शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

खाली

यूँ तो साफ रहते है बगीचे
साफ होते घर ऊपर-नीचे
कचरा उठा फेकते बाहर
जहाँ मिलता न कोई घर

होती जगह वो खाली पर
झेलती सड़न और देती बदबू
कचरे से अटी होती इसकी रूह 
वजह इसी के कही फैलती खुशबू

लोग करते नफरत उस कचरे की जगह से
भूल जाते की वो कचरा आया कहा से
अगर वो ज़मीन घरो के कूड़ा न रखती
तो हालातों की व्याख्या कुछ और होती

फिर शायद वो जमीन बेहद खूबसूरत होती
घरो के बाहर और अंदर सिर्फ सड़न होती
भूल जाते है लोग कचरा फैलाकर जमीन पे
अगर बन गए महल उस जमीन पे तो 
खुद का घर ही कचराघर बन जायेगा।

शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

राम

न मैं रावण न मैं राम,

मैं तो हूँ वो एक श्याम 

जब रुका पार्थ का पथ,

मैंने याद दिलाई शपथ। 

 

कर्म से तो ईश्वर न बच पायें,

मनुष्य तू क्यों इतना लजाये 

जब भी तेरा मन भागे घबरायें,

याद कर लेना मेरी कवितायें। 


सोचना न की धर्म की खातिर 

जान तुझे फिर देनी होगी,

न सतयुग न त्रेता न द्वापर 

ये कलयुग सिर्फ लेनी होगी। 


जब राम धरा पे थे तब 

हवा पानी सब निर्मल थे,

कृष्ण के अवतरण तक 

कौरव पांडव मित्रवत थे। 


आज धर्म पर चढ़ आया जो 

अधर्म, धर्म का चोला ओढ़,

अब बारी है ये सिर्फ तेरी 

हर असत्य अधर्म को फेंक। 

 

चाहे कर देना उल्लंघन प्रति मर्यादाओं का 

पर अंतिम सत्य-धर्म की हानि न होने पाए,

रखना याद अब न कोई कृष्ण न अर्जुन यहाँ

फिर भी हासिल करना तुझे ही धर्म विजय। 

 

जब जीतेगा धर्म धरा पे 

चहुँओर शांति छा जाएगी,

हर ओर उजाला होगा

प्रकृति संतृप्त हो जाएगी। 


-MAIT (मौर्य )



 


रविवार, 18 अक्तूबर 2020

तलाश

है जो रुक रही ये मेरी सांसें 

ये तो तेरी कमी का असर हैं 

खुद अब तू मिलना भी चाहें 

मिल जाना भी अब कहर हैं। 

 

प्यार न सही साथ की थी तमन्ना 

अब तो दिल टूट के चुका बिखर

दूरी ने दिल को कर दिया छन्ना 

अब तो ख़ुशी से दूर दिल बेफ़िकर। 

 

शांत वृक्ष की तलाश मिली केवल ठूठे  

पर न जाने राह में कितनो के हाथ छूटे

हर पड़ाव पर न जाने कितने हमसे रूठे 

पर मानव धर्म यही जो कर्म से ही ऊपर उठे।

सोमवार, 1 जून 2020

बदलता वक़्त

वो न गली के आखिरी घर तक गया 
न हर मोहल्ले के कोने कोने तक गया
फिर भी देखते ही देखते खौफ उसका 
हर एक के मन में इस कदर फैल गया। 

वो सड़क जिसमें हमने भी काटे थे दिन
आज दिखते लोग कुछ ही गिनती गिन
वो जिम और कैफे जहां लगता था मेला 
वहाँ जमती  रही धूल महीनो रहा अँधेरा। 

वो सड़क आज हमसे कुछ यूँ  रूठ गयी
सड़क तो रही वही पर मंजिल छूट गयी 
चलने की थी जल्दी बहुत जिस सड़क में 
आज वो सड़क सुनसान इस मौसम में। 

सिनेमा जिसमें देखी हमने कहानी बहुत
आज लगे उसमे ताले हो गया वक़्त बहुत 
गुपचुप चाट के ठेलो पे लगती थी जो भीड़ 
आज चुपचुप से बहुत घरो में खाते गुपचुप।

