कुछ बाते यूँ ही लिखे गए
विवाद यही कि क्यों न पढ़ें गए
लगता है तुम्हें किताब बदल दिए
किताब वही हैं बस पन्ने पलट गए।
कल न किसी ने रोटी खिलाये
आज मौत पे उसकी नेता भी रो दिए
खीचने फोटो लोग ये तमाम भिड़े
गर खुलवा लेते उसके ओठ सिले
न बुझते देश के गुमनाम दिये।
कोई रोये कितना अंत में तो हँसे
मुस्कान हर हाल के चेहरे में दिखे
न किसी का किसी से दिल दुखे
आशा यही आबाद हर कोई रहे।
थके कितना नींद सुकून की मिले
नींद वही है बस ख्वाब बदल गए
शब्द वही है बस विचार बदल गए
लक्ष्य वही है बस राह बदल गए।
-अमित
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