मंगलवार, 30 अगस्त 2022
झुलसते सपनो के बीच
गुरुवार, 25 अगस्त 2022
हारती किस्मत से लड़ती मेरी हिम्मत
बढ़ने लगे हद से ज्यादा जग में हैवानियत
जब होने लगे ज़माने भर में हमारी जिल्लत
कर्म क्षेत्र में हो वक़्त की बेइंतहा किल्लत
संदेह में हो जब हमारी ये सच्ची मासूमियत
खोने लगे आस्था श्रद्धा भक्ति प्रेरणा ये जगत
तब खुद से खुद जंग हैं ये समय की जरुरत
मरती उम्मीदों के संग मेरी असंख्य जुर्रत
पुराने खयालो के रंग मेरी अनूठी जिद्दत
भिड़ता रोज बचाने को धरा की ये अस्मत
हारती किस्मत से लड़ती मेरी अनंत हिम्मत।
-अमित (Mait)
मंगलवार, 23 अगस्त 2022
राजनीति
मंगलवार, 16 अगस्त 2022
उलझन
मंगलवार, 9 अगस्त 2022
कोशिश एक और
रविवार, 7 अगस्त 2022
साल बीते
शुक्रवार, 5 अगस्त 2022
सिर्फ तेरा ही नाम होगा।
गुरुवार, 4 अगस्त 2022
इतिहास रच जायेगा।
बुधवार, 3 अगस्त 2022
चाहत
बिना तेरी चाह के चाहा हर रोज तुझे खुद से भी ज्यादा
न हुई कोई मुलाकात हमारी न देखी तेरी सूरत दुबारा
बीते साल पे साल पर न प्रेम हुआ कम पर आँखे नम
बीत जाये जिंदगी सारी पर हमारी ये उम्मीद है कायम
मिलेंगे उसी रस्ते पे जिसपे थे कभी एक दूसरे के संग
देखेगा ये जहां एक अधूरे पर अनूठे प्रेम के नूतन रंग।
-अमित
मंगलवार, 2 अगस्त 2022
In meeting with soul
रविवार, 31 जुलाई 2022
स्वतंत्रता
जिस स्वतंत्रता का सूर्य न होगा कभी अस्त
गान करता देश समस्त, दिन है वो पंद्रह अगस्त।
जिज्ञासा थी जिस आज़ादी की मिली वो अंशतः
बाकि है स्थापित होनी सद्भाव सद्मार्ग शांति पूर्णतः।
७५ वर्ष भी पड़े कम पाने में लक्षित गति
अब तय करने होंगे त्वरित और तीव्र रणनीति।
अब बात नहीं करने होंगे सारे लंबित काम तमाम
वरना आगे होंगे न इतिहास में हमारे तुम्हारे नाम।
ज्ञान जो एकत्रित किया सदियों से उसका मान रखो
अनुपयोग पे काम करो सदुपयोग पे जान रखो।
जो समझे उसे समझाओ वक़्त यूँ अब न बिताओं
युद्ध के द्वार पर बैठे मायूसी से सर न झुकाओ।
शायद मुश्किल हो जीत ये लेकिन लड़ना बहुत जरुरी है
अब आगे तुम सब ये देखोगे यही अंतिम मजबूरी है।
धर्म युद्ध की इस बेला पर अब हाथ जो न उठा पायेगा
अधर्म का वाहक उसका सर तन से उड़ा ले जायेगा।
आज शायद ये सोच कर तुम गलत को सह जाओगे
कल सही खोजने को तुम यूही भटकते रह जाओगे।
शाम को जब कोशिशों के बाद नींद ना तुम्हें आयेगी
याद रखना मेरी ही बात तुमको स्वप्न में ले जाएगी।
शब्द भटक सकते है मेरे अर्थ तुम कुछ भी निकाल लेना
भावनाओं के मेरे इस भवसागर से तुम स्वयं को बचा लेना।
-अमित (M AIT )
शुक्रवार, 29 जुलाई 2022
समेट जरा बिखरकर
सर को झुकाकर
तन को तुड़वाकर
साथ सबके मिलकर
मन की आवाज़ दबाकर
भाग रही भीड़ इस दंभ पर।
सोयी दुनियाँ होने भोर पर
कैसे होगी पार ये दौड़ कर
शक्ल तो है रंग उस दीवार पर
पार उसके क्या ये तो तू गौर कर
साथ अपना दे इस दुनियाँ को छोड़ कर।
समेट जरा बिखरकर
उठ जरा सा गिरकर
हो न बेचैन अब सब्र कर
अपनी धुंध का तू अंत कर
मिलेगी सफलता उसी पथ पर।
