गुरुवार, 30 जून 2022

धूप

जब धूप हो बाल्टी भर
भूख समुद्र से बढ़ कर
मजदूर भागे काम पर
क्षुधा अग्नि के नाम पर।

श्रम के स्वेद से स्नान कर
अपनी छाती तान कर
कर्म को ही पूजा मानकर
मालिक के काम आसान कर।

निकलता जब काम तमाम कर
झुकी कमर थकी आंखे ले कर
घर पहुंच परिवार से मिल कर
थकान हो जाती न के बराबर।

अगली सुबह की तैयारी सोच कर
मन को शांत करने कोशिश कर
सो जाता चक्षु जल को सुखों कर
आज से अच्छे दिन की उम्मीद कर।


अमित(Mait)

बुधवार, 29 जून 2022

वार(धर्म)

यूं ख्वाबों को हकीकत से न तौला जाए
हर बार कांटों को फूलो से न मोला जाए
जब बिखरने लगे घर के हिस्से हिस्से
उन टुकड़ों को घर ना माना जाएं।

गर चाहते मार कोई अपना ना खाएं 
हर बार मूक दर्शक बन न देखा जाए
हर बार हर वार न खुद ही झेला जाए
कभी तो इस वार में खुद कूदा जाएं

लिख रहा सिर्फ ये न समझा जाएं
हो शंका गर तो मेरे घर आया जाएं
जानते नही क्या बताए या छुपाएं
निःसंदेह इसे चेतावनी समझा जाएं।

जल रही है जो अग्नि विश्व के बाएं दाए
होगी जब समाहित एक ही ध्वज के साये 
तब न बच पाएगी कोई काली घटाएं 
पूरे विश्व में एक ही धर्म ध्वज फहराएं ।

-अमित(Mait)

मंगलवार, 28 जून 2022

सुलझी साँझ

सुबह की पहली किरण से किया प्रण ये
चाहे हो दिन कितना भी बोझिल और तंग
सांझ होगी हर हाल में सुकून के आवरण में।

गया जब सूची थी लंबी कर्म भूमि पर
वरीयता दे प्रारंभ किया जो कार्य-कर्म
भीगता रहा अपने उलझनों से दिन भर।

उम्मीद थी की सांझ तक सब हो जायेगा 
जो बिगड़ा था मेरा सब अब बन जायेगा
सुखद दास्तां के कुछ पृष्ठ तो लिख पाएगा।

शाम की तस्वीर कुछ यूं बिगड़ी
थकी आंखे होने लगी बोझिल
उम्मीद की तस्वीर हुई ओझल।

दिन गया ढल न मिल सका फल
लक्ष्य को लगा देंगे अब पूरा बल
कमाल होगा कल उम्मीद ही हल।

अमित(Mait)

सोमवार, 27 जून 2022

धुली हुई स्याही

समय के पन्ने की तंदुरुस्ती लगी घटनी
समय बीता और स्याही होती गई धुंधली
लिखा था जो सत्य मुश्किल हुआ पढ़ना 
लोग निकाल रहे मतलब अब अपना अपना।

जिसने देखी स्याही उस किताब की
खुद ही दी गवाही उस ख्वाब की
जो सत्य सबकी नजरों से बचा रहा
हर पल पास अपने मुझे ही बुला रहा।

हो शांति जैसे किसी अंधेरे कोने में बैठी शोर
पता नही क्यों वो झांके वक्त बेवक्त मेरी ओर
पानी से भी ज्यादा प्यास की लगा रही जोर 
जैसे इंतजार अंधेरी काली रात के बाद भोर।

धो डाला हर पन्ना जिसमे थी गुनाह की छाया
धो डाली हर पंक्ति जिसमे थी बदइंतजामी
मिटा डाला हर दाग जो लगा था इस पर
अब तैयार था दिशाहीन एक नये पथ पर।

धो न पाया पर अपने मन को क्षण भर
क्योकि पढ़ लिए थे वो सारे धुंधले अक्षर
बन गए थे वो सागर से भी गहरे जलभर
स्मृति कागजी होती तो मिटा देते पर।

धोया इतना मन को हमने
पड़ गए छाले हाथो में हमारे
शांति और एकाग्रता तो मिले 
वस्त्र हुए स्वेद और रक्त से गीले।

धो धो कर धुल गए 
धोने के सपने
धो न पाए जो दुःख
थे और हैं अपने।

 - अमित (Mait)

शुक्रवार, 24 जून 2022

ललकार

सुधार
........करनी होगी


बिगड़ी जो तबियत है
रूठी जो किस्मत है
वक़्त की जो जरूरत 
हालात की मरम्मत।

वक़्त की ये ललकार
नव किरणों की बौछार
पक्षियों की चहचहकार
रात की वो करुण पुकार।

जब हार पहुंच चुकी हो द्वार पर
सेना का मनोबल हो ढलान पर
तब जो हो लड़ने को जोश भर
जीत उसी की निश्चित तौर पर।

टूटती हुई पंक्तियों से
भाव जोड़ने की
कोशिश इस हार को 
जीत में बदलने की।

शनिवार, 11 सितंबर 2021

हिंदी

हिंदी सिर्फ भाषा नहीं ये है एक परिभाषा 

हर निराशा को हटा लाती नयी आशा। 

इतिहास से लेकर भविष्य के पन्नो तक 

गुंजायमान है इसकी प्रखर ओजस्वी आभा।

 

राष्ट्र की तरह इसका ह्रदय विशाल

प्यार की ये मूर्ति संयम की मिसाल।

हो शब्द किसी भी भाषा के उत्पन्न 

कर समाहित स्वयं को करती संपन्न। 

 

कमजोर जो समझे इसे कमजोर है वो 

गुणवान है ये पर गुणगान न पाये जो। 

जो हिंदी से ही पाते वैभव और विलास 

नहीं करते तिनका भी हिंदी का विकास। 

 

वास्तव में ये है एक बड़ा अपमान

सिर्फ १४ सितम्बर को देते जो सम्मान।

हिंदी एक दिन की नहीं मेहमान 

हिंदी तो है विश्व विकास की पहचान।


समझ रहे जो हिंदी को एक नदी शांत 

जाग जाये वरना उठेगी वो लहर अनंत। 

भीग जायेगी हर धधकती भयावह अग्नि 

सर्वत्र व्याप्त होगी सिर्फ हिंदी की ध्वनि। 


सम्मान करे उस मातृभूमि का 

जिसने हमें दिया ये जीवन।

सम्मान करे उस मातृभाषा का 

जिसने हमें दिया ये पहचान। 


- अमित मौर्य

 


 

रविवार, 9 मई 2021

विषाणु का अंत

आसमान में बादल तो है बहुत
बादलों में है पानी की किल्लत
इंसानी धमनी शिराओं में जो रक्त
नहीं रह गया अब उबाल वो तप्त
धूमिल हो रही मानवता इस वक़्त
हो रही बेहिसाब मौते वक़्त बेवक़्त
अगर जाग जाती मानवता उस वक्त
टूट रही थी सांसे प्रकृति की दरख़्त
उठाना जरूरी था कदम बहुत सख्त
लालच लालसाओं से झुके वो तख़्त
न कर पाए कोई समझौता उस वक़्त
अब प्रकृति के झेलो ये वार सख़्त...


