बहाव पानी का बहुत तेज है
खुद को न जानना ही हार
बाकी सब तो सिर्फ जीत है
यूं तो खड़ी थी ट्रेन स्टेशन में
पहुंच न पाया ये खीझ हैं।
सुलगती रही आग कुछ
इस तरह सीने में
खुद को झुलसा दिन रात
भिगा पसीने में
आने लगा मजा बेपरवाह
खुशी से जीने में।
-अमित
भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे राह...
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