सुबह उठा फिर सोया
सोकर उठा और फिर सोया
ना जाने इस आलस में मैंने
कितने कीमती पलो को खोया।
जब उठा पलंग से
सूरज दूर क्षितिज से
चमक रहा आग के गोले सा
सूखे गमले में पौधों को
पानी डाल मुस्काया मैं।
सपना जो देखा वो
स्मृति में ठहरा इस कदर
न भूल सका मैं कई पहर
कोशिश की जब लिखने की
भूला पहला ही अक्षर।
डराते हैं जो सपने
वो कई बार जगाते भी है
जो लुभाते है अपने
वो कई बार सताते भी है
स्मृति का खेल ये।
-अमित(Mait)
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