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शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

राम

न मैं रावण न मैं राम,

मैं तो हूँ वो एक श्याम 

जब रुका पार्थ का पथ,

मैंने याद दिलाई शपथ। 

 

कर्म से तो ईश्वर न बच पायें,

मनुष्य तू क्यों इतना लजाये 

जब भी तेरा मन भागे घबरायें,

याद कर लेना मेरी कवितायें। 


सोचना न की धर्म की खातिर 

जान तुझे फिर देनी होगी,

न सतयुग न त्रेता न द्वापर 

ये कलयुग सिर्फ लेनी होगी। 


जब राम धरा पे थे तब 

हवा पानी सब निर्मल थे,

कृष्ण के अवतरण तक 

कौरव पांडव मित्रवत थे। 


आज धर्म पर चढ़ आया जो 

अधर्म, धर्म का चोला ओढ़,

अब बारी है ये सिर्फ तेरी 

हर असत्य अधर्म को फेंक। 

 

चाहे कर देना उल्लंघन प्रति मर्यादाओं का 

पर अंतिम सत्य-धर्म की हानि न होने पाए,

रखना याद अब न कोई कृष्ण न अर्जुन यहाँ

फिर भी हासिल करना तुझे ही धर्म विजय। 

 

जब जीतेगा धर्म धरा पे 

चहुँओर शांति छा जाएगी,

हर ओर उजाला होगा

प्रकृति संतृप्त हो जाएगी। 


-MAIT (मौर्य )



 


राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...