मंगलवार, 7 अगस्त 2018

जब तक


जब तक
अंकुर न बनता वृक्ष तब तक
पोषण न होता उसका जब तक।
अभिलाषा नहीं ये प्रण है मेरा
साथ न छूटे सुख से तेरा ।।

रहे उजाला हर पल हर क्षण
मुस्कान हो सदा तेरी तीक्ष्ण।
देते सदा उलाहना उसको
ना साँस रुके न जी पाए।।

रोतो को और रुलाना
और हसतो को खिलखिलाना।
चली आयी ये रीत पुरानी
न समझ पाया कोई ये कहानी।।

सब बैठे है उस इंतज़ार में
करे कब कोई दूजा गलती।
रुला रुला के जान देती है बख्श
अश्रुधारा से पूरी होती मुस्कान ।।

उम्र भर जो ढंग से जी सके
वो देते रहे राय की हम कमर कसे।।
जब तक रहेगा किस्मत में काल
करते रहेगी दुनिया इस्तकबाल।।

-Mait

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...