अगर ईश्वर स्वयं तकदीर लिखता
किसी का कम न अधिक लिखता
भाग्य लिखते तो कर्म है स्वयं के
कोई स्वर्ण तो कोई घास बेचता।
न कोई दुःखी गमगीन दिखता
यूं तो हजारों साल बीत गए
हर कोई खोज में ही निकलता।
जब सूर्य खुद ज्वाला से भागता
तब विनाश खुद राग अलापता
झूठ सच से गुना कई तेज फैलता
तब मानवता अनंत प्रहार झेलता।
जब व्यक्ति सत्य के लिए खड़ा होता
दुनियां पत्थरों से स्वागत रोज करती
हर असफल प्रयास पर बारंबार हसती
सफलता के बाद सबका मुंह बंद होता।
अमित(Mait)
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