जिसका मन हो शिशु सा निश्छल
जिसके बाजुओं में हो शक्ति प्रबल
जिसके आने से असहाय हो संबल
अजेश है वो।
जिसकी मानवता पे हो श्रद्धा अपार
जिसका लक्ष्य हो सेवा सदा सेवादार
जिसके पथ पर प्रकृति लाये बहार
अजेश है वो।
जिसकी क्षमता हो विश्व को भुजाओं पे उठाने की
इस जग के विषैले सूर्य को निगल पाने की
विषमताओं के राक्षसी मुँह से निकलने की
अजेश है वो।
जो कर सके मुसीबतो को एक छलांग में पार
जो सुनहरे चमकते अधर्म को दे सके अग्निद्वार
जो जीत सके दुसरो अपने मन को बारंबार
अजेश है वो।
जो कर सके समय से भी लम्बा इंतजार
जो बिता सके मौन सावन की बहार
ईश्वर से मिलने हर बार युगों हजार
अजेश है वो।
जो स्वयं का होना ही ईश्वर के होने में माने
जो अपना एकमात्र धर्म सिर्फ सेवा ही जाने
जिए वो ऐसे जिसे दुनिया एक आदर्श माने
अजेश है वो।
नोट : ईश्वर =पालक + विश्व के कुछ लोग , सेवा=सद्भावना सहित कर्म
-अमित(Mait)
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