शनिवार, 29 सितंबर 2018

आइना

चले थे कल सुबह पढ़ने पूरी किताब पर
दूसरा पन्ना पलटने की न हुई हिम्मत।
दिखा गया पहला पन्ना हमें वो आइना
देख जिसे शर्म लज्जा से हुआ सामना।।

भटकते तो वो है जिन्हे लक्ष्य का ख्याल नहीं होता
ज्ञान हो मूल तो लूटने से कोई कंगाल नहीं होता ।
रास्ता कितना भी लम्बा हो पहुंचेंगे हम हर मंजिल
क्योकि अब हमारी हर कोशिश में तुम हो शामिल ।।

पंक्तिया कुछ यू चुभी पल भर
गहरे जख्म बने कुछ मन पर।
सुबह जो शाम में हुई तब्दील
अक्षर भी पढ़ना हुआ मुश्किल।।

सितारे भी पड़ने लगे जो सूर्य पे भारी
क्योकि आई थी अब अँधेरे की बारी ।
शिकायत नहीं इस रात से मुझको शायद
आने वाली सुबह होगी और भी प्यारी।।

जब तक है मेरे साँस में साँस
न होगा कभी हार का अहसास।
जहां तक चलेगी धड़कन हमारी
वहां तक रहेगी मेरी उम्मीदवारी।।

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