गुरुवार, 6 सितंबर 2018

किताब

न मुझसे कही गयी
न तुम्हारी सुनी गयी।
न बयां हो सकी
न दफ़न हो सकी।।

सूखे में थी बरसात
अकेलेपन में दी साथ।
अँधेरे में बनी चिराग
ये मेरी किताब।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...