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शनिवार, 2 जुलाई 2022

उम्मीद

उम्मीदों पे तो दुनिया में हर कोई टिका है 

होने को इनसे दूर हो जाऊ मैं पर कम्बख़्त

इन्ही लम्बी दूरियों ने करीब बनाये रखा है।


पता नहीं ये कोई आसरा है या कोई धोख़ा 

हर एक बीतते लम्हे से पूछती हैं मेरी सांसे 

इस जन्म मिल पायेगा या नहीं कोई मौका। 


कभी घटती है तो कभी बढ़ती है ये उम्मीद 

कभी लगती स्वप्न सी तो कभी लगती व्यंग्य 

इस जीवन को संगीत से भरती हैं ये उम्मीद।


-अमित(Mait)

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...