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मंगलवार, 28 जून 2022

सुलझी साँझ

सुबह की पहली किरण से किया प्रण ये
चाहे हो दिन कितना भी बोझिल और तंग
सांझ होगी हर हाल में सुकून के आवरण में।

गया जब सूची थी लंबी कर्म भूमि पर
वरीयता दे प्रारंभ किया जो कार्य-कर्म
भीगता रहा अपने उलझनों से दिन भर।

उम्मीद थी की सांझ तक सब हो जायेगा 
जो बिगड़ा था मेरा सब अब बन जायेगा
सुखद दास्तां के कुछ पृष्ठ तो लिख पाएगा।

शाम की तस्वीर कुछ यूं बिगड़ी
थकी आंखे होने लगी बोझिल
उम्मीद की तस्वीर हुई ओझल।

दिन गया ढल न मिल सका फल
लक्ष्य को लगा देंगे अब पूरा बल
कमाल होगा कल उम्मीद ही हल।

अमित(Mait)

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

आत्मनिर्भर भारत हमारा प्रण

जिस देश की है भुजा हिमालय

सागर की लहरे सुर और लय 

गंगा नर्मदा कावेरी गोदावरी 

सींच बनाते सीने को हरी भरी 

मानसून देता प्रबल बरसात 

लद्दाख जिसके सर का ताज 


श्री राम जी जिसके आदर्श है 

श्री कृष्ण जी जिसकी पहचान 

श्री बुद्ध जी का प्रखर प्रकाश 

श्री महावीर जी सादगी के प्रमाण 

है तो अनंत महापुरुषों की कतार 

उन सभी को मेरा आत्मीय प्रणाम। 


दुनियाँ बसती थी जंगल में आचार पशु सम 

तब सिंधु घाटी में हुआ सभ्यताओ का संगम 

विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला में 

भास्कराचार्य ने बताया वर्ष के दिन कितने 

खोज शून्य बता दिया विश्व को सही आकार 

दिया प्रकृति का सन्देश आयुर्वेद से उपचार 

ध्यान, योग, विपश्यना से किया साधना पूरा 

एक विश्व - एक धर्म का किया पालन पूरा 


लक्ष्य बड़ा था संभाले रखना हमें अपना 

गौरवशाली अतीत 

समय की है खासियत यही हो अच्छा या बुरा 

जाता जरूर बीत 


दस हजार सालो में खुद ही से 

लडे हो हज़ार बार 

पर एक बार भी दूसरे देश पर 

आक्रमण न एक बार 


सिंध के राजा दाहिर ने रोका खलीफाओं को 

उड़ाई नींद चटाई धुल मुस्लिम आक्रांताओ को 

कासिम ने अंततः पायी जीत रक्तरंजित सिंध पर  

उस क्रूर का अंत कर दाहिर पुत्री ने किये प्राण अर्पण  


हो गया प्रारम्भ लूट और मार - काट का दौर 

भारत में प्रवेश मुस्लिम आततायियों का जोर 

बहने लगी रक्त की धराये हुआ बहुत अन्याय 

धीरे - धीरे भारत बना एक मुस्लिम सराय 


चित्तौड़ के राजा को मार जाहिल खिलजी 

जब किले में घुसना चाहा था 

पद्मावती ने उसके किले में आने से पहले 

अग्नि स्नान कर डाला था। 


इक्यासी किलो का भाला ले महाराणा 

क्रूर अकबर की हिम्मत को तोडा था 

छत्रपति शिवाजी ने छापामार युद्ध कर 

तनाशाह औरंगजेब को झकझोरा था 

सहनशील गुरु गोविन्द सिंह जी ने 

मुस्लिम आतंक को ललकारा था। 


अब जब जागरण हुआ शुरू सरे आम 

एक नई गुलामी की शुरुआत की दासता

अबकी बार थी व्यापार सभ्य लूट तमाम 

अंग्रेजो से लड़ना था और साथ चलना था 


सन सत्तावन में मंगल पांडे उठा सर 

जगा गया पूरा भारत संवत्सर 

लक्ष्मीबाई लड़ी अंतिम साँस तक 

आज़ाद भगत सिंह हुए बलिदान 

नहीं लिख सकता हर एक नाम 

फिर भी सबको मेरा करबद्ध प्रणाम। 


थक चूका मुस्लिमो और अंग्रेजो की गुलामी से 

सन सैतालिस में आज़ाद हुआ

26 नवंबर सन 1949 बना संविधान 

राजेंद्र प्रसाद जी की अध्यक्षता में 

लोकतंत्र बने और मजबूत सच में 

इसलिए लागु हुआ दो माह बाद ये। 


भारत की हर लड़ाई में सिर्फ मानवता ही है सर्वोपरि 

है संविधान लागू भारत पर लड़ाई है बाकि कई 

राजनीति से ऊपर उठ राष्ट्र नीति ही धर्म है 

सभी सुखी हो सभी स्वस्थ्य हो बस यही मर्म हैं। 


मंगल तक पहुंचे एक बार में हुआ विश्व चकित 

चंद्र पहुँचा दो बार वो भी स्वदेशी तकनीक पर 

इसरो के C-३७ ने १०४ उपग्रह पहुचाये एक बार में 

बनाया ये एक कीर्तिमान बना भारत का अभिमान।


विश्व शक्ति कहलाने वाले अमेरिका, फ़्रांस

और ब्रिटेन हो रहे चीनी विषाणु से बेहाल 

भारत ने सही समय पे किया सही लॉक डाउन 

शीर्ष १० ग्रसित देशो से सन २१ में  हुआ बहाल 


आत्मनिर्भर बनेगा हमारा भारत यह हमारा प्रण है 

अंतिम साँस तक भारत माँ का हम पर ऋण है 

वसुधैव कुटुंबकम की भावना हमारी प्यारी है 

दुनिया चाहे जो भी बोले अब तो अपनी बारी है। 


--अमित मौर्य 

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

खाली

यूँ तो साफ रहते है बगीचे
साफ होते घर ऊपर-नीचे
कचरा उठा फेकते बाहर
जहाँ मिलता न कोई घर

होती जगह वो खाली पर
झेलती सड़न और देती बदबू
कचरे से अटी होती इसकी रूह 
वजह इसी के कही फैलती खुशबू

लोग करते नफरत उस कचरे की जगह से
भूल जाते की वो कचरा आया कहा से
अगर वो ज़मीन घरो के कूड़ा न रखती
तो हालातों की व्याख्या कुछ और होती

फिर शायद वो जमीन बेहद खूबसूरत होती
घरो के बाहर और अंदर सिर्फ सड़न होती
भूल जाते है लोग कचरा फैलाकर जमीन पे
अगर बन गए महल उस जमीन पे तो 
खुद का घर ही कचराघर बन जायेगा।

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...