शनिवार, 23 नवंबर 2019

आँखों का भ्रम था

आँखों का भ्रम था
या सामने स्वप्न था
जो हुआ दुखद था
दुःख यही सच था।

सोच ना पाया कुछ था
थोड़ा स्तब्ध - शून्य था
स्वेद से भीगा रक्त था
इस जग से विरक्त था।

जब सम्भला तो पाया
ना हाथ कुछ भी आया
मुश्किलें जिन्हे मैं माना
थी वो सिर्फ मेरी छाया।

दिखा दिया अंतर को
था क्या सदा सत्य वो
हल्का भी न हुआ रो
मन जो भारी तब वो

अब सोच हो रही खत्म
ख़ुशी को खा रहे गम
हठ जो किया खुद पर
पाकर उस लक्ष्य तत्पर

 

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