जिस स्वतंत्रता का सूर्य न होगा कभी अस्त
गान करता देश समस्त, दिन है वो पंद्रह अगस्त।
जिज्ञासा थी जिस आज़ादी की मिली वो अंशतः
बाकि है स्थापित होनी सद्भाव सद्मार्ग शांति पूर्णतः।
७५ वर्ष भी पड़े कम पाने में लक्षित गति
अब तय करने होंगे त्वरित और तीव्र रणनीति।
अब बात नहीं करने होंगे सारे लंबित काम तमाम
वरना आगे होंगे न इतिहास में हमारे तुम्हारे नाम।
ज्ञान जो एकत्रित किया सदियों से उसका मान रखो
अनुपयोग पे काम करो सदुपयोग पे जान रखो।
जो समझे उसे समझाओ वक़्त यूँ अब न बिताओं
युद्ध के द्वार पर बैठे मायूसी से सर न झुकाओ।
शायद मुश्किल हो जीत ये लेकिन लड़ना बहुत जरुरी है
अब आगे तुम सब ये देखोगे यही अंतिम मजबूरी है।
धर्म युद्ध की इस बेला पर अब हाथ जो न उठा पायेगा
अधर्म का वाहक उसका सर तन से उड़ा ले जायेगा।
आज शायद ये सोच कर तुम गलत को सह जाओगे
कल सही खोजने को तुम यूही भटकते रह जाओगे।
शाम को जब कोशिशों के बाद नींद ना तुम्हें आयेगी
याद रखना मेरी ही बात तुमको स्वप्न में ले जाएगी।
शब्द भटक सकते है मेरे अर्थ तुम कुछ भी निकाल लेना
भावनाओं के मेरे इस भवसागर से तुम स्वयं को बचा लेना।
-अमित (M AIT )