सुबह का अंधेरा कुछ इस कदर बढ़ा हैं
दरवाजे पे जैसे कोई मौत लिए खड़ा हैं
बाहर से आती हवा में भी ज़हर भरा हैं
सारी दुनियाँ रेगिस्तान सिर्फ घर घड़ा है
वो प्यास और भूख से जो सिर्फ लड़ा है
परिवार की छाया में जो पला - बढ़ा है
बाहर का राक्षस बाहर ही मरा है
घर मे जब जगह उसे न मिला है
विषाणु का अंत सिर्फ ऐसे ही रचा है✍️

नमस्कार

आसमान में सूर्य नही तो क्या सितारे कम है
अंधेरे से जो न हारे उनके उजाले क्या कम है
अंधेरा जब होता घना तो 
एक छोटी चिंगारी भी दिख जाती है दूर से
लड़ाई जब होती है लंबी तो 
हिम्मत से जीत दिख जाती है गुरूर से
थाम के जो बैठे है हाथ उनको है मेरा 
प्रणाम कतरे कतरे से
जो कोई चाहे भागना छोड़ हाथ मेरा 
नमस्कार उनको दूर से...

उड़ान

एक ओर तकलीफों का ये तूफान
दूसरी ओर है उम्मीदों का आसमान
जीतना जरूरी था बनना था महान
अब जब बचाना था पूरा ये जहान
बना सारथी कृष्ण इस बार विज्ञान
हर बार विषाणु रहता न एक समान
बदलता गया रूप छीने कई जान
अंततः पा ही लिया मैंने वो महाज्ञान
जिससे जीवंत रहे मानवता की उड़ान



शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

नेताजी

23 जनवरी 1897 जन्म हुआ कटक में
पिता जानकीनाथ बोस माँ प्रभावती
8 भाई और 6 बहने वृहद परिवार में
पिता वकील स्वयं बी ए होनर्स की थी।

1938 में की कांग्रेस की अध्यक्षता
देश ने चाहा बार बार बने मुख्यता
गांधीजी और कांग्रेस से हुए मतभेद
क्योकि पार्टी से ऊँचे हुए वो स्वयं एक।

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा
नारा दे बतलाया बलिदान देना होगा
सिंगापुर में दे नारा बोला दिल्ली चलो
ज्यादा दिन नही गुलामी आज़ादी लो।

राजबिहारी बोस ने गठित किया 
आज़ाद हिंद फौज जापान में
लक्ष्य था लड़ना अंग्रेजो से
द्वितीय विश्व युद्ध में।

नेताजी गर्व बने वो भारत का
कर डाला नई सरकार गठन
मांगी आज़ादी गांधी नेहरू ने 
उन्होंने जीत लिया पूर्वोत्तर।

बढ़ रहे थे कदम उनके दिल्ली की ओर
गांधी जी और कांग्रेस की धड़कनें जोर
अगर होते गांधीजी और कांग्रेस उनके संग
बनते वो राष्ट्र अधिपति होती दुनियां दंग।

कर गए वो इतिहास में नाम अजर-अमर
मांगना हैं भूल आज़ादी छीनो कस कमर
18 अगस्त 1945 में हुआ विमान ध्वस्त
आज भी विवाद कब हुआ उनका अंत।

है जब तक राजनीति नेताओं के आदर्श वही
दिया सिखा दायित्व नेतृत्व का करने में ही
मोदी नेतृत्व में मिल पाया सम्मान अब सही
23 जनवरी पराक्रम दिवस होगा साल सभी।

-अमित मौर्य

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

आत्मनिर्भर भारत हमारा प्रण

जिस देश की है भुजा हिमालय

सागर की लहरे सुर और लय 

गंगा नर्मदा कावेरी गोदावरी 

सींच बनाते सीने को हरी भरी 

मानसून देता प्रबल बरसात 

लद्दाख जिसके सर का ताज 


श्री राम जी जिसके आदर्श है 

श्री कृष्ण जी जिसकी पहचान 

श्री बुद्ध जी का प्रखर प्रकाश 

श्री महावीर जी सादगी के प्रमाण 

है तो अनंत महापुरुषों की कतार 

उन सभी को मेरा आत्मीय प्रणाम। 


दुनियाँ बसती थी जंगल में आचार पशु सम 

तब सिंधु घाटी में हुआ सभ्यताओ का संगम 

विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला में 

भास्कराचार्य ने बताया वर्ष के दिन कितने 

खोज शून्य बता दिया विश्व को सही आकार 

दिया प्रकृति का सन्देश आयुर्वेद से उपचार 

ध्यान, योग, विपश्यना से किया साधना पूरा 

एक विश्व - एक धर्म का किया पालन पूरा 


लक्ष्य बड़ा था संभाले रखना हमें अपना 

गौरवशाली अतीत 

समय की है खासियत यही हो अच्छा या बुरा 

जाता जरूर बीत 


दस हजार सालो में खुद ही से 

लडे हो हज़ार बार 

पर एक बार भी दूसरे देश पर 

आक्रमण न एक बार 


सिंध के राजा दाहिर ने रोका खलीफाओं को 

उड़ाई नींद चटाई धुल मुस्लिम आक्रांताओ को 

कासिम ने अंततः पायी जीत रक्तरंजित सिंध पर  

उस क्रूर का अंत कर दाहिर पुत्री ने किये प्राण अर्पण  


हो गया प्रारम्भ लूट और मार - काट का दौर 

भारत में प्रवेश मुस्लिम आततायियों का जोर 

बहने लगी रक्त की धराये हुआ बहुत अन्याय 

धीरे - धीरे भारत बना एक मुस्लिम सराय 


चित्तौड़ के राजा को मार जाहिल खिलजी 

जब किले में घुसना चाहा था 

पद्मावती ने उसके किले में आने से पहले 

अग्नि स्नान कर डाला था। 


इक्यासी किलो का भाला ले महाराणा 

क्रूर अकबर की हिम्मत को तोडा था 

छत्रपति शिवाजी ने छापामार युद्ध कर 

तनाशाह औरंगजेब को झकझोरा था 

सहनशील गुरु गोविन्द सिंह जी ने 

मुस्लिम आतंक को ललकारा था। 


अब जब जागरण हुआ शुरू सरे आम 

एक नई गुलामी की शुरुआत की दासता

अबकी बार थी व्यापार सभ्य लूट तमाम 

अंग्रेजो से लड़ना था और साथ चलना था 


सन सत्तावन में मंगल पांडे उठा सर 

जगा गया पूरा भारत संवत्सर 

लक्ष्मीबाई लड़ी अंतिम साँस तक 

आज़ाद भगत सिंह हुए बलिदान 

नहीं लिख सकता हर एक नाम 

फिर भी सबको मेरा करबद्ध प्रणाम। 


थक चूका मुस्लिमो और अंग्रेजो की गुलामी से 

सन सैतालिस में आज़ाद हुआ

26 नवंबर सन 1949 बना संविधान 

राजेंद्र प्रसाद जी की अध्यक्षता में 

लोकतंत्र बने और मजबूत सच में 

इसलिए लागु हुआ दो माह बाद ये। 


भारत की हर लड़ाई में सिर्फ मानवता ही है सर्वोपरि 

है संविधान लागू भारत पर लड़ाई है बाकि कई 

राजनीति से ऊपर उठ राष्ट्र नीति ही धर्म है 

सभी सुखी हो सभी स्वस्थ्य हो बस यही मर्म हैं। 


मंगल तक पहुंचे एक बार में हुआ विश्व चकित 

चंद्र पहुँचा दो बार वो भी स्वदेशी तकनीक पर 

इसरो के C-३७ ने १०४ उपग्रह पहुचाये एक बार में 

बनाया ये एक कीर्तिमान बना भारत का अभिमान।


विश्व शक्ति कहलाने वाले अमेरिका, फ़्रांस

और ब्रिटेन हो रहे चीनी विषाणु से बेहाल 

भारत ने सही समय पे किया सही लॉक डाउन 

शीर्ष १० ग्रसित देशो से सन २१ में  हुआ बहाल 


आत्मनिर्भर बनेगा हमारा भारत यह हमारा प्रण है 

अंतिम साँस तक भारत माँ का हम पर ऋण है 

वसुधैव कुटुंबकम की भावना हमारी प्यारी है 

दुनिया चाहे जो भी बोले अब तो अपनी बारी है। 


--अमित मौर्य 

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

खाली

यूँ तो साफ रहते है बगीचे
साफ होते घर ऊपर-नीचे
कचरा उठा फेकते बाहर
जहाँ मिलता न कोई घर

