रविवार, 9 मई 2021
विषाणु का अंत
नमस्कार
उड़ान
शुक्रवार, 22 जनवरी 2021
नेताजी
मंगलवार, 19 जनवरी 2021
आत्मनिर्भर भारत हमारा प्रण
जिस देश की है भुजा हिमालय
सागर की लहरे सुर और लय
गंगा नर्मदा कावेरी गोदावरी
सींच बनाते सीने को हरी भरी
मानसून देता प्रबल बरसात
लद्दाख जिसके सर का ताज
श्री राम जी जिसके आदर्श है
श्री कृष्ण जी जिसकी पहचान
श्री बुद्ध जी का प्रखर प्रकाश
श्री महावीर जी सादगी के प्रमाण
है तो अनंत महापुरुषों की कतार
उन सभी को मेरा आत्मीय प्रणाम।
दुनियाँ बसती थी जंगल में आचार पशु सम
तब सिंधु घाटी में हुआ सभ्यताओ का संगम
विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला में
भास्कराचार्य ने बताया वर्ष के दिन कितने
खोज शून्य बता दिया विश्व को सही आकार
दिया प्रकृति का सन्देश आयुर्वेद से उपचार
ध्यान, योग, विपश्यना से किया साधना पूरा
एक विश्व - एक धर्म का किया पालन पूरा
लक्ष्य बड़ा था संभाले रखना हमें अपना
गौरवशाली अतीत
समय की है खासियत यही हो अच्छा या बुरा
जाता जरूर बीत
दस हजार सालो में खुद ही से
लडे हो हज़ार बार
पर एक बार भी दूसरे देश पर
आक्रमण न एक बार
सिंध के राजा दाहिर ने रोका खलीफाओं को
उड़ाई नींद चटाई धुल मुस्लिम आक्रांताओ को
कासिम ने अंततः पायी जीत रक्तरंजित सिंध पर
उस क्रूर का अंत कर दाहिर पुत्री ने किये प्राण अर्पण
हो गया प्रारम्भ लूट और मार - काट का दौर
भारत में प्रवेश मुस्लिम आततायियों का जोर
बहने लगी रक्त की धराये हुआ बहुत अन्याय
धीरे - धीरे भारत बना एक मुस्लिम सराय
चित्तौड़ के राजा को मार जाहिल खिलजी
जब किले में घुसना चाहा था
पद्मावती ने उसके किले में आने से पहले
अग्नि स्नान कर डाला था।
इक्यासी किलो का भाला ले महाराणा
क्रूर अकबर की हिम्मत को तोडा था
छत्रपति शिवाजी ने छापामार युद्ध कर
तनाशाह औरंगजेब को झकझोरा था
सहनशील गुरु गोविन्द सिंह जी ने
मुस्लिम आतंक को ललकारा था।
अब जब जागरण हुआ शुरू सरे आम
एक नई गुलामी की शुरुआत की दासता
अबकी बार थी व्यापार सभ्य लूट तमाम
अंग्रेजो से लड़ना था और साथ चलना था
सन सत्तावन में मंगल पांडे उठा सर
जगा गया पूरा भारत संवत्सर
लक्ष्मीबाई लड़ी अंतिम साँस तक
आज़ाद भगत सिंह हुए बलिदान
नहीं लिख सकता हर एक नाम
फिर भी सबको मेरा करबद्ध प्रणाम।
थक चूका मुस्लिमो और अंग्रेजो की गुलामी से
सन सैतालिस में आज़ाद हुआ
26 नवंबर सन 1949 बना संविधान
राजेंद्र प्रसाद जी की अध्यक्षता में
लोकतंत्र बने और मजबूत सच में
इसलिए लागु हुआ दो माह बाद ये।
भारत की हर लड़ाई में सिर्फ मानवता ही है सर्वोपरि
है संविधान लागू भारत पर लड़ाई है बाकि कई
राजनीति से ऊपर उठ राष्ट्र नीति ही धर्म है
