रविवार, 3 जुलाई 2022

माँ

न एक दिन और ना ही एक पल  चाहिये 

उसे न छुट्टी और ना ही कोई आराम चाहिए 

जीती है जिसके लिए वो उनका थोड़ा सब्र,

स्नेह, लगाव, प्रेम, जुड़ाव के साथ 

मान - सम्मान चाहिए। 


दौड़ती हुई जिंदगी में सबके साथ 

एक सुलझी सुबह एक शाम चाहिए

माँ के कदमो की आहट न सुनाई दे तो,

चिंता तो घर को रहती माँ की डांट ही सही 

आवाज आनी चाहिए। 


कपडे से लेकर कमरे तक गर साफ़ चाहिए  

करने को सब दुरुस्त माँ के हाथ पड़ने चाहिये 

बच्चो का गृहकार्य हो या हो बाजार व्यवहार,

करती घर के सारे कार्य लाती सावन सी बहार

और आनी चाहिये।  


बिना बोले आँखों से सब को समझा लेती है 

दर्द अपने झेल कर सब को सहज जीवन देती है 

अपनी कद से ज्यादा दुसरो को ऊंचाई देती है 

एक दिन ही क्यों हर दिन उसे अथाह ख़ुशी  

मिलनी ही चाहिए। 


जैसे हर रोज रात के बाद सुबह होती है 

वैसे ही माँ के साथ जिंदगी बिना मौत होती है 

जैसे ह्रदय दिन-रात हमें जीवित रखता लगातार 

वैसे ही माँ के बिना हमें जीवन का कोई सार 

नहीं दिखना चाहिए। 



-अमित 

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