होती जगह वो खाली पर
झेलती सड़न और देती बदबू
कचरे से अटी होती इसकी रूह 
वजह इसी के कही फैलती खुशबू

लोग करते नफरत उस कचरे की जगह से
भूल जाते की वो कचरा आया कहा से
अगर वो ज़मीन घरो के कूड़ा न रखती
तो हालातों की व्याख्या कुछ और होती

फिर शायद वो जमीन बेहद खूबसूरत होती
घरो के बाहर और अंदर सिर्फ सड़न होती
भूल जाते है लोग कचरा फैलाकर जमीन पे
अगर बन गए महल उस जमीन पे तो 
खुद का घर ही कचराघर बन जायेगा।

शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

राम

न मैं रावण न मैं राम,

मैं तो हूँ वो एक श्याम 

जब रुका पार्थ का पथ,

मैंने याद दिलाई शपथ। 

 

कर्म से तो ईश्वर न बच पायें,

मनुष्य तू क्यों इतना लजाये 

जब भी तेरा मन भागे घबरायें,

याद कर लेना मेरी कवितायें। 


सोचना न की धर्म की खातिर 

जान तुझे फिर देनी होगी,

न सतयुग न त्रेता न द्वापर 

ये कलयुग सिर्फ लेनी होगी। 


जब राम धरा पे थे तब 

हवा पानी सब निर्मल थे,

कृष्ण के अवतरण तक 

कौरव पांडव मित्रवत थे। 


आज धर्म पर चढ़ आया जो 

अधर्म, धर्म का चोला ओढ़,

अब बारी है ये सिर्फ तेरी 

हर असत्य अधर्म को फेंक। 

 

चाहे कर देना उल्लंघन प्रति मर्यादाओं का 

पर अंतिम सत्य-धर्म की हानि न होने पाए,

रखना याद अब न कोई कृष्ण न अर्जुन यहाँ

फिर भी हासिल करना तुझे ही धर्म विजय। 

 

जब जीतेगा धर्म धरा पे 

चहुँओर शांति छा जाएगी,

हर ओर उजाला होगा

प्रकृति संतृप्त हो जाएगी। 


-MAIT (मौर्य )



 


रविवार, 18 अक्तूबर 2020

तलाश

है जो रुक रही ये मेरी सांसें 

ये तो तेरी कमी का असर हैं 

खुद अब तू मिलना भी चाहें 

मिल जाना भी अब कहर हैं। 

 

प्यार न सही साथ की थी तमन्ना 

अब तो दिल टूट के चुका बिखर

दूरी ने दिल को कर दिया छन्ना 

अब तो ख़ुशी से दूर दिल बेफ़िकर। 

 

शांत वृक्ष की तलाश मिली केवल ठूठे  

पर न जाने राह में कितनो के हाथ छूटे

हर पड़ाव पर न जाने कितने हमसे रूठे 

पर मानव धर्म यही जो कर्म से ही ऊपर उठे।

सोमवार, 1 जून 2020

बदलता वक़्त

वो न गली के आखिरी घर तक गया 
न हर मोहल्ले के कोने कोने तक गया
फिर भी देखते ही देखते खौफ उसका 
हर एक के मन में इस कदर फैल गया। 

वो सड़क जिसमें हमने भी काटे थे दिन
आज दिखते लोग कुछ ही गिनती गिन
वो जिम और कैफे जहां लगता था मेला 
वहाँ जमती  रही धूल महीनो रहा अँधेरा। 

वो सड़क आज हमसे कुछ यूँ  रूठ गयी
सड़क तो रही वही पर मंजिल छूट गयी 
चलने की थी जल्दी बहुत जिस सड़क में 
आज वो सड़क सुनसान इस मौसम में। 

सिनेमा जिसमें देखी हमने कहानी बहुत
आज लगे उसमे ताले हो गया वक़्त बहुत 
गुपचुप चाट के ठेलो पे लगती थी जो भीड़ 
आज चुपचुप से बहुत घरो में खाते गुपचुप।

वो हॉर्न और सायरन से खुलती थी जो नींद 
आज चिडियो के चहकने से होता शुरू दिन 
ठहर किनारे जो घंटो फोन पे बाते होती थी 
आज घरो में छतो से ही वो बातें होती है। 

वो सड़क जिसमें हम कभी चलते ना थे पैदल 
आज सिर्फ गिनी चुनी गाड़िया ही दौड़ रही है 
लोग भूल गए है पिज़्ज़ा बर्गर और मोमोस 
घर में दाल रोटी और चावल ही रहे है ठूस। 

शायद ये वक़्त लोग भूल जाये 
सीख समय की गुल हो जाये 
लेकिन सीखने लौटेगा वक़्त जरूर 
टूटेगा मानव फिर तेरा गुरुर। 

आज जो हाथ धो मास्क लगा तुम 
खुद को रहे सुरक्षित समझ तुम
पर रखना याद हर पल ये तुम 
विषाणु भले ही मार लो हजार तुम 
पर रहना सदा मेरे कृतज्ञ तुम 
क्योकि ये जीवन है मेरी देन 
न रखना बंद कर अपने नैन 
गर भूल गए प्रकृति से मिलाप 
न बचेंगे बच्चे न कोई बाप 
ख़त्म हो जाएगी तुम्हारी हर व्यथा 
न बचेगी कोई भी तुम्हारी व्यवस्था 
खोना न वक़्त तुम कागज बटोरने में 
वक़्त न लगेगा मुझे तुम्हे समेटने में...... 





गुरुवार, 30 जनवरी 2020

चुप क्यों हैं तू


हर एक सवाल का जवाब बन
हर नींद का हसीं ख़्वाब बन।
सदियों के बंधनो को तोड़ कर
आसमां से ऊंची उड़ान भर।

संभल कर चल सके इस जग में
मन को इतना मजबूत कर ले।
कोलाहल में भी सच को सुन ले
ऐसा ढृढ़ निश्चय तू अब कर ले।

थी जो बाधा आगे बढ़ने में तेरी
ख़त्म हुई पिछली सदी बहुतेरी।
जो बाकि है रोक टोक वो भी
ख़त्म हो रही शिक्षा से सभी।

नारी सम्मान की बात न करना
पर अपमान भूल से न करना।
जब भी लिखा इतिहास युद्ध का
कारण बना यही पृष्ठ मूल का।

अब तो यह दो हजार बीस है 
न मन में अब कोई टीस है।
आगे कहानी अब चुकी है बढ़
नर नारी में नहीं कोई अनपढ़।


मंगलवार, 28 जनवरी 2020

समय का परिवर्तन

है जो वक़्त ये अभी
शस्त्र से न कम कभी।
बढ़े जो ये एक पग भी
मुड़े न पुनः ये कभी।

हो हर्ष फिर या हो शोक
लगा न सका कोई रोक।
बस बढ़ा बढ़ता ही गया
हुआ न कभी इसका लोप।

है बदलता रोज ये
रचता इतिहास नए।
धुप हो या हो छाँव
बनाते रहता पड़ाव नए।

वक़्त से की मित्रता 
मिली उसे सहजता।
न हुई कोई व्यर्थता
जिसने दिखाई गंभीरता।

सच्चाई जिसके समय में
ईमानदारी है जिसके कर्म में।
मेहनत हो अनुशासन से
संसार उसके चरणों में।