सभी सुखी हो सभी स्वस्थ्य हो बस यही मर्म हैं।
मंगल तक पहुंचे एक बार में हुआ विश्व चकित
चंद्र पहुँचा दो बार वो भी स्वदेशी तकनीक पर
इसरो के C-३७ ने १०४ उपग्रह पहुचाये एक बार में
बनाया ये एक कीर्तिमान बना भारत का अभिमान।
विश्व शक्ति कहलाने वाले अमेरिका, फ़्रांस
और ब्रिटेन हो रहे चीनी विषाणु से बेहाल
भारत ने सही समय पे किया सही लॉक डाउन
शीर्ष १० ग्रसित देशो से सन २१ में हुआ बहाल
आत्मनिर्भर बनेगा हमारा भारत यह हमारा प्रण है
अंतिम साँस तक भारत माँ का हम पर ऋण है
वसुधैव कुटुंबकम की भावना हमारी प्यारी है
दुनिया चाहे जो भी बोले अब तो अपनी बारी है।
--अमित मौर्य
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020
खाली
शनिवार, 24 अक्टूबर 2020
राम
न मैं रावण न मैं राम,
मैं तो हूँ वो एक श्याम
जब रुका पार्थ का पथ,
मैंने याद दिलाई शपथ।
कर्म से तो ईश्वर न बच पायें,
मनुष्य तू क्यों इतना लजाये
जब भी तेरा मन भागे घबरायें,
याद कर लेना मेरी कवितायें।
सोचना न की धर्म की खातिर
जान तुझे फिर देनी होगी,
न सतयुग न त्रेता न द्वापर
ये कलयुग सिर्फ लेनी होगी।
जब राम धरा पे थे तब
हवा पानी सब निर्मल थे,
कृष्ण के अवतरण तक
कौरव पांडव मित्रवत थे।
आज धर्म पर चढ़ आया जो
अधर्म, धर्म का चोला ओढ़,
अब बारी है ये सिर्फ तेरी
हर असत्य अधर्म को फेंक।
चाहे कर देना उल्लंघन प्रति मर्यादाओं का
पर अंतिम सत्य-धर्म की हानि न होने पाए,
रखना याद अब न कोई कृष्ण न अर्जुन यहाँ
फिर भी हासिल करना तुझे ही धर्म विजय।
जब जीतेगा धर्म धरा पे
चहुँओर शांति छा जाएगी,
हर ओर उजाला होगा
प्रकृति संतृप्त हो जाएगी।
-MAIT (मौर्य )
रविवार, 18 अक्टूबर 2020
तलाश
है जो रुक रही ये मेरी सांसें
ये तो तेरी कमी का असर हैं
खुद अब तू मिलना भी चाहें
मिल जाना भी अब कहर हैं।
प्यार न सही साथ की थी तमन्ना
अब तो दिल टूट के चुका बिखर
दूरी ने दिल को कर दिया छन्ना
अब तो ख़ुशी से दूर दिल बेफ़िकर।
शांत वृक्ष की तलाश मिली केवल ठूठे
पर न जाने राह में कितनो के हाथ छूटे
हर पड़ाव पर न जाने कितने हमसे रूठे
पर मानव धर्म यही जो कर्म से ही ऊपर उठे।
सोमवार, 1 जून 2020
बदलता वक़्त
गुरुवार, 30 जनवरी 2020
चुप क्यों हैं तू
हर एक सवाल का जवाब बन
हर नींद का हसीं ख़्वाब बन।
सदियों के बंधनो को तोड़ कर
आसमां से ऊंची उड़ान भर।
संभल कर चल सके इस जग में
मन को इतना मजबूत कर ले।
कोलाहल में भी सच को सुन ले
ऐसा ढृढ़ निश्चय तू अब कर ले।
थी जो बाधा आगे बढ़ने में तेरी
ख़त्म हुई पिछली सदी बहुतेरी।
जो बाकि है रोक टोक वो भी
ख़त्म हो रही शिक्षा से सभी।
नारी सम्मान की बात न करना
पर अपमान भूल से न करना।
जब भी लिखा इतिहास युद्ध का
कारण बना यही पृष्ठ मूल का।