-अमित(Mait )
सोमवार, 25 जुलाई 2022
शपथ
रविवार, 24 जुलाई 2022
लक्ष्य वही है बस राह बदल गए
कुछ बाते यूँ ही लिखे गए
विवाद यही कि क्यों न पढ़ें गए
लगता है तुम्हें किताब बदल दिए
किताब वही हैं बस पन्ने पलट गए।
कल न किसी ने रोटी खिलाये
आज मौत पे उसकी नेता भी रो दिए
खीचने फोटो लोग ये तमाम भिड़े
गर खुलवा लेते उसके ओठ सिले
न बुझते देश के गुमनाम दिये।
कोई रोये कितना अंत में तो हँसे
मुस्कान हर हाल के चेहरे में दिखे
आशा यही आबाद हर कोई रहे।
थके कितना नींद सुकून की मिले
नींद वही है बस ख्वाब बदल गए
शब्द वही है बस विचार बदल गए
लक्ष्य वही है बस राह बदल गए।
-अमित
मंगलवार, 12 जुलाई 2022
स्मृति
कब चालू होगा
रविवार, 10 जुलाई 2022
अनूठा सफर
चुप क्यों हैं तू
चुप क्यों हैं तू,
मैं नारी हूँ, मैं हारी हूँ
ना तू यह मलाल कर,
ना खड़ी तू देख गलत को,
अब तो तू बवाल कर,
रास्ते ना मिले तो तू,
खुद की राह निर्माण कर।
चुप क्यों हैं तू,
ना तू अपनी आवाज दबा,
अब तो तू सवाल कर,
ना मिले जवाब तो,
खुद जवाब तलाश कर,
कुछ तो अच्छा ढूँढ़ ले खुद में,
ना मन को यूँ तू उदास कर।
चुप क्यों हैं तू,
जो भी पास है तेरे,
उससे ही तू कमाल कर,
शिक्षित हुआ समाज,
फिर भी कोख़ में मारी है,
ना खड़ी तू देख गलत को,
अब तो तू बवाल कर।
हिंदी दिवस मनाने को
जो करे साइन न करे हस्ताक्षर
न कर सके प्रण जो बच्चो को
हिंदी माध्यम में पढ़ाने का
नहीं है अधिकारी वो
हिंदी दिवस मनाने कोहिंदी नहीं कोई मंजिल ये तो हैं सफर
कोरोना की चिंगारी पर माँ ये भारी
प्रारम्भ होना चाहिए देश का विकास
पिता का पत्र हिंदी मूल महाकाल
शोर मत करो बनो परिश्रमी किसान
जो बोओगे वही काटोगे जाओ मान
हिंदी ही है हिंदुस्तान की जान।
अमित(MAIT)
उद्देश्य
चले मीलों बिना उद्देश्य
मिला न कोई भी सन्देश।
जब चले संग ले लक्ष्य एक
मिला जीवन को ये उद्देश्य।
भोर में उठ कर भागा जो भी
साँझ में उसका हक़ विश्राम
हो किसी का जीवन संग्राम
जीत मिली और भागी हार
जिसने आगे बढ़ किया प्रहार।
-अमित(Mait)
स्वप्न
स्वप्न जो था
सच न वो था
सुकून था
पर जो भी था
टूटा जब
टूटा मैं
अंदर से।
जगा जब
जग सोया था
भोर हुआ था
तारे लौटते थे
सूर्य क्षितिज पे
इंतजार में
नयी सुबह के।
उठा बिस्तर से
न निकला स्वप्न से
दुविधा ऐसी
जान लगी फसी
गायब हुई हसी
स्वप्न सही या
जीवन सही।
लड़ाई चली उम्र भर
न स्वप्न हुए ख़त्म
न भरे कोई जख्म
चोट ऐसी दिल पे
खायी ऐसी हमने
सो जाये तो भय
जागे तो लगे स्वप्न।
-अमित(Mait)
युद्ध का तत्व
जंग के मैदान में जब खुद को पाया
लड़ने से न खुद को रोक पाया
काल का साया चहुओर छाया
युद्ध गीत जो तुमने गाया
तैयार खुद को हमने पाया।
उखड़ने लगे आलीशान दरख़्त
ह्रदय होने लगे कुछ और सख़्त
जमीं पे फैलने लगा लाल रक्त
समझ गया बचा है कम वक़्त
यही इस युद्ध का तत्व।
-अमित(Mait)
चांदनी
जिस चाँद के लिए सूरज को भुलाया
किसी और के लिए मुझे किया पराया।
जिसके लिए रात भर खुद को जलाया