वक़्त की गोद में खेलने वाला
दुनिया को झुका सकता है।
वक़्त से बेवक़्त खेलने वाला
वक़्त को बदल सकता है।

हर बार वक़्त जल्द नहीं बदलता
कई बार वक़्त भी इंतज़ार करता है।

वक़्त का ताज हार स्वीकार कर
पुनः प्रयास करने पे मिलता है।

वक़्त की आदत है
इंसान की फितरत है।
प्रकृति का नियम है
हमारा संयम है।

आप देर कर सकते है पर वक़्त नहीं

"समय का परिवर्तन"

-आँचल मौर्य

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

सो गयी है जो आत्मा उसे जगाने आया हूँ

सो गयी है जो आत्मा उसे जगाने आया हूँ
रो चुकी जो आंखे उन्हें सूखाने आया हूँ।
बहा चुके बहुत पसीना उन्हें पोछने आया हूँ
दर्द बढ़ चुका बहुत मुक्ति देने आया हूँ।

जिस मोड़ पर जब साथ छोड़े सब
उस मोड़ को ही बदलने आया हूँ।
जिस बात पे समझदार करे बहस 
उस बात पे सुलह कराने आया हूँ।

ये दर्द हर लम्हा जो सोने नहीं देता
उस दर्द को मरहम बनाने आया हूँ
ये कोलाहल जो सच सुनने नहीं देता
कोलाहल को संगीत बनाने आया हूँ।

हार के बैठ चुके जो अपना मन जीवन
उन्हें फिर से उठ खड़ा करने आया हूँ।
जो खुद को आज़ाद न देख सके कभी
उन्हें आज़ाद और नयी सोच देने आया हूँ।

सो गयी जो आत्माये उन्हें जगाने आया हूँ
लग गयी जो जंग उन्हें चमकाने आया हूँ।
भूल गए जो जीवन का मूल मंत्र और अर्थ
उन्हें जीवन का अर्थ समझने आया हूँ।

-Mait



शनिवार, 23 नवंबर 2019

आँखों का भ्रम था

आँखों का भ्रम था
या सामने स्वप्न था
जो हुआ दुखद था
दुःख यही सच था।

सोच ना पाया कुछ था
थोड़ा स्तब्ध - शून्य था
स्वेद से भीगा रक्त था
इस जग से विरक्त था।

जब सम्भला तो पाया
ना हाथ कुछ भी आया
मुश्किलें जिन्हे मैं माना
थी वो सिर्फ मेरी छाया।

दिखा दिया अंतर को
था क्या सदा सत्य वो
हल्का भी न हुआ रो
मन जो भारी तब वो

अब सोच हो रही खत्म
ख़ुशी को खा रहे गम
हठ जो किया खुद पर
पाकर उस लक्ष्य तत्पर

 

बुधवार, 6 नवंबर 2019

सिर्फ

खुदा(मैं)

ना हार में न जीत में
ना ही मैं तकदीर में
 न प्रश्न में ना हल में
जड़ में न हलचल में

ना मौन में न कोलाहल में
न दिन में न अँधेरी रात में
ना वृहदता में न सूक्ष्मता में
न कृतज्ञता में न कृतघ्नता में।

ना दूर मैं न साथ मैं
न राग में न त्याग में
ना योग में न भोग में
किंचित नहीं सहयोग में।

हर पल बस एक राह हूँ
जो चले तो उपहार हूँ
जो न चले तो ख्वाब हूँ
पर खुदा भी मैं इंसान हूँ।


रविवार, 27 अक्तूबर 2019

दीपक

कुछ दीपक रूपी व्यक्तित्व हमें हमेशा मार्ग दिखाते है 
फिर चाहे वे इस संसार में हो या न हो इस बे-फर्की  से 

कुछ दीप मन में भी जलने चाहिए
सिर्फ घर बाहर जलाने से क्या होगा।

कुछ उजाला बुद्धि विवेक का भी हो
सिर्फ प्रकाश के छलावे से क्या होगा।

थोड़ा तो मंथन खुद के कर्म का भी हो
सिर्फ दुसरो को राय देने से क्या होगा।

अमीरी तो उस भिखारी की मुस्कान में देखो
चिंतित राजा बन शमशान पहुंचने से क्या होगा।

एक दिया इस दीपावली मन में जला कर देखो
शायद सारा संसार ही कल तुमसे जगमग होगा।।

बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

बहती है लगातार

बहती है जो ये हवायें है
सांसो को जीवन बनाये है
कुछ तो खास है इनमे

जो चलती है लगातार।

कभी बन ठण्ड में शीतलहर
तो बन कभी लू का कहर
कभी ले आती चक्रवात तो
कभी देती सुगंध बरसात की।

न थकती न रूकती
न करती भेदभाव
ये हवा है कुदरती
यही इसका स्वभाव। 

रविवार, 18 अगस्त 2019

अभी बाकी है

कुछ तो नींद अभी बाकी है
कुछ तो जागना बाकी है
कुछ तो भीगना बाकी है
कुछ बरसात अभी बाकी है।

सूरज की रोशनी में भी
कुछ किरणों की कमी है
चाँद की चांदनी में अभी
ठंडक थोड़ी बाकी  है।

मन तो है भिड़ जाऊ अभी
पर थोड़ी तैयारी बाकी है
पहुंच तो जाऊंगा मंजिल तक
कुछ भटकना अभी बाकी है।

रविवार, 28 जुलाई 2019

आराम से सब ठीक हो जायेगा

आराम से सब ठीक हो जायेगा
है जो दर्द यूँ गायब हो जायेगा
बड़े से बड़ा कर्ज चुक जायेगा
दुखो का पहाड़ भी टूट जायेगा

थोड़ी सी रखो धैर्य के दर तशरीफ़
आराम से ख़त्म होगी हर तकलीफ

धैर्य ही बनेगा साथी हर लड़ाई में
रख खुद पे भरोसा हर कठिनाई में
चाँद भी मोहताज़ होता है सूरज का
पर तारे टिमटिमाते है खुद के दम पे

रख भरोसा खुद पे बन कर खुदा
बन खुद का रब बन सबसे जुदा
इन मुश्किलों की है क्या औकात
जब भरोसा खुद का खुद के साथ।

शनिवार, 20 जुलाई 2019

जिसको देखो

जिसको देखो वही
रो रहा है किस्मत पे
न चाह कर्म की
न राह धर्म की
अनंत मार्ग के मध्य
शून्य की रौशनी में
चल रहा अविचल
मनुष्यत्व है या छल

कुछ तो दिखाओ
तुम अपना बाहुबल
झुका के दिखाओ
ये सारे दुर्जनो को
उतरो गहराई में
खोजो तुम खुद को
जीतो खुद को
जीतो इस जग को

अगर लिया तुमने ठान
बन के रहोगे तुम महान
किस्मत बन जाओगे खुद के
कहलाओगे खुदा इस जग के।

बुधवार, 12 जून 2019

मुझे जीना आता हैं?

