हर बार कांटों को फूलो से न मोला जाए
जब बिखरने लगे घर के हिस्से हिस्से
उन टुकड़ों को घर ना माना जाएं।
गर चाहते मार कोई अपना ना खाएं
हर बार मूक दर्शक बन न देखा जाए
हर बार हर वार न खुद ही झेला जाए
कभी तो इस वार में खुद कूदा जाएं
लिख रहा सिर्फ ये न समझा जाएं
हो शंका गर तो मेरे घर आया जाएं
जानते नही क्या बताए या छुपाएं
निःसंदेह इसे चेतावनी समझा जाएं।
जल रही है जो अग्नि विश्व के बाएं दाए
होगी जब समाहित एक ही ध्वज के साये
तब न बच पाएगी कोई काली घटाएं
पूरे विश्व में एक ही धर्म ध्वज फहराएं ।
-अमित(Mait)