दिन होते ही अपने लिए अँधेरा पाया।
शाम को जब दुबारा चाँद आया
चांदनी ने दिल को खूब रिझाया।
खो गयी सारी की सारी छाया
जब अमावस्या का दिन आया।
आज तो ऐसा दिन हैं आया
खोयी चांदनी खोया उजाला।
न प्याली बची न प्याला
ख़त्म हुई मधुशाला।
-अमित(Mait )
शनिवार, 9 जुलाई 2022
नजारा
भटकता मन
शुक्रवार, 8 जुलाई 2022
रात
गुरुवार, 7 जुलाई 2022
राह
बुधवार, 6 जुलाई 2022
तकदीर
मंगलवार, 5 जुलाई 2022
अजेश है वो
जिसका मन हो शिशु सा निश्छल
जिसके बाजुओं में हो शक्ति प्रबल
जिसके आने से असहाय हो संबल
अजेश है वो।
जिसकी मानवता पे हो श्रद्धा अपार
जिसका लक्ष्य हो सेवा सदा सेवादार
जिसके पथ पर प्रकृति लाये बहार
अजेश है वो।
जिसकी क्षमता हो विश्व को भुजाओं पे उठाने की
इस जग के विषैले सूर्य को निगल पाने की
विषमताओं के राक्षसी मुँह से निकलने की
अजेश है वो।
जो कर सके मुसीबतो को एक छलांग में पार
जो सुनहरे चमकते अधर्म को दे सके अग्निद्वार
जो जीत सके दुसरो अपने मन को बारंबार
अजेश है वो।
जो कर सके समय से भी लम्बा इंतजार
जो बिता सके मौन सावन की बहार
ईश्वर से मिलने हर बार युगों हजार
अजेश है वो।
जो स्वयं का होना ही ईश्वर के होने में माने
जो अपना एकमात्र धर्म सिर्फ सेवा ही जाने
जिए वो ऐसे जिसे दुनिया एक आदर्श माने
अजेश है वो।
नोट : ईश्वर =पालक + विश्व के कुछ लोग , सेवा=सद्भावना सहित कर्म
-अमित(Mait)
रविवार, 3 जुलाई 2022
डूब गया
माँ
न एक दिन और ना ही एक पल चाहिये
उसे न छुट्टी और ना ही कोई आराम चाहिए
जीती है जिसके लिए वो उनका थोड़ा सब्र,
स्नेह, लगाव, प्रेम, जुड़ाव के साथ
मान - सम्मान चाहिए।
दौड़ती हुई जिंदगी में सबके साथ
एक सुलझी सुबह एक शाम चाहिए
माँ के कदमो की आहट न सुनाई दे तो,
चिंता तो घर को रहती माँ की डांट ही सही
आवाज आनी चाहिए।
कपडे से लेकर कमरे तक गर साफ़ चाहिए
करने को सब दुरुस्त माँ के हाथ पड़ने चाहिये
बच्चो का गृहकार्य हो या हो बाजार व्यवहार,
करती घर के सारे कार्य लाती सावन सी बहार
और आनी चाहिये।
बिना बोले आँखों से सब को समझा लेती है
दर्द अपने झेल कर सब को सहज जीवन देती है
अपनी कद से ज्यादा दुसरो को ऊंचाई देती है
एक दिन ही क्यों हर दिन उसे अथाह ख़ुशी
मिलनी ही चाहिए।
जैसे हर रोज रात के बाद सुबह होती है
वैसे ही माँ के साथ जिंदगी बिना मौत होती है
जैसे ह्रदय दिन-रात हमें जीवित रखता लगातार
वैसे ही माँ के बिना हमें जीवन का कोई सार
नहीं दिखना चाहिए।
-अमित
शनिवार, 2 जुलाई 2022
उम्मीद
उम्मीदों पे तो दुनिया में हर कोई टिका है
होने को इनसे दूर हो जाऊ मैं पर कम्बख़्त
इन्ही लम्बी दूरियों ने करीब बनाये रखा है।
पता नहीं ये कोई आसरा है या कोई धोख़ा
हर एक बीतते लम्हे से पूछती हैं मेरी सांसे
इस जन्म मिल पायेगा या नहीं कोई मौका।
कभी घटती है तो कभी बढ़ती है ये उम्मीद
कभी लगती स्वप्न सी तो कभी लगती व्यंग्य
इस जीवन को संगीत से भरती हैं ये उम्मीद।
-अमित(Mait)
शुक्रवार, 1 जुलाई 2022
यात्रा
यात्रा क्या है?