अब तो यह दो हजार बीस है
न मन में अब कोई टीस है।
आगे कहानी अब चुकी है बढ़
नर नारी में नहीं कोई अनपढ़।
मंगलवार, 28 जनवरी 2020
समय का परिवर्तन
शस्त्र से न कम कभी।
बढ़े जो ये एक पग भी
मुड़े न पुनः ये कभी।
हो हर्ष फिर या हो शोक
लगा न सका कोई रोक।
बस बढ़ा बढ़ता ही गया
हुआ न कभी इसका लोप।
है बदलता रोज ये
रचता इतिहास नए।
धुप हो या हो छाँव
बनाते रहता पड़ाव नए।
वक़्त से की मित्रता
मिली उसे सहजता।
न हुई कोई व्यर्थता
जिसने दिखाई गंभीरता।
सच्चाई जिसके समय में
ईमानदारी है जिसके कर्म में।
मेहनत हो अनुशासन से
संसार उसके चरणों में।
वक़्त की गोद में खेलने वाला
दुनिया को झुका सकता है।
वक़्त से बेवक़्त खेलने वाला
वक़्त को बदल सकता है।
हर बार वक़्त जल्द नहीं बदलता
कई बार वक़्त भी इंतज़ार करता है।
वक़्त का ताज हार स्वीकार कर
पुनः प्रयास करने पे मिलता है।
वक़्त की आदत है
इंसान की फितरत है।
प्रकृति का नियम है
हमारा संयम है।
आप देर कर सकते है पर वक़्त नहीं
"समय का परिवर्तन"
-आँचल मौर्य
सोमवार, 30 दिसंबर 2019
सो गयी है जो आत्मा उसे जगाने आया हूँ
रो चुकी जो आंखे उन्हें सूखाने आया हूँ।
बहा चुके बहुत पसीना उन्हें पोछने आया हूँ
दर्द बढ़ चुका बहुत मुक्ति देने आया हूँ।
जिस मोड़ पर जब साथ छोड़े सब
उस मोड़ को ही बदलने आया हूँ।
जिस बात पे समझदार करे बहस
उस बात पे सुलह कराने आया हूँ।
ये दर्द हर लम्हा जो सोने नहीं देता
उस दर्द को मरहम बनाने आया हूँ
ये कोलाहल जो सच सुनने नहीं देता
कोलाहल को संगीत बनाने आया हूँ।
हार के बैठ चुके जो अपना मन जीवन
उन्हें फिर से उठ खड़ा करने आया हूँ।
जो खुद को आज़ाद न देख सके कभी
उन्हें आज़ाद और नयी सोच देने आया हूँ।
सो गयी जो आत्माये उन्हें जगाने आया हूँ
लग गयी जो जंग उन्हें चमकाने आया हूँ।
भूल गए जो जीवन का मूल मंत्र और अर्थ
उन्हें जीवन का अर्थ समझने आया हूँ।
-Mait
शनिवार, 23 नवंबर 2019
आँखों का भ्रम था
या सामने स्वप्न था
जो हुआ दुखद था
दुःख यही सच था।
सोच ना पाया कुछ था
थोड़ा स्तब्ध - शून्य था
स्वेद से भीगा रक्त था
इस जग से विरक्त था।
जब सम्भला तो पाया
ना हाथ कुछ भी आया
मुश्किलें जिन्हे मैं माना
थी वो सिर्फ मेरी छाया।
दिखा दिया अंतर को
था क्या सदा सत्य वो
हल्का भी न हुआ रो
मन जो भारी तब वो
अब सोच हो रही खत्म
ख़ुशी को खा रहे गम
हठ जो किया खुद पर
पाकर उस लक्ष्य तत्पर
बुधवार, 6 नवंबर 2019
सिर्फ
ना हार में न जीत में
ना ही मैं तकदीर में
न प्रश्न में ना हल में
जड़ में न हलचल में
ना मौन में न कोलाहल में
न दिन में न अँधेरी रात में
ना वृहदता में न सूक्ष्मता में
न कृतज्ञता में न कृतघ्नता में।
ना दूर मैं न साथ मैं
न राग में न त्याग में
