लिखना ही बेहतर होता है,
कहां इस दुनिया में कोई दुःख से खुश 
और हंसी के लिए रोता हैं।


जो बदल नहीं सकते उस बारे में सोचना व्यर्थ हैं
जो बदलना जरूरी हैं उस बारे न सोचना पाप हैं।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

रात

रात आती है तो आए मुझे क्या हैं
जान जाती है तो जाए मुझे क्या हैं
बदल रहे आसमान के रंग कुछ यूं
लगता है बहुत फटेंगे बादल अब तो
तूफान आता है तो आए मुझे क्या हैं।

आज मैने दिन सारा यूं जिया 
सुबह को शाम बेफिक्र किया
रंग बदल गए लोगो के 
जब सच को सच और
झूठ को झूठ बता दिया।

अंधेरा इतना बढ़ गया
इस व्यस्तता की धूप में
की वो किरण भी न दिखे
जिसे जलाने के लिए
न जाने कितने बुझे दिये।

अब सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा
काले बादलो से आकाश
सराबोर हर ओर छोर है
दिखती न तारों की चमक
चाँद भी छोड़ रहा बसेरा।

- अमित(Mait)


गुरुवार, 7 जुलाई 2022

राह

गिरता है पानी उठती तो भाप हैं
सत्य ही धर्म बाकी सब पाप हैं।

समय का मोल हर कोई जान पाए
सोने से पहले एक बार जाग जाए।

सब हो जाए अगर लोग समझ जाए
समझना जरूरी तभी वो समझाएं।

दिखाने से पहले नई अनजानी राहें
लोगो को खुद उस पथ चल दिखाएं।

सूरज सा चमकने का सपना दिखाएं
पहले तपना और धधकना तो सिखाए।

शिकायत से स्वागत का द्वार जो पाए 
वो ही अधर्म बाकी निष्पाप कहलाए।

हारे न वो जो लड़ जान गवाएं
हारे तो वो जो लड़ने न जाएं।

बुधवार, 6 जुलाई 2022

तकदीर

अगर ईश्वर स्वयं तकदीर लिखता
किसी का कम न अधिक लिखता
भाग्य लिखते तो कर्म है स्वयं के
कोई स्वर्ण तो कोई घास बेचता।

अगर बाजार में सुकून बिकता 
न कोई दुःखी गमगीन दिखता
यूं तो हजारों साल बीत गए
हर कोई खोज में ही निकलता।

जब सूर्य खुद ज्वाला से भागता
तब विनाश खुद राग अलापता
झूठ सच से गुना कई तेज फैलता
तब मानवता अनंत प्रहार झेलता।

जब व्यक्ति सत्य के लिए खड़ा होता
दुनियां पत्थरों से स्वागत रोज करती
हर असफल प्रयास पर बारंबार हसती
सफलता के बाद सबका मुंह बंद होता।

अमित(Mait)

मंगलवार, 5 जुलाई 2022

अजेश है वो

जिसका मन हो शिशु सा निश्छल 

जिसके बाजुओं में हो शक्ति प्रबल 

जिसके आने से असहाय हो संबल 

अजेश है वो। 


जिसकी मानवता पे हो श्रद्धा अपार

जिसका लक्ष्य हो सेवा सदा सेवादार

जिसके पथ पर प्रकृति लाये बहार  

अजेश है वो। 


जिसकी क्षमता हो विश्व को भुजाओं पे उठाने की 

इस जग के विषैले सूर्य को निगल पाने की 

विषमताओं के राक्षसी मुँह से निकलने की 

अजेश है वो।

 

जो कर सके मुसीबतो को एक छलांग में पार

जो सुनहरे चमकते अधर्म को दे सके अग्निद्वार

जो जीत सके दुसरो अपने मन को बारंबार 

अजेश है वो। 

 

जो कर सके समय से भी लम्बा इंतजार

जो बिता सके मौन सावन की बहार

ईश्वर से मिलने हर बार युगों हजार 

अजेश है वो। 


जो स्वयं का होना ही ईश्वर के होने में माने 

जो अपना एकमात्र धर्म सिर्फ सेवा ही जाने 

जिए वो ऐसे जिसे दुनिया एक आदर्श माने 

अजेश है वो। 


नोट : ईश्वर =पालक + विश्व के कुछ लोग , सेवा=सद्भावना सहित कर्म 


 -अमित(Mait)