खुश था बहुत ये सोचकर मुझे आता हैं जीना
देख रिक्शेवाले का पसीना भुला मैं पानी पीना
जब मुस्कराहट जो देखी तपन के बाद भी 
जो मिला पूरा पारिश्रमिक उसके हाथों मे
समझ न पाया किसे आता है सच में जीना।।

कुछ बात तो रह जाती है हममें हर बार 
जो दिख नहीं पाती खुद कमियां हज़ार 
देख लेते है कमियां दूसरो की हर बार
खुद के बड़े गुनाह भी लगते है फलदार 
सको तो देखो सबकी खूबियां हजार।

आता है जीना तो जी के दिखाओ यार 
बोलकर लोग कर जाते है जन्नत भी पार
आज की तकलीफ है ये एक कारोबार 
करते है तुलना हर एक से हर एक बार
एक छोटी नाव लगा देती समुन्दर पार।

शनिवार, 8 जून 2019

प्यार

सूखापन ही तो है मौत का कारण
बेरुखी से ये सारे रिश्ते क्यो मरते
पानी जब ना मिले प्यार के चलते
रेगिस्तानों में कांटे ही क्यों खिलते।।

सिक्को की खनक परेशान भले करती
नोटों की परेशानी भीगने में ही है दिखती
रिश्ता हो सिक्को सा तो क्या है उलझन
जो हो शोरदार पर हर हाल काम तो आये।।

हैं भूल नही तो और क्या ये हर दिन की
कभी हैं जो तैयारियां रखि रखी रह जाती हैं
कुछ भूल होती हैं और कुछ ग़लतियाँ मेरी
हँसना हर कोई चाहता है हँसाना ना कोई।।

कुछ पंक्तियां लिख मैं ना पाया सिर्फ ये सोचकर
ना जाने क्या अर्थ निकालेंगे जब सुनेंगे कानभर
ना अर्थ मेरा वो जो हर कोई समझ पाया
न अर्थ मेरा वो जो कोई न समझ पाया
है ये जो अधूरापन वही तो है मेरा आईना
बस समझ सके जो कोई अलिखित पंक्तियों को
तो फिर क्या फर्क मुझमें और तुझमें रह जाएगा।।

शुक्रवार, 7 जून 2019

अनंत अमित अपरिमित प्रकृति

इंसान को दिया प्रकृति ने घरौंदा
उसी इंसान ने प्रकृति को यू रौंदा
देती रही मौका हर बार उबरने का
इंसान ने किया हर एक बार धोखा।।

माना जिसे माँ उसी को लूटा
बदले में उसका दिल भी टूटा
करती रही वो तुम्हारा इंतेज़ार
करो मेहनत और बनो चौकीदार।।

आज बैठा हूं उस रेगिस्तान के पास
जहा कल तक मछलियां खेलती थी
खोज रहा हु उस सुराख को न जाने
जहा सूख गई ये पूरी समुन्दर और झीलें।।

प्रकृति की गोद मे मनुष्य की मनुष्यता है खिलती
कुछ यादें है कैसी जो कभी नहीं मिटती
प्रकृति तो हर इंसान से बराबर प्यार है करती
मानुष की क्षमता क्यो नही प्रकृति से मिलती।।

सोच कर ही खौफ और डर बढ़ जाता है कई हजार गुना
आज एक तालाब तो कल सारी
नदिया सूखने की कगार पर
हसरते तो बहुत थी इमारतों की
पर बिन पानी प्यास कैसे बुझ सके
खरीद लिया जमीन और कारोबार बार बार
पर ला न सका एक छोटा सा  उपवन हरा भरा
जब जरूरत थी इनको बचाने की तब होड़ थी कागज जुटाने की
आज कागज तो जुट चुके लेकिन सब बेअसर हो गए इस जमाने मे।

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

अंतर्मन

प्रेम से प्रेम की कीमत तय नहीं की जा सकती 
कीमत तो चीजों की होती है भावनाओ की नहीं 
नापते तौलते तो लोग सांसो को भी है आजकल 
वरना जिंदगी फ़क़ीर भी जीते है राजाओ की तरह 

जरूरते मेरी तय करते आये है जो आज तक 
सुन ले वो सभी जहाँ के अंतिम फलक तक 
ना अब मैं सुनने वाला हूँ उनकी थोड़ी सी भी 
पर चाहूंगा कुछ अधूरा ही सही सुने वो मेरी भी 
 

 

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

उपालम्भ

शिकायत ये नहीं की शिकायत क्यों है उन्हें मुझसे
शिकायत तो है उस जिक्र से शिकायत तो है खुद से।

शिकवे की उम्र ही क्या होती अगर समझ थोड़ी बड़ी होती
पानी भी बहता है ढलान पे समतल में कोई नदी नहीं होती।

रात में उजाले के लिए सूरज से शिकायत नहीं की जाती
तकदीर में हो कांटे तो भी कोशिश कम नहीं की जाती।

हसरतें हैरान कर देती है कभी - कभी इस दुनिया में
जब किसी की मुस्कराहट भी बन जाती है शिकायते।
 
सुबह उठ चल देते आईने में खुद को देख कर एक बार
दिन भर ना रहता उनको खुद की शिकायतों से सरोकार।

न्यायालयों में ना होता रुके हुए मामलो का ये वृहद् अम्बार
अगर लोग शिकायत करते इंसान की बजाय कर्म विचार।

अब लगता है लोग शिकायत भी अपनी रूचि से करते है
मिले फायदा तो गन्दगी छोड़ सफाई की खिलाफत करते है।

हर वक़्त न्याय सुलभ हो ये जरुरी नहीं होता
कभी तो सुलझाओ खुद को आइना दिखाकर
वक़्त की आदत है लौटाना हिसाब देखकर
न करना कभी शिकायत हैसियत देखकर।

है रास्ता जाता कहा शिकायतों ये तो पता नहीं मुझको लेकिन
दुसरो के बारे में बोलने वालो को उँचाई छूते देखा नहीं मैंने।

किस्मत की शिकायत करने वाले अक्सर भूल जाते है
रास्ते की कीमत सिर्फ चलने वाले ही जानते है
लक्ष्य तक तो एक अनपढ़ भी पहुंच सकता है
जरुरत जोश, साहस और आत्मविश्वास की होती है।

है नहीं अंत इस शिकायतों की दुनिया का लेकिन
हम भी लड़ेंगे जब तक होगा संभव और मुमकिन।

कुछ दीये आँधिया भी रात जल कर बिताते है
और कुछ की तो पूरी शाम भी नहीं होती
तजुर्बा होना अच्छा होता है बढ़ने के लिए आगे
पर कोशिशों और हार का अपना मजा होता है

बैठे बैठे तो अक्सर कामगार काम करते है
दौड़कर नेतृत्व देने का काम शिकायत करती है।

एक शिकायत ये भी है की शिकायते क्यों है मुझसे
पिंजरे के पक्षी से शिकायते नहीं सहानुभूति होनी चाहिए
कल जो आजाद हुआ मैं अगर इस शिकायती दुनिया से
तो न होगी कोई गलतियाँ और न कोई उपालम्भ।
 

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

बून्द एक

दुनिया मे अच्छी कहानियों की कमी सिर्फ इसलिए है
क्योकि लोग किताबों को कवर देख के पढ़ने लगे है।

खोल सकते नही जब सच सबके सामने
तो क्यों आ जाते है लोग झूठ के साथ मे।

है जरूरत कुछ किताबो को खोलने की
साथ उनकी नसीहतों को तौलने की।

जीत हो या हार हर बार उठ खड़ा लड़ने की
दिखाई दे ना मार्ग तो हर द्वार खोलने की।

बून्द को होता नही सरोकार अपनी ताकत का
जरूरत होती सिर्फ एक साथ हुकूमत का।

पत्थर भी कट जाते उन बूंदों के बहाव में
चाँद क्या है सूरज भी धूमिल हो जाता बादल की छाव में।

बस चले अगर आपके शौर्य का
तो मनुष्य क्या ईश्वर भी आपका।।

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

खुला आसमान

हँसी भी रोग सा लगता हैं,
काम भी अब बोझ सा लगता हैं।
शाम अब रात सी नीरस सी लगती हैं,
क्योकि साथ भी अब दूरी से बदल गयी है ।

