जिसकी करते थे बात
चल पड़े नए पथ पर
लेकर नई शपथ।
अब ये पथिक
न घाव देखेगा अपने
न देखेगा कोई सपने
न देगा कदमों को रुकने
ले शपथ चला अपने पथ।
थाम सको तो थामो हाथ
दे सकते तो दो साथ
न करना विश्वासघात
इतना करो आत्मसात
हो चाहे दिन या रात।
बहुत हुआ ये पथ का पाठ
लक्ष्य से भटके हुए हालात
स्वयं किए तुमने आघात
अब कहते हो क्या हुई बात
थोड़ा तो करो शर्म और लाज
झुक न सको तो स्नेह ही दो
स्नेह न हो तो आदर ही दो
वो भी न हो तो निरादर न हो
जीवन पथ की हो यही शपथ।
"एक सत्य ही एक धर्म सत्यपथ ही सत्यधर्म सनातनम
समय घड़ी ही ईश्वरत्व कालचक्र परमेश्वर आदिअनंतम"
-अमित(Mait)