रविवार, 3 जुलाई 2022

डूब गया

रात बारिश हुई भारी
प्रशासन की गैर जिम्मेदारी
और लगने डूब नाली सड़के और चारदीवारी।

सुबह आए नेता देखा सब बेहाल
मिले कुछ देर और ली फोटो 
पर ना ली उन्होंने कोई जिम्मेदारी।

अगली रात फिर हुई तबाही 
बरसी आफत शहर हुआ पानी पानी
नेता ने मंगाई जेसीबी सफाई करवाई।

इस बार डूबा था क्योंकि उनका भी घर
देने गए कलेक्टर को एक लेटर
बनवाई गई नाली अगले ही दिन।

ये देख एक समाचार आया
नेता क्या खुद का घर बचाने
और दुसरो का बेचने बन के आया।


--अमित(Mait)

माँ

न एक दिन और ना ही एक पल  चाहिये 

उसे न छुट्टी और ना ही कोई आराम चाहिए 

जीती है जिसके लिए वो उनका थोड़ा सब्र,

स्नेह, लगाव, प्रेम, जुड़ाव के साथ 

मान - सम्मान चाहिए। 


दौड़ती हुई जिंदगी में सबके साथ 

एक सुलझी सुबह एक शाम चाहिए

माँ के कदमो की आहट न सुनाई दे तो,

चिंता तो घर को रहती माँ की डांट ही सही 

आवाज आनी चाहिए। 


कपडे से लेकर कमरे तक गर साफ़ चाहिए  

करने को सब दुरुस्त माँ के हाथ पड़ने चाहिये 

बच्चो का गृहकार्य हो या हो बाजार व्यवहार,

करती घर के सारे कार्य लाती सावन सी बहार

और आनी चाहिये।  


बिना बोले आँखों से सब को समझा लेती है 

दर्द अपने झेल कर सब को सहज जीवन देती है 

अपनी कद से ज्यादा दुसरो को ऊंचाई देती है 

एक दिन ही क्यों हर दिन उसे अथाह ख़ुशी  

मिलनी ही चाहिए। 


जैसे हर रोज रात के बाद सुबह होती है 

वैसे ही माँ के साथ जिंदगी बिना मौत होती है 

जैसे ह्रदय दिन-रात हमें जीवित रखता लगातार 

वैसे ही माँ के बिना हमें जीवन का कोई सार 

नहीं दिखना चाहिए। 



-अमित 

शनिवार, 2 जुलाई 2022

उम्मीद

उम्मीदों पे तो दुनिया में हर कोई टिका है 

होने को इनसे दूर हो जाऊ मैं पर कम्बख़्त

इन्ही लम्बी दूरियों ने करीब बनाये रखा है।


पता नहीं ये कोई आसरा है या कोई धोख़ा 

हर एक बीतते लम्हे से पूछती हैं मेरी सांसे 

इस जन्म मिल पायेगा या नहीं कोई मौका। 


कभी घटती है तो कभी बढ़ती है ये उम्मीद 

कभी लगती स्वप्न सी तो कभी लगती व्यंग्य 

इस जीवन को संगीत से भरती हैं ये उम्मीद।


-अमित(Mait)

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

यात्रा


यात्रा क्या है?