हिसाब माँगा था हमने जिनसे न कभी महलो ताजो का,
आज ले रहे वो हमसे रसीद भी उन कीलो और धागो का।
जिनके भरोसे थी टिकी समय की टिक टिक और बाँधी,
थी उनकी बाहर की दुनिया में झांकते खिड़कियों के परदे।

उजाला भी शर्माता था जिनके हुस्न के आगे,
आज अँधेरा भी गरजता है अपने गुरुर पे।
समय सभी का आता है ये तो हमने सुना था लेकिन,
पता न था आ जाता है समय किसी का जाने से पहले।

उठी है जो ये अंकुर अब इसे थोड़ा और रहने दो,
बने ये वृक्ष या तरुवर महान थोड़ा और जागने दो।
न रोको पौधो को जड़ो को फ़ैलाने से आज सम्मान,
दो इसे भी अनंत रिक्त जमीन और खुला आसमान।।



शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

गुनाह

ये सुबह भी बहुत अजीब होती हैं
बच्चों के रंगीन सपने तोड़ती हैं।
टिमटिमाते तारो से दुश्मनी लेकर
धुप की उजियारी चादर ओढ़ती हैं।।

खुद को हर किसी की नजर से गिराया
न दिया हिसाब न दिया कोई बकाया।
ओढ़ते रहा गुनाह की चादर कुछ यूं
न नजर बची न नजरिया बचा पाया।।

शनिवार, 29 सितंबर 2018

आइना

चले थे कल सुबह पढ़ने पूरी किताब पर
दूसरा पन्ना पलटने की न हुई हिम्मत।
दिखा गया पहला पन्ना हमें वो आइना
देख जिसे शर्म लज्जा से हुआ सामना।।

भटकते तो वो है जिन्हे लक्ष्य का ख्याल नहीं होता
ज्ञान हो मूल तो लूटने से कोई कंगाल नहीं होता ।
रास्ता कितना भी लम्बा हो पहुंचेंगे हम हर मंजिल
क्योकि अब हमारी हर कोशिश में तुम हो शामिल ।।

पंक्तिया कुछ यू चुभी पल भर
गहरे जख्म बने कुछ मन पर।
सुबह जो शाम में हुई तब्दील
अक्षर भी पढ़ना हुआ मुश्किल।।

सितारे भी पड़ने लगे जो सूर्य पे भारी
क्योकि आई थी अब अँधेरे की बारी ।
शिकायत नहीं इस रात से मुझको शायद
आने वाली सुबह होगी और भी प्यारी।।

जब तक है मेरे साँस में साँस
न होगा कभी हार का अहसास।
जहां तक चलेगी धड़कन हमारी
वहां तक रहेगी मेरी उम्मीदवारी।।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

नींद

घात से उबारती रोतो को हँसाती।
रात के प्यारे सपनो में मुस्कुराती।।

होती जब सुबह तो साफ़ होती तस्वीर।
बीते दिन से पलट जाती पूरी तकदीर।।

होती साथ नयी हिम्मत और ताक़त ।
कोमल होते कच्चे फल जो थे सख्त।।

नींद की आदत है सपनो में नयी दुनिया दिखाना।
ये प्रण हमारा सपने को साकार करके ही दिखाना।।

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

रात

बादल में छुपे सूरज तो उसे रात नहीं कहते
बुझ न सके आग तो उसे बे आग नहीं कहते।
अँधेरे में न हो उजाला तो हर चीज काली नहीं हो जाती
उबलते पानी में कभी अपनी परछाई देखी नहीं जाती।।

होती सदा अंत कष्ट की
राह पहुँचती ध्येय पे।
चोटिल घावों से बढ़ साहस
लक्ष्य मिले सब हिम्मत से।।

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

किताब

न मुझसे कही गयी
न तुम्हारी सुनी गयी।
न बयां हो सकी
न दफ़न हो सकी।।

सूखे में थी बरसात
अकेलेपन में दी साथ।
अँधेरे में बनी चिराग
ये मेरी किताब।।

बुधवार, 22 अगस्त 2018

सूर्यास्त

है सूर्यास्त जो होने वाली है
शाम भी अब ढलने वाली है।

लोग थक चुके अब काम कर कर
आराम की चांदनी फैलेगी हर घर।

सूर्य भी जा चुका अब घर अपने
बच्चे भी खेलने लगे खिलौने।

सुबह से जो निकली वो किरण
अब नींद की बनेगी विकिरण।

लिखती सदा ये एक चिर कथा अनंत
सूर्यास्त तो है केवल एक पृष्ठ का अंत।

समझ चुके पक्षी की होने वाली है रात
आते होंगे माँ बाप आज के दाने के साथ।

होगी फिर सूर्योदय एक नई शुरुआत
हम होंगे संग होगी हमारी मुलाकात।

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

अपराध

किसी ने धन को चुराया किसी ने कमा के लाने वाले को
किसी ने प्यार को ठुकराया किसी ने प्यार करने वाले को

किसी ने रोते को हसाया किसी ने हॅसते दिया रुला
दुनिया जन्नत होती अगर न होता कोई गिला शिकवा

तबियत तो तभी गयी थी हो ख़राब
जब साथ देने वाले हुए थे खिलाफ

यूँ तो जापान फिर भी जीत जाता
दो परमाणु बम भी झेल जाता

अगर लोग ना होते खुद के खिलाफ
तो चीन क्या अमेरिका भी जीत जाता जापान

इतिहास है गवाह की लोगो ने दिखाया है
जब नहीं जरुरत हर नूर को भुलाया है

चलते थे सीना तान के हम भी लेकिन
खंजर जो पीठ पे खा लगे देखने पीछे

सूरज और प्रकृति भी दुखी है मनुष्य से
मौसम क साथ बदलते है जो रिश्ते इनसे 

आज कल तो सजा ऐ जुर्म यु बेबसी में होती है
जुर्म अगर संगीन हो तो सजा कठोर होती है

अपराध बोध के बिना आरोपी अपराधी नहीं होता
हर आरोपी हर बार सजा का हक़दार नहीं होता

शनिवार, 18 अगस्त 2018

गीली मिट्टी

विकसित विचारधारा की खोज में  संभावना के सागर में बहती मेरी सोच की नाव न जाने कब उस किनारे पहुँचेगी कई बार मैंने बाहरी समस्याओँ के तूफान झेले है तो कभी असत्य का जहर पिया है रास्ता इतना भी मुश्किल न था जितना मैने जिया है कुछ थी गलतियाँ मेरे सीने में जो अब मेहनत की कब्र में सोने जा रही है पर दुनिया को नही फुरसत अभी भी सीने को छलनी करने बार बार कुरेद रहें है।

डरते लोग शून्य से है
मैं तो डरा अनंत से ही
हारा तो मैं कभी नही
जीत भी तो मिली नही
सुनु रास्तो की या खुद
रास्ता ही ना बन जाऊ
बन उजाला दुसरो को
सच की ये राह दिखाऊ
सांस का तो धोखा है
जिंदगी तो तोहफा है
न जाने कब किस घड़ी
ये तोहफा भी छिन जाए
दिन के उजाले में
वो रात ना आ जाये
जब सब रोये और
हम ही सो जाएं

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

है अंत नहीं प्रारम्भ है ये

यू तो हर व्यक्ति का व्यक्तित्व कुछ खास होता है
कुछ न कुछ करने हर एक का प्रयास होता हैं।
लग जाती है शताब्दियां उस एक मानव के जन्म में
जिसके एक कदम में सारा जग उसके साथ होता है।।

राष्ट्र के लिए बने राष्ट्र के लिए जिये है जो अटल
हार भी हार जाती जिसके सम्मुख वो शस्त्र है अटल।
कोई व्यक्ति नही बल्कि वो व्यक्तित्व और विचार है अटल
जहाँ सीमा भी बंधन तोड़ दे वो मुस्कान हैं अटल।।

