उम्मीदों पे तो दुनिया में हर कोई टिका है
होने को इनसे दूर हो जाऊ मैं पर कम्बख़्त
इन्ही लम्बी दूरियों ने करीब बनाये रखा है।
पता नहीं ये कोई आसरा है या कोई धोख़ा
हर एक बीतते लम्हे से पूछती हैं मेरी सांसे
इस जन्म मिल पायेगा या नहीं कोई मौका।
कभी घटती है तो कभी बढ़ती है ये उम्मीद
कभी लगती स्वप्न सी तो कभी लगती व्यंग्य
इस जीवन को संगीत से भरती हैं ये उम्मीद।
-अमित(Mait)
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