शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020
खाली
शनिवार, 24 अक्टूबर 2020
राम
न मैं रावण न मैं राम,
मैं तो हूँ वो एक श्याम
जब रुका पार्थ का पथ,
मैंने याद दिलाई शपथ।
कर्म से तो ईश्वर न बच पायें,
मनुष्य तू क्यों इतना लजाये
जब भी तेरा मन भागे घबरायें,
याद कर लेना मेरी कवितायें।
सोचना न की धर्म की खातिर
जान तुझे फिर देनी होगी,
न सतयुग न त्रेता न द्वापर
ये कलयुग सिर्फ लेनी होगी।
जब राम धरा पे थे तब
हवा पानी सब निर्मल थे,
कृष्ण के अवतरण तक
कौरव पांडव मित्रवत थे।
आज धर्म पर चढ़ आया जो
अधर्म, धर्म का चोला ओढ़,
अब बारी है ये सिर्फ तेरी
हर असत्य अधर्म को फेंक।
चाहे कर देना उल्लंघन प्रति मर्यादाओं का
पर अंतिम सत्य-धर्म की हानि न होने पाए,
रखना याद अब न कोई कृष्ण न अर्जुन यहाँ
फिर भी हासिल करना तुझे ही धर्म विजय।
जब जीतेगा धर्म धरा पे
चहुँओर शांति छा जाएगी,
हर ओर उजाला होगा
प्रकृति संतृप्त हो जाएगी।
-MAIT (मौर्य )
रविवार, 18 अक्टूबर 2020
तलाश
है जो रुक रही ये मेरी सांसें
ये तो तेरी कमी का असर हैं
खुद अब तू मिलना भी चाहें
मिल जाना भी अब कहर हैं।
प्यार न सही साथ की थी तमन्ना
अब तो दिल टूट के चुका बिखर
दूरी ने दिल को कर दिया छन्ना
अब तो ख़ुशी से दूर दिल बेफ़िकर।
शांत वृक्ष की तलाश मिली केवल ठूठे
पर न जाने राह में कितनो के हाथ छूटे
हर पड़ाव पर न जाने कितने हमसे रूठे
पर मानव धर्म यही जो कर्म से ही ऊपर उठे।
सोमवार, 1 जून 2020
बदलता वक़्त
गुरुवार, 30 जनवरी 2020
चुप क्यों हैं तू
हर एक सवाल का जवाब बन
हर नींद का हसीं ख़्वाब बन।
सदियों के बंधनो को तोड़ कर
आसमां से ऊंची उड़ान भर।
संभल कर चल सके इस जग में
मन को इतना मजबूत कर ले।
कोलाहल में भी सच को सुन ले
ऐसा ढृढ़ निश्चय तू अब कर ले।
थी जो बाधा आगे बढ़ने में तेरी
ख़त्म हुई पिछली सदी बहुतेरी।
जो बाकि है रोक टोक वो भी
ख़त्म हो रही शिक्षा से सभी।
नारी सम्मान की बात न करना
पर अपमान भूल से न करना।
जब भी लिखा इतिहास युद्ध का
कारण बना यही पृष्ठ मूल का।
अब तो यह दो हजार बीस है
न मन में अब कोई टीस है।
आगे कहानी अब चुकी है बढ़
नर नारी में नहीं कोई अनपढ़।
मंगलवार, 28 जनवरी 2020
समय का परिवर्तन
शस्त्र से न कम कभी।
बढ़े जो ये एक पग भी
मुड़े न पुनः ये कभी।
हो हर्ष फिर या हो शोक
लगा न सका कोई रोक।
बस बढ़ा बढ़ता ही गया
हुआ न कभी इसका लोप।
है बदलता रोज ये
रचता इतिहास नए।
धुप हो या हो छाँव
बनाते रहता पड़ाव नए।
वक़्त से की मित्रता
मिली उसे सहजता।
न हुई कोई व्यर्थता
जिसने दिखाई गंभीरता।
सच्चाई जिसके समय में
ईमानदारी है जिसके कर्म में।
मेहनत हो अनुशासन से
संसार उसके चरणों में।
वक़्त की गोद में खेलने वाला
दुनिया को झुका सकता है।
वक़्त से बेवक़्त खेलने वाला
वक़्त को बदल सकता है।
हर बार वक़्त जल्द नहीं बदलता
कई बार वक़्त भी इंतज़ार करता है।
वक़्त का ताज हार स्वीकार कर
पुनः प्रयास करने पे मिलता है।
वक़्त की आदत है
इंसान की फितरत है।
प्रकृति का नियम है
हमारा संयम है।
आप देर कर सकते है पर वक़्त नहीं
"समय का परिवर्तन"
-आँचल मौर्य
राह
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