मन होता है उदास जब ध्यान में आता न हैं वो पास
ना हो कम उत्साह करते हम निरंतर अथक प्रयास।
न जाने कब ये भावनाओ की तकलीफ दूर होगी
उम्मीद है कविता में ही सही मुलाकात होती रहेंगी।।

अटल...................कवि और लेखक कभी मरते नहीं................वो अटल अमर और अजेय है

सुबह से जो चला हूँ न रुका न थका हूँ
जीतना था जग खुद को जीतने चला हूँ
हो शाम या रात न करूँगा तनिक आराम मैं।
न होगी कोई रुकावट न अल्पविराम तय
है साँझ ऐसी तो न जाने सुबह कैसी होगी
जब साथ नहीं अटल तो जीत कैसे होगी।।

राह मेरी मुश्किल पर हार न मेरी होगी 
है अगर समस्या तो समाधान भी होगी  
फिर उठूंगा गिरकर तेज़ धार मेरी होगी ।
है अटल संग मेरे बुनियाद मेरी बनके
हर रात मेरी होगी हर प्रभात मेरी होंगी
हर राह तेरी होंगी पर मंजिल मेरी होंगी।।

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

शुभ स्वतंत्रता दिवस(७२)

भारतीय स्वतंत्रता दिवस

 5 - प्रतिज्ञा करे की

एक दिन की देशभक्ति की जगह 
आज से हम
१. रोज १० मिनट देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों और इतिहास को याद करेंगे जिससे हम अपने भविष्य को सुमार्ग प्रदान कर सके। हर उस व्यक्ति को उत्साहित करेंगे जो अंजुमन में कोई सकारात्मक पहलू रखे फिर चाहे वो कितना भी मुश्किल क्यों न हो।


२. क्योकि देश हमसे है और देश से हम तो प्रतिदिन ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे हमे या देश को कोई नुकसान हो। सदा देश के लिए स्वयं और दुसरो के समर्पण का इस्तकबाल करेंगे।


३. भारत की संस्कृति और विश्व हिंदुत्व की रक्षा के लिए अगर किसी मार्ग पे धर्म-पंथ या संप्रदाय भी आहत हो तो भी अपना मार्ग प्रशस्त करेंगे, कभी भी जाति धर्म या समुदाय के नाम पे लड़ने वालो को कोई तवज्जो नहीं देंगे।


४. "अहिंसा परमो धर्म:" पे चलते हुए जहाँ तक संभव हो हिंसा से दूर रहेंगे, शाकाहार ही इस क्षेत्र की उत्तम भोज्य है, अतः जिन क्षेत्रो में पर्याप्त संसाधन हो वहाँ पूर्ण शाकाहार का पालन करेंगे जिससे देश के संसाधनों का उचित विकास हो सके।

 

5. प्रति दिन अपने निर्धारित कार्य के अलावा हम एक या कुछ ऐसे कार्य करेंगे या सीखेंगे जिससे न सिर्फ हमारा कौशल विकसित हो बल्कि साथ ही साथ देश के उन्नति के लिए भी प्रभावी हो।

 

इतिहास

हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। 15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोगों ने काफी हद तक अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया। स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया, जिसमें भारत और पाकिस्तान का उदय हुआ। विभाजन के बाद दोनों देशों में हिंसक दंगे भड़क गए और सांप्रदायिक हिंसा की अनेक घटनाएं हुईं। विभाजन के कारण मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या तकरीबन 1.45 करोड़ थी। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।
इस दिन को झंडा फहराने के समारोह, परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ पूरे भारत में मनाया जाता है। भारतीय इस दिन अपनी पोशाक, सामान, घरों और वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित कर इस उत्सव को मनाते हैं और परिवार व दोस्तों के साथ देशभक्ति फिल्में देखते हैं, देशभक्ति के गीत सुनते हैं।
 साभार(विकिपीडिया)

-Mait

साहस और परिश्रम

मौका खोजने वालो को इंतज़ार करना पड़ता है
इंतज़ार करने वालो को मौका नही मिलता है
जिनको मौका मिलता है वो किसी तलाश में है
जो तलाश में लोग है वो न जाने किस उम्मीद में है
उम्मीद तो केवल आधी अधूरी आशा होती है
ऐसी आशा तो केवल साहस का भी अंत करवा देती है
साहस और परिश्रम की जंग में जीत किसी की भी हो
हार हमेशा साहस ना करने वाले कि होती है
जो साहस करते है वही परिश्रमी होते है

"जैसे विचार के साथ शून्यता परिणाम विहीन होती है 
वैसे ही ज्ञान के साथ बुद्धिमत्ता का ना होना अर्थहीन होता है।"

-Mait

रविवार, 12 अगस्त 2018

84 कठिनाइयाँ - समाधान तथ्य

कर्म हो अच्छे या निकृष्ट 
परिणाम हो शुन्य या उत्कृष्ट 
होती विजय सदा तथ्य की
ना झूठ की ना सत्य की
कर्म ही धम्म है
धम्म ही धर्म है 


किसी व्यक्ति ने जब बुद्ध की ख्याति सुनी तो वह उनके दर्शन और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास गया. जैसा हम सबके जीवन में प्रायः होता है, वह किसान भी अनेक कठिनाइयों का सामना कर रहा था. उसे लगा कि बुद्ध उसे कठिनाइयों से निकलने का उपाय बता देंगे. उसने बुद्ध से कहा:
“मैं किसान हूँ. मुझे खेती करना अच्छा लगता है. लेकिन कभी वर्षा पर्याप्त नहीं होती और मेरी फसल बर्बाद हो जाती है. पिछले साल हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं था. और फिर कभी ऐसा भी होता है कि बहुत अधिक वर्षा हो जाती है और हमारी फसल को नुकसान पहुँचता है.”
बुद्ध शांतिपूर्वक उसकी बात सुनते रहे.

“मैं विवाहित हूँ”, किसान ने कहा, “मेरी पत्नी मेरा ध्यान रखती है… मैं उससे प्रेम करता हूँ. लेकिन कभी-कभी वह मुझे बहुत परेशान कर देती है. कभी मुझे लगने लगता है कि मैं उससे उकता गया हूँ”.
बुद्ध शांतिपूर्वक उसकी बात सुनते रहे.
“मेरे बच्चे भी हैं”, किसान बोला, “वे भले हैं… पर कभी-कभी वे मेरी अवज्ञा कर बैठते हैं. और कभी तो…”
किसान ऐसी ही बातें बुद्ध से कहता गया. वाकई उसके जीवन में बहुत सारी समस्याएँ थीं. अपना मन हल्का कर लेने के बाद वह चुप हो गया और प्रतीक्षा करने लगा कि बुद्ध उसे कुछ उपाय बताएँगे.
उसकी आशा के विपरीत, बुद्ध ने कहा, “मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता.”
“ये आप क्या कह रहे हैं?”, किसान ने हतप्रभ होकर कहा.
“सभी के जीवन में कठिनाइयाँ हैं”, बुद्ध ने कहा, “वास्तविकता यह है कि हम सबके जीवन में 83 कठिनाइयाँ हैं, मेरा, तुम्हारा, और यहाँ उपस्थित हर व्यक्ति का जीवन समस्याओं से ग्रस्त है. तुम इन 83 समस्याओं का कोई समाधान नहीं कर सकते. यदि तुम कठोर कर्म करो और उनमें से किन्हीं एक का उपाय कर भी लो तो उसके स्थान पर एक नयी समस्या खड़ी हो जायेगी. जीवन का कोई भरोसा नहीं है. एक दिन तुम्हारी प्रियजन चल बसेंगे, तुम भी एक दिन नहीं रहोगे. समस्याएँ सदैव बनी रहेंगीं और कोई भी उनका कुछ उपाय नहीं कर सकता.”
किसान क्रुद्ध हो गया और बोला, “सब कहते हैं कि आप महात्मा हो! मैं यहाँ इस आस में आया था कि आप मेरी कुछ सहायता करोगे! यदि आप इतनी छोटी-छोटी बातों का उपाय नहीं कर सकते तो आपकी शिक्षाएं किस काम की!?”
बुद्ध ने कहा, “मैं तुम्हारी 84वीं समस्या का समाधान कर सकता हूँ”.
“84वीं समस्या?”, किसान ने कहा, “वह क्या है?”
बुद्ध ने कहा, “यह कि तुम नहीं चाहते कि जीवन में कोई समस्या हो”.

