शनिवार, 23 नवंबर 2019

आँखों का भ्रम था

आँखों का भ्रम था
या सामने स्वप्न था
जो हुआ दुखद था
दुःख यही सच था।

सोच ना पाया कुछ था
थोड़ा स्तब्ध - शून्य था
स्वेद से भीगा रक्त था
इस जग से विरक्त था।

जब सम्भला तो पाया
ना हाथ कुछ भी आया
मुश्किलें जिन्हे मैं माना
थी वो सिर्फ मेरी छाया।

दिखा दिया अंतर को
था क्या सदा सत्य वो
हल्का भी न हुआ रो
मन जो भारी तब वो

अब सोच हो रही खत्म
ख़ुशी को खा रहे गम
हठ जो किया खुद पर
पाकर उस लक्ष्य तत्पर

 

बुधवार, 6 नवंबर 2019

सिर्फ

खुदा(मैं)

ना हार में न जीत में
ना ही मैं तकदीर में
 न प्रश्न में ना हल में
जड़ में न हलचल में

ना मौन में न कोलाहल में
न दिन में न अँधेरी रात में
ना वृहदता में न सूक्ष्मता में
न कृतज्ञता में न कृतघ्नता में।

ना दूर मैं न साथ मैं
न राग में न त्याग में
ना योग में न भोग में
किंचित नहीं सहयोग में।

हर पल बस एक राह हूँ
जो चले तो उपहार हूँ
जो न चले तो ख्वाब हूँ
पर खुदा भी मैं इंसान हूँ।


राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...