वो हॉर्न और सायरन से खुलती थी जो नींद 
आज चिडियो के चहकने से होता शुरू दिन 
ठहर किनारे जो घंटो फोन पे बाते होती थी 
आज घरो में छतो से ही वो बातें होती है। 

वो सड़क जिसमें हम कभी चलते ना थे पैदल 
आज सिर्फ गिनी चुनी गाड़िया ही दौड़ रही है 
लोग भूल गए है पिज़्ज़ा बर्गर और मोमोस 
घर में दाल रोटी और चावल ही रहे है ठूस। 

शायद ये वक़्त लोग भूल जाये 
सीख समय की गुल हो जाये 
लेकिन सीखने लौटेगा वक़्त जरूर 
टूटेगा मानव फिर तेरा गुरुर। 

आज जो हाथ धो मास्क लगा तुम 
खुद को रहे सुरक्षित समझ तुम
पर रखना याद हर पल ये तुम 
विषाणु भले ही मार लो हजार तुम 
पर रहना सदा मेरे कृतज्ञ तुम 
क्योकि ये जीवन है मेरी देन 
न रखना बंद कर अपने नैन 
गर भूल गए प्रकृति से मिलाप 
न बचेंगे बच्चे न कोई बाप 
ख़त्म हो जाएगी तुम्हारी हर व्यथा 
न बचेगी कोई भी तुम्हारी व्यवस्था 
खोना न वक़्त तुम कागज बटोरने में 
वक़्त न लगेगा मुझे तुम्हे समेटने में...... 





गुरुवार, 30 जनवरी 2020

चुप क्यों हैं तू


हर एक सवाल का जवाब बन
हर नींद का हसीं ख़्वाब बन।
सदियों के बंधनो को तोड़ कर
आसमां से ऊंची उड़ान भर।

संभल कर चल सके इस जग में
मन को इतना मजबूत कर ले।
कोलाहल में भी सच को सुन ले
ऐसा ढृढ़ निश्चय तू अब कर ले।

थी जो बाधा आगे बढ़ने में तेरी
ख़त्म हुई पिछली सदी बहुतेरी।
जो बाकि है रोक टोक वो भी
ख़त्म हो रही शिक्षा से सभी।

नारी सम्मान की बात न करना
पर अपमान भूल से न करना।
जब भी लिखा इतिहास युद्ध का
कारण बना यही पृष्ठ मूल का।

अब तो यह दो हजार बीस है 
न मन में अब कोई टीस है।
आगे कहानी अब चुकी है बढ़
नर नारी में नहीं कोई अनपढ़।


मंगलवार, 28 जनवरी 2020

समय का परिवर्तन

है जो वक़्त ये अभी
शस्त्र से न कम कभी।
बढ़े जो ये एक पग भी
मुड़े न पुनः ये कभी।

हो हर्ष फिर या हो शोक
लगा न सका कोई रोक।
बस बढ़ा बढ़ता ही गया
हुआ न कभी इसका लोप।

है बदलता रोज ये
रचता इतिहास नए।
धुप हो या हो छाँव
बनाते रहता पड़ाव नए।

वक़्त से की मित्रता 
मिली उसे सहजता।
न हुई कोई व्यर्थता
जिसने दिखाई गंभीरता।

सच्चाई जिसके समय में
ईमानदारी है जिसके कर्म में।
मेहनत हो अनुशासन से
संसार उसके चरणों में।

वक़्त की गोद में खेलने वाला
दुनिया को झुका सकता है।
वक़्त से बेवक़्त खेलने वाला
वक़्त को बदल सकता है।

हर बार वक़्त जल्द नहीं बदलता
कई बार वक़्त भी इंतज़ार करता है।

वक़्त का ताज हार स्वीकार कर
पुनः प्रयास करने पे मिलता है।

वक़्त की आदत है
इंसान की फितरत है।
प्रकृति का नियम है
हमारा संयम है।

आप देर कर सकते है पर वक़्त नहीं

"समय का परिवर्तन"

-आँचल मौर्य

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...