बीतते हर लम्हे में हम खुद को ही खो रहे हैं ।
समझ नही पा रहे अपनी इस मुश्किल का हल
आत्मा है दुखी बह रहे नेत्रों से जल निश्छल।
तलाश में सुकून के दिन भर यूं भागते भागते
मान बैठे आराम ही भागना चाहते ना चाहते।
भटकते भटकते जब इन रास्तों में तुम खो जाओगे
पाकर मेरा सान्निध्य पुनः तुम पथ प्रशस्त कर पाओगे।
याद रखना मैं मिलूंगा उसी जगह पे
जहा तुम कभी किसी और को न पाओगे।
गीता की कई बार हुई भाषा परिवर्तन
इस बार परिवर्तन पे गीता मैं बताऊंगा।
रचा जिस समय को देखने तेरी ताकत
उस ताकत का रहस्य मैं सुलझाऊंगा।
किया जो तुमने इंतजार जो इतने युग
रखो धैर्य और थोड़ा और जाओ रूक।
गलत वो झेलेंगे जो सही वो भी झेलेंगे
क्योंकि रात या हो सुबह बच्चे तो खेलेंगे।
हैं अधूरी ये कथा ये बात मेरी मान लो
पूरी तुम्हे ही करनी ये व्यथा भी जान लो
हो अगर पढ़ रहे दूसरी बार इस पंक्ति को
तुम्ही बदलोगे इस जग को ये बात मन में ठान लो।
-अमित(mAit)
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