जब
तक
अंकुर न बनता वृक्ष तब तक
पोषण न होता उसका जब तक।
अभिलाषा नहीं ये प्रण है मेरा
साथ न छूटे सुख से तेरा ।।
रहे उजाला हर पल हर क्षण
मुस्कान हो सदा तेरी तीक्ष्ण।
देते सदा उलाहना उसको
ना साँस रुके न जी पाए।।
रोतो को और रुलाना
और हसतो को खिलखिलाना।
चली आयी ये रीत पुरानी
न समझ पाया कोई ये कहानी।।
सब बैठे
है उस इंतज़ार
में
करे कब
कोई दूजा गलती।
रुला रुला
के जान देती
है बख्श
अश्रुधारा से पूरी
होती मुस्कान ।।
उम्र भर
जो ढंग से
जी न सके
वो देते
रहे राय की
हम कमर कसे।।
जब तक
रहेगा किस्मत में
काल
करते रहेगी
दुनिया इस्तकबाल।।
-Mait
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