उससे पूछो जिसने पथ को ही घर 

राहगीरों को ही पडोसी 

प्रकृति को पालक तुल्य 

खुले आसमान को चादर 

सूर्य-चंद्र को पथ प्रदर्शक

और मंजिल को ही ईश्वर बना रखा हैं। 


यात्रा संगम है पथ और पथिक का 

यात्रा गणित है शून्य से अनंत का 

यात्रा तो सार है मानव चरित्र का 

यात्रा मर्म है जन्म से स्मरण का। 


हैं कौन ऐसा जो यात्रा से वंचित है 

ऐसा क्या जो सदियों से संचित हैं 

अमर कौन जो विनाश से सुरक्षित है

यात्रा सार ये गतिमान ही जीवित है। 


अब जब 

यात्रा मंजिल से दूर ही ख़त्म हो रही 

आँखों से धूल न अब ख़त्म हो रही 

दिखायी आगे मंजिल न पड़ रही 

समझ लो बाकि है लम्बा रास्ता 

ये केवल एक पड़ाव जो यहाँ पड़ रही 

लो विश्राम और थोड़ा तो सब्र करो 

सुबह खुद तुम्हारा इंतज़ार कर रही 

पाओगे मंजिल लेश मात्र संदेह नहीं 

बस यात्रा का साथ कभी छोड़ना नहीं 

पथिक वो महान जो लक्ष्य से पहले 

न भटके, न थके और न रुके कभी 

पर जो दुसरो के लिए थक-भटक कर

साथ चल लक्ष्य पाए सर्व शक्तिमान वही। 


इस जग में ऐसा कोई भी ईश्वर हुआ नहीं जिसने यात्रा का कष्ट झेला नहीं 

ये मनुष्यत्व से ईश्वरत्व की है सीढ़ी है सागर से पर्वत की संयोग की है बेला 

वो उतना ही निखर आया जितना कष्ट और दुःख और विरह जिसने झेला।


यात्रा से स्वयं ईश्वर ही न बच पाए -

जिसने यात्रा में ही रक्षा की वो राम, जिसने रक्षा में जीवन यात्रा की वो कृष्ण कहलाये 

जिसने सत्य के लिए की यात्रा वो बुद्ध, और जिसने यात्रा ही सच कि की वो जैन कहलायें 


यात्रा का उद्देश्य स्थापना हो तो प्रगति-

जिसने धर्म के लिए राज स्थापित किया वो युधिष्ठिर धर्मराज कहलाये(इंद्रप्रस्थ -दिल्ली)

जिसने राज के लिए धर्म स्थापित किया वो आचार्य चाणक्य कहलाये(मगध - पटना)

जिसने भविष्य को सूरज दिया लोकतंत्र का वो सम्राट अशोक कहलाये(पंचायत प्रणाली)

जिसने बिना किसी बाहरी मदद सिकंदर को हराया वो राजा पोरस कहलाये(राजा पुरुषोत्तम)

जिसके रहते अरबो ने घुटने टेके हुए विफल सिंध को न कर पाए पर दाहिर कहलाये(सिंध-ईरान)

जिसने न हारा कोई भी युद्ध ४१  में से वो पेशवा बाजीराव कहलाये(चौथे पेशवा महाराष्ट्र)

जिसके एक कदम बढ़ाने से अंग्रेजो की नींद उडी वो नेताजी सुभाषचंद्र बोस कहलाये(बंगाल)

जिसके जोश से दुनिया का शक्ति केंद्र हिल गया वो प्यारे लाल बहादुर शास्त्री कहलाये(प्रधानमंत्री)

जिसने देश को दूरदर्शी सोच दे अंदर से जगाया वो सर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम कहलाये(राष्ट्रपति)

ये भारत ऐसे उदाहरणों से भरा है की मुश्किल हर एक को लिख पाए

अब बारी है आपकी यात्रा पूरी कर एक नया उदाहरण बनायें । 



-अमित (Mait)




गुरुवार, 30 जून 2022

धूप

जब धूप हो बाल्टी भर
भूख समुद्र से बढ़ कर
मजदूर भागे काम पर
क्षुधा अग्नि के नाम पर।

श्रम के स्वेद से स्नान कर
अपनी छाती तान कर
कर्म को ही पूजा मानकर
मालिक के काम आसान कर।

निकलता जब काम तमाम कर
झुकी कमर थकी आंखे ले कर
घर पहुंच परिवार से मिल कर
थकान हो जाती न के बराबर।

अगली सुबह की तैयारी सोच कर
मन को शांत करने कोशिश कर
सो जाता चक्षु जल को सुखों कर
आज से अच्छे दिन की उम्मीद कर।


अमित(Mait)

बुधवार, 29 जून 2022

वार(धर्म)

यूं ख्वाबों को हकीकत से न तौला जाए
हर बार कांटों को फूलो से न मोला जाए
जब बिखरने लगे घर के हिस्से हिस्से
उन टुकड़ों को घर ना माना जाएं।

