आज सुनो
कर्म की आग में तुम हो
धर्म के राग में तुम हो।
जन्म के उपहार में तुम हो
जीव के संहार में तुम हो।।
जीव के संहार में तुम हो।।
सत्य की राह पे मैं हूँ
धर्म की चाह में मैं हूँ।
मृत्यु की पनाह में मैं हूँ
खुद के इंतज़ार में मैं हूँ ।।
खुद के इंतज़ार में मैं हूँ ।।
तुम शाम की बची धुप हो
मैं भोर के पहले की रात्रि हूँ।
मैं भोर के पहले की रात्रि हूँ।
कुछ पल में खुद को खो दोगी
मैं दिन बन जहाँ में छाऊँगा।।
मैं दिन बन जहाँ में छाऊँगा।।
तुम थक चुकी अब इस पहर
मैं थकावट सब की मिटाऊंगा।
न कोई गांव न बचा कोई शहर
नयी सुबह जब होगी इस पहर ।।
तुम अंत हो कार्य दिवस का
मैं आरम्भ हु इस जग का।
नए दिन न हो कोई उदास
उजाले से होता ये प्रयास।।
उजाले से होता ये प्रयास।।
थका वही जो रुका कही
उठा वही जो रुका नहीं।
उठा वही जो रुका नहीं।
बंधा वही जो टूटा कही
जीता वही जो हारा कही ।।
जीता वही जो हारा कही ।।
सुनो बस आज मेरी बात
फिर कह लेना सारी रात।
फिर कह लेना सारी रात।
ना मैं कुछ कहूंगा इसके बाद
न हो पायेगी कोई मुलाकात।।।।
न हो पायेगी कोई मुलाकात।।।।
-Mait
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