तो आप मेरी 84 वीं समस्या ही सुलझा दें,” वह व्यक्ति पुनः विनम्र होते हुए बोला। “और ऐसा मैं कैसे करूँ?” उसने पूछा।
बुद्ध मुस्कुराए और व्यक्ति के नेत्रों में गहराई से देखने लगे, वे नेत्र जो लालसा, भ्रम, व चिंता से परिपूर्ण थे।

यदि तुम समझ लो कि जीवन कभी समस्याओं से रहित होता ही नहीं, तो वह इतना बुरा नहीं लगेगा।”
हालांकि उस व्यक्ति को अपनी आशानुसार हल नहीं मिला, तथापि बुद्ध की करुणामयी दृष्टि से उसे शांति का अनुभव हुआ, भले ही अस्थाई रूप से।
बुद्ध ने यह कहते हुए वार्ता समाप्त की – “विनम्र बनो, उद्दात बनो। जीवन को उसके उस रूप से आगे देखना सीखो जैसा ‘आप’ उसे देखना चाहते हो।”

साभार(सिद्धार्थ गौतम)
-अमित कुमार मौर्य 

शनिवार, 11 अगस्त 2018

कहानी

परिंदो की कहानी, उड़ान लिखती है
जीत की कहानी, हर हार लिखती है।

आसमान की कहानी, सितारे लिखते है
सूरज की कहानी, हर सुबह लिखती है।

अचरज की कहानी, धैर्य लिखती है
फ़तह की कहानी, कोशिशे लिखती है।

फूलो की कहानी,कलियों ने लिखी है
जंग की कहानी, गलतफहमियों ने।

विकास की कहानी, नवोन्मेष ने लिखी है
चरित्र कि कहानी, संस्कारो ने लिखी है।

खुदा की कहानी भी मैंने लिखी है
इंसान की कहानी भी मैंने लिखी है

हर दिन की कहानी भी मैंने लिखी है
हर रात की कहानी भी मैंने लिखी है 

कुछ कहानी लोगो ने सुनी है
कुछ कहानी लोगो ने बनाई है।

जब जब बात कहानी पे आयी है
याद सिर्फ मुझको मेरी ही आयी है।

कहानी तो कहानी है
जो सदियों पुरानी है।
झूठ संग पानी है
सच की ये रानी है।।

आज सुनो

आज सुनो


कर्म की आग में तुम हो
धर्म के राग में तुम हो
जन्म के उपहार में तुम हो
जीव के संहार में तुम हो
।।
 
सत्य की राह पे मैं हूँ
धर्म की चाह में मैं हूँ
 मृत्यु की पनाह में मैं हूँ
खुद के इंतज़ार में मैं हूँ
।।

 तुम शाम की बची धुप हो
मैं भोर के पहले की रात्रि हूँ
 कुछ पल में खुद को खो दोगी
मैं दिन बन जहाँ में छाऊँगा
।।
 
तुम थक चुकी अब इस पहर
मैं थकावट सब की मिटाऊंगा

न कोई गांव न बचा कोई शहर
नयी सुबह जब होगी इस पहर
।।
 
तुम अंत हो कार्य दिवस का
मैं आरम्भ हु इस जग का
 नए दिन न हो कोई उदास
उजाले से होता ये प्रयास
।।

थका वही जो रुका कही
उठा वही जो रुका नहीं
 बंधा वही जो टूटा कही
जीता वही जो हारा कही
।।

सुनो बस आज मेरी बात
फिर कह लेना सारी रात
 ना मैं कुछ कहूंगा इसके बाद
न हो पायेगी कोई मुलाकात।।।।

-Mait

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

सारे जहाँ से अच्छा

रात की छाँव में
दिन की धूप में
गीत की धुन में

शोर के मौन में
शान्ति के खौफ में
जीत की हार में

खुशियो की डोर में
जन्मो के भोर में
आतंक के दौर में

रहस्य की खोज में
कर्मो के योग में
घटनाओ के संयोग में

अनंत के अंत में
अंत के अनंत में
शीत के समर में

पर्वत के शिखर में
समुद्र के गर्त में
प्रकृति के मर्म में

सारे जहां से अच्छी 
मुस्कान है तुम्हारी

मुस्कान ही वो अंत है
जहां खुशिया अनंत है
कर्म हो कितने सख्त ही
रख मुस्कान एक दरख्त ही

बहे क्यो न रक्त ही
टूटे ध्येर्य जब कभी
कर मुस्कान अमर ही
जीत होगी तेरी ही

स्वीकार न तू हार को
साहस की बना ढाल तू
रख सहस्त्र मुस्कान तू
शत्रु न देख पाए तो

तोड़ दे भ्रम भूल सारे ग़म
उठा कदम और अपने हाथ
साहस और ध्येय के साथ
दिशाएँ सारी होंगी साथ

अस्त्र- शस्र्त्र और है गाथा  ये 
हर युद्ध की विजय शलाका है ये
सभी की एक पहचान ये
हर एक की मुस्कान ये।।।।



-Mait

समानता


समानता


ऊँच नीच और भेद भाव
शहर बड़े और छोटे गांव
हैसियत और ये हक़ीक़त
खुदा भी न हो सके सहमत

ये जमीन और आसमान
होती यदि जो घमासान
मिल भिड़े जो एक बार
मिट जाएंगे नामो निशान

समानता का नारा दे कर
करते जो तुम व्यापार
छोटो को बड़ो से और
बड़ो को छोटो से दूर

रात की चादर जो हटी
निकली जो उजली किरण
न होने पाए कोई धोखा
खत्म हो ये विविधीकरण

व्यापारी हो या कर्मचारी
न भिन्न है अब उम्मीदवारी
न होगा कोई किसी पे भारी
अब होगी दुनिया उजियारी||||

-अमित कुमार मौर्य

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

जब तक


जब तक
अंकुर न बनता वृक्ष तब तक
पोषण न होता उसका जब तक।
अभिलाषा नहीं ये प्रण है मेरा
साथ न छूटे सुख से तेरा ।।

रहे उजाला हर पल हर क्षण
मुस्कान हो सदा तेरी तीक्ष्ण।
देते सदा उलाहना उसको
ना साँस रुके न जी पाए।।

रोतो को और रुलाना
और हसतो को खिलखिलाना।
चली आयी ये रीत पुरानी
न समझ पाया कोई ये कहानी।।

सब बैठे है उस इंतज़ार में
करे कब कोई दूजा गलती।
रुला रुला के जान देती है बख्श
अश्रुधारा से पूरी होती मुस्कान ।।

उम्र भर जो ढंग से जी सके
वो देते रहे राय की हम कमर कसे।।
जब तक रहेगा किस्मत में काल
करते रहेगी दुनिया इस्तकबाल।।

-Mait

राह

भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी  जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे  दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी  देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे  राह...