बिना तेरी चाह के चाहा हर रोज तुझे खुद से भी ज्यादा
न हुई कोई मुलाकात हमारी न देखी तेरी सूरत दुबारा
बीते साल पे साल पर न प्रेम हुआ कम पर आँखे नम
बीत जाये जिंदगी सारी पर हमारी ये उम्मीद है कायम
मिलेंगे उसी रस्ते पे जिसपे थे कभी एक दूसरे के संग
देखेगा ये जहां एक अधूरे पर अनूठे प्रेम के नूतन रंग।
-अमित