फस चुका इस कदर
बीतते हर लम्हे में रहा
खो अपनी उमर
अब तो सांसे लेना भी
होता जा रहा दूभर।
थका हूँ विश्राम से मैं
हर रोज इस कदर
उठता हूँ सुबह तो दिन
जाता है ठहर
कोशिश आगे बढ़ने की
पर बीतते सिर्फ पहर।
उठ गया जो मैं चलने
अपना ये सफर
ख़त्म होगी हर मुश्किल
बनेगा अमृत हर जहर
जहाँ चाह वहाँ राह
ये एक ही डगर।
तेरा साथ हो या न हो
मै चलूँगा हर पहर
मोह से भी न रुकूंगा
न कोई गांव न शहर
ध्येय से पहले न थमेगा
मेरा ये अनूठा सफर।
-अमित(Mait )
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