नजारा देखने लगी है बहुत भीड़।
अब चलना होगा एक नए सफर पर
पाने हर समस्या की स्थिर तदबीर
लिखने को एक नई तक़दीर।
बताया रास्ता जो बताने वालों ने मुझे
पथिक को गलत या नज़र सही आया।
जब पहले पड़ाव से पहले ये दिन गया गुजर
साथ देने वादा किया जिन्होंने वो गए मुकर।
छाया जो नशा हमे इस डूबती शाम का
इस नजारे को सुबह की शुरुआत बताया।
जाए जिसको जाना हो वापस लौट कर
हमे तो केवल अपने लक्ष्य को हैं पाना।
नजारा कुछ यूं बदला चलते चलते
साथ देने का वादा किया जिन्होंने
वो सब नदारद हुए कारवां से
जब मुकम्मल हुआ सफर तो
पैर थे अंजुमन में।
हर नजारा हैं बिखरता
कौन समय जो टिकता
उजाले के बाद अंधेरा
रात के बाद सवेरा।
मौका जो मिले मुझे बता देना
अगर हो कोई शिकवे गिले
की कौन सा नजारा जो भाया
कौन जिसने आखो को भिगाया
हो सके जहा तक साथ चले
पूछने का मौका मिले न मिले।
अब देख कर मेरे कातिल को
न मेरी रूह कांपी थी
शरीर ठंडा हो चुका मेरा
देख उसने जश्न मनाया था
फेक सड़क पर मेरी लाश
हुआ वो थोड़ा हताश
की फेका वो तो मिट्टी था
बन मटका फिर वो आएगा
पी कर पानी उस मटके का
जब वो शांत हो जायेगा
उभर पड़ेगा वो विष
जो उसने जग में घोला था
अंत होगा जब उसका
वो संभल न पाएगा।
लौटूंगा फिर इसी पावन धरा पर
यही मेरी पहली और अंतिम प्रण
ले वे भले प्राण मिले जीवन अल्प
पर न बदला न बदलेगा ये संकल्प।
-अमित(Mait)
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