गर चाहते मार कोई अपना ना खाएं 
हर बार मूक दर्शक बन न देखा जाए
हर बार हर वार न खुद ही झेला जाए
कभी तो इस वार में खुद कूदा जाएं

लिख रहा सिर्फ ये न समझा जाएं
हो शंका गर तो मेरे घर आया जाएं
जानते नही क्या बताए या छुपाएं
निःसंदेह इसे चेतावनी समझा जाएं।

जल रही है जो अग्नि विश्व के बाएं दाए
होगी जब समाहित एक ही ध्वज के साये 
तब न बच पाएगी कोई काली घटाएं 
पूरे विश्व में एक ही धर्म ध्वज फहराएं ।

-अमित(Mait)

मंगलवार, 28 जून 2022

सुलझी साँझ

सुबह की पहली किरण से किया प्रण ये
चाहे हो दिन कितना भी बोझिल और तंग
सांझ होगी हर हाल में सुकून के आवरण में।

गया जब सूची थी लंबी कर्म भूमि पर
वरीयता दे प्रारंभ किया जो कार्य-कर्म
भीगता रहा अपने उलझनों से दिन भर।

उम्मीद थी की सांझ तक सब हो जायेगा 
जो बिगड़ा था मेरा सब अब बन जायेगा
सुखद दास्तां के कुछ पृष्ठ तो लिख पाएगा।

शाम की तस्वीर कुछ यूं बिगड़ी
थकी आंखे होने लगी बोझिल
उम्मीद की तस्वीर हुई ओझल।

दिन गया ढल न मिल सका फल
लक्ष्य को लगा देंगे अब पूरा बल
कमाल होगा कल उम्मीद ही हल।

अमित(Mait)

सोमवार, 27 जून 2022

धुली हुई स्याही

समय के पन्ने की तंदुरुस्ती लगी घटनी
समय बीता और स्याही होती गई धुंधली
लिखा था जो सत्य मुश्किल हुआ पढ़ना 
लोग निकाल रहे मतलब अब अपना अपना।

जिसने देखी स्याही उस किताब की
खुद ही दी गवाही उस ख्वाब की
जो सत्य सबकी नजरों से बचा रहा
हर पल पास अपने मुझे ही बुला रहा।

हो शांति जैसे किसी अंधेरे कोने में बैठी शोर
पता नही क्यों वो झांके वक्त बेवक्त मेरी ओर
पानी से भी ज्यादा प्यास की लगा रही जोर 
जैसे इंतजार अंधेरी काली रात के बाद भोर।

धो डाला हर पन्ना जिसमे थी गुनाह की छाया
धो डाली हर पंक्ति जिसमे थी बदइंतजामी
मिटा डाला हर दाग जो लगा था इस पर
अब तैयार था दिशाहीन एक नये पथ पर।

धो न पाया पर अपने मन को क्षण भर
क्योकि पढ़ लिए थे वो सारे धुंधले अक्षर
बन गए थे वो सागर से भी गहरे जलभर
स्मृति कागजी होती तो मिटा देते पर।

धोया इतना मन को हमने
पड़ गए छाले हाथो में हमारे
शांति और एकाग्रता तो मिले 
वस्त्र हुए स्वेद और रक्त से गीले।

धो धो कर धुल गए 
धोने के सपने
धो न पाए जो दुःख
थे और हैं अपने।

 - अमित (Mait)

शुक्रवार, 24 जून 2022

ललकार

सुधार
........करनी होगी


बिगड़ी जो तबियत है
रूठी जो किस्मत है
वक़्त की जो जरूरत 
हालात की मरम्मत।

वक़्त की ये ललकार
नव किरणों की बौछार
पक्षियों की चहचहकार
रात की वो करुण पुकार।

जब हार पहुंच चुकी हो द्वार पर
सेना का मनोबल हो ढलान पर
तब जो हो लड़ने को जोश भर
जीत उसी की निश्चित तौर पर।

टूटती हुई पंक्तियों से
भाव जोड़ने की
कोशिश इस हार को 
जीत में बदलने की।

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...