शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

गुनाह

ये सुबह भी बहुत अजीब होती हैं
बच्चों के रंगीन सपने तोड़ती हैं।
टिमटिमाते तारो से दुश्मनी लेकर
धुप की उजियारी चादर ओढ़ती हैं।।

खुद को हर किसी की नजर से गिराया
न दिया हिसाब न दिया कोई बकाया।
ओढ़ते रहा गुनाह की चादर कुछ यूं
न नजर बची न नजरिया बचा पाया।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...