है जो वक़्त ये अभी
शस्त्र से न कम कभी।
बढ़े जो ये एक पग भी
मुड़े न पुनः ये कभी।
हो हर्ष फिर या हो शोक
लगा न सका कोई रोक।
बस बढ़ा बढ़ता ही गया
हुआ न कभी इसका लोप।
है बदलता रोज ये
रचता इतिहास नए।
धुप हो या हो छाँव
बनाते रहता पड़ाव नए।
वक़्त से की मित्रता
मिली उसे सहजता।
न हुई कोई व्यर्थता
जिसने दिखाई गंभीरता।
सच्चाई जिसके समय में
ईमानदारी है जिसके कर्म में।
मेहनत हो अनुशासन से
संसार उसके चरणों में।
वक़्त की गोद में खेलने वाला
दुनिया को झुका सकता है।
वक़्त से बेवक़्त खेलने वाला
वक़्त को बदल सकता है।
हर बार वक़्त जल्द नहीं बदलता
कई बार वक़्त भी इंतज़ार करता है।
वक़्त का ताज हार स्वीकार कर
पुनः प्रयास करने पे मिलता है।
वक़्त की आदत है
इंसान की फितरत है।
प्रकृति का नियम है
हमारा संयम है।
शस्त्र से न कम कभी।
बढ़े जो ये एक पग भी
मुड़े न पुनः ये कभी।
हो हर्ष फिर या हो शोक
लगा न सका कोई रोक।
बस बढ़ा बढ़ता ही गया
हुआ न कभी इसका लोप।
है बदलता रोज ये
रचता इतिहास नए।
धुप हो या हो छाँव
बनाते रहता पड़ाव नए।
वक़्त से की मित्रता
मिली उसे सहजता।
न हुई कोई व्यर्थता
जिसने दिखाई गंभीरता।
सच्चाई जिसके समय में
ईमानदारी है जिसके कर्म में।
मेहनत हो अनुशासन से
संसार उसके चरणों में।
वक़्त की गोद में खेलने वाला
दुनिया को झुका सकता है।
वक़्त से बेवक़्त खेलने वाला
वक़्त को बदल सकता है।
हर बार वक़्त जल्द नहीं बदलता
कई बार वक़्त भी इंतज़ार करता है।
वक़्त का ताज हार स्वीकार कर
पुनः प्रयास करने पे मिलता है।
वक़्त की आदत है
इंसान की फितरत है।
प्रकृति का नियम है
हमारा संयम है।
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