उससे पूछो जिसने पथ को ही घर
राहगीरों को ही पडोसी
प्रकृति को पालक तुल्य
खुले आसमान को चादर
सूर्य-चंद्र को पथ प्रदर्शक
और मंजिल को ही ईश्वर बना रखा हैं।
यात्रा संगम है पथ और पथिक का
यात्रा गणित है शून्य से अनंत का
यात्रा तो सार है मानव चरित्र का
यात्रा मर्म है जन्म से स्मरण का।
हैं कौन ऐसा जो यात्रा से वंचित है
ऐसा क्या जो सदियों से संचित हैं
अमर कौन जो विनाश से सुरक्षित है
यात्रा सार ये गतिमान ही जीवित है।
अब जब
यात्रा मंजिल से दूर ही ख़त्म हो रही
आँखों से धूल न अब ख़त्म हो रही
दिखायी आगे मंजिल न पड़ रही
समझ लो बाकि है लम्बा रास्ता
ये केवल एक पड़ाव जो यहाँ पड़ रही
लो विश्राम और थोड़ा तो सब्र करो
सुबह खुद तुम्हारा इंतज़ार कर रही
पाओगे मंजिल लेश मात्र संदेह नहीं
बस यात्रा का साथ कभी छोड़ना नहीं
पथिक वो महान जो लक्ष्य से पहले
न भटके, न थके और न रुके कभी
पर जो दुसरो के लिए थक-भटक कर
साथ चल लक्ष्य पाए सर्व शक्तिमान वही।
इस जग में ऐसा कोई भी ईश्वर हुआ नहीं जिसने यात्रा का कष्ट झेला नहीं
ये मनुष्यत्व से ईश्वरत्व की है सीढ़ी है सागर से पर्वत की संयोग की है बेला
वो उतना ही निखर आया जितना कष्ट और दुःख और विरह जिसने झेला।
यात्रा से स्वयं ईश्वर ही न बच पाए -
जिसने यात्रा में ही रक्षा की वो राम, जिसने रक्षा में जीवन यात्रा की वो कृष्ण कहलाये
जिसने सत्य के लिए की यात्रा वो बुद्ध, और जिसने यात्रा ही सच कि की वो जैन कहलायें
यात्रा का उद्देश्य स्थापना हो तो प्रगति-
जिसने धर्म के लिए राज स्थापित किया वो युधिष्ठिर धर्मराज कहलाये(इंद्रप्रस्थ -दिल्ली)
जिसने राज के लिए धर्म स्थापित किया वो आचार्य चाणक्य कहलाये(मगध - पटना)
जिसने भविष्य को सूरज दिया लोकतंत्र का वो सम्राट अशोक कहलाये(पंचायत प्रणाली)
जिसने बिना किसी बाहरी मदद सिकंदर को हराया वो राजा पोरस कहलाये(राजा पुरुषोत्तम)
जिसके रहते अरबो ने घुटने टेके हुए विफल सिंध को न कर पाए पर दाहिर कहलाये(सिंध-ईरान)
जिसने न हारा कोई भी युद्ध ४१ में से वो पेशवा बाजीराव कहलाये(चौथे पेशवा महाराष्ट्र)
जिसके एक कदम बढ़ाने से अंग्रेजो की नींद उडी वो नेताजी सुभाषचंद्र बोस कहलाये(बंगाल)
जिसके जोश से दुनिया का शक्ति केंद्र हिल गया वो प्यारे लाल बहादुर शास्त्री कहलाये(प्रधानमंत्री)
जिसने देश को दूरदर्शी सोच दे अंदर से जगाया वो सर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम कहलाये(राष्ट्रपति)
ये भारत ऐसे उदाहरणों से भरा है की मुश्किल हर एक को लिख पाए
अब बारी है आपकी यात्रा पूरी कर एक नया उदाहरण बनायें ।
गुरुवार, 30 जून 2022
धूप
बुधवार, 29 जून 2022
वार(धर्म)
मंगलवार, 28 जून 2022
सुलझी साँझ
सोमवार, 27 जून 2022
धुली हुई स्याही
शुक्रवार, 24 जून 2022
ललकार
राह
भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे राह...
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कुछ दीपक रूपी व्यक्तित्व हमें हमेशा मार्ग दिखाते है फिर चाहे वे इस संसार में हो या न हो इस बे-फर्की से कुछ दीप मन में भी जलने चाहिए ...
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जब तक अंकुर न बनता वृक्ष तब तक पोषण न होता उसका जब तक। अभिलाषा नहीं ये प्रण है मेरा साथ न छूटे सुख से तेरा ।। रहे उजाला हर...
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भारतीय स्वतंत्रता दिवस 5 - प्रतिज्ञा करे की एक दिन की देशभक्ति की जगह आज से हम १. रोज १० मिनट देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों और इतिह...