है जो रुक रही ये मेरी सांसें
ये तो तेरी कमी का असर हैं
खुद अब तू मिलना भी चाहें
मिल जाना भी अब कहर हैं।
प्यार न सही साथ की थी तमन्ना
अब तो दिल टूट के चुका बिखर
दूरी ने दिल को कर दिया छन्ना
अब तो ख़ुशी से दूर दिल बेफ़िकर।
शांत वृक्ष की तलाश मिली केवल ठूठे
पर न जाने राह में कितनो के हाथ छूटे
हर पड़ाव पर न जाने कितने हमसे रूठे
पर मानव धर्म यही जो कर्म से ही ऊपर उठे।
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