वो न गली के आखिरी घर तक गया
न हर मोहल्ले के कोने कोने तक गया
फिर भी देखते ही देखते खौफ उसका
हर एक के मन में इस कदर फैल गया।
वो सड़क जिसमें हमने भी काटे थे दिन
आज दिखते लोग कुछ ही गिनती गिन
वो जिम और कैफे जहां लगता था मेला
वहाँ जमती रही धूल महीनो रहा अँधेरा।
वो सड़क आज हमसे कुछ यूँ रूठ गयी
सड़क तो रही वही पर मंजिल छूट गयी
चलने की थी जल्दी बहुत जिस सड़क में
आज वो सड़क सुनसान इस मौसम में।
सिनेमा जिसमें देखी हमने कहानी बहुत
आज लगे उसमे ताले हो गया वक़्त बहुत
गुपचुप चाट के ठेलो पे लगती थी जो भीड़
आज चुपचुप से बहुत घरो में खाते गुपचुप।
वो हॉर्न और सायरन से खुलती थी जो नींद
आज चिडियो के चहकने से होता शुरू दिन
ठहर किनारे जो घंटो फोन पे बाते होती थी
आज घरो में छतो से ही वो बातें होती है।
वो सड़क जिसमें हम कभी चलते ना थे पैदल
आज सिर्फ गिनी चुनी गाड़िया ही दौड़ रही है
लोग भूल गए है पिज़्ज़ा बर्गर और मोमोस
घर में दाल रोटी और चावल ही रहे है ठूस।
शायद ये वक़्त लोग भूल जाये
सीख समय की गुल हो जाये
लेकिन सीखने लौटेगा वक़्त जरूर
टूटेगा मानव फिर तेरा गुरुर।
आज जो हाथ धो मास्क लगा तुम
खुद को रहे सुरक्षित समझ तुम
पर रखना याद हर पल ये तुम
विषाणु भले ही मार लो हजार तुम
पर रहना सदा मेरे कृतज्ञ तुम
क्योकि ये जीवन है मेरी देन
न रखना बंद कर अपने नैन
गर भूल गए प्रकृति से मिलाप
न बचेंगे बच्चे न कोई बाप
ख़त्म हो जाएगी तुम्हारी हर व्यथा
न बचेगी कोई भी तुम्हारी व्यवस्था
खोना न वक़्त तुम कागज बटोरने में
वक़्त न लगेगा मुझे तुम्हे समेटने में......
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