ना योग में न भोग में
किंचित नहीं सहयोग में।
हर पल बस एक राह हूँ
जो चले तो उपहार हूँ
जो न चले तो ख्वाब हूँ
पर खुदा भी मैं इंसान हूँ।
रविवार, 27 अक्टूबर 2019
दीपक
फिर चाहे वे इस संसार में हो या न हो इस बे-फर्की से
कुछ दीप मन में भी जलने चाहिए
सिर्फ घर बाहर जलाने से क्या होगा।
कुछ उजाला बुद्धि विवेक का भी हो
सिर्फ प्रकाश के छलावे से क्या होगा।
थोड़ा तो मंथन खुद के कर्म का भी हो
सिर्फ दुसरो को राय देने से क्या होगा।
अमीरी तो उस भिखारी की मुस्कान में देखो
चिंतित राजा बन शमशान पहुंचने से क्या होगा।
एक दिया इस दीपावली मन में जला कर देखो
शायद सारा संसार ही कल तुमसे जगमग होगा।।
बुधवार, 23 अक्टूबर 2019
बहती है लगातार
सांसो को जीवन बनाये है
कुछ तो खास है इनमे
जो चलती है लगातार।
कभी बन ठण्ड में शीतलहर
तो बन कभी लू का कहर
कभी ले आती चक्रवात तो
कभी देती सुगंध बरसात की।
न थकती न रूकती
न करती भेदभाव
ये हवा है कुदरती
यही इसका स्वभाव।
रविवार, 18 अगस्त 2019
अभी बाकी है
कुछ तो जागना बाकी है
कुछ तो भीगना बाकी है
कुछ बरसात अभी बाकी है।
सूरज की रोशनी में भी
कुछ किरणों की कमी है
चाँद की चांदनी में अभी
ठंडक थोड़ी बाकी है।
मन तो है भिड़ जाऊ अभी
पर थोड़ी तैयारी बाकी है
पहुंच तो जाऊंगा मंजिल तक
कुछ भटकना अभी बाकी है।
रविवार, 28 जुलाई 2019
आराम से सब ठीक हो जायेगा
है जो दर्द यूँ गायब हो जायेगा
बड़े से बड़ा कर्ज चुक जायेगा
दुखो का पहाड़ भी टूट जायेगा
थोड़ी सी रखो धैर्य के दर तशरीफ़
आराम से ख़त्म होगी हर तकलीफ
धैर्य ही बनेगा साथी हर लड़ाई में
रख खुद पे भरोसा हर कठिनाई में
चाँद भी मोहताज़ होता है सूरज का
पर तारे टिमटिमाते है खुद के दम पे
रख भरोसा खुद पे बन कर खुदा
बन खुद का रब बन सबसे जुदा
इन मुश्किलों की है क्या औकात
जब भरोसा खुद का खुद के साथ।
शनिवार, 20 जुलाई 2019
जिसको देखो
रो रहा है किस्मत पे
न चाह कर्म की
न राह धर्म की
अनंत मार्ग के मध्य
शून्य की रौशनी में
चल रहा अविचल
मनुष्यत्व है या छल
कुछ तो दिखाओ
तुम अपना बाहुबल
झुका के दिखाओ
ये सारे दुर्जनो को
उतरो गहराई में
खोजो तुम खुद को
जीतो खुद को
जीतो इस जग को
अगर लिया तुमने ठान
बन के रहोगे तुम महान
किस्मत बन जाओगे खुद के
कहलाओगे खुदा इस जग के।
बुधवार, 12 जून 2019
मुझे जीना आता हैं?
देख रिक्शेवाले का पसीना भुला मैं पानी पीना
जब मुस्कराहट जो देखी तपन के बाद भी
जो मिला पूरा पारिश्रमिक उसके हाथों मे
समझ न पाया किसे आता है सच में जीना।।
कुछ बात तो रह जाती है हममें हर बार
जो दिख नहीं पाती खुद कमियां हज़ार
देख लेते है कमियां दूसरो की हर बार
खुद के बड़े गुनाह भी लगते है फलदार
सको तो देखो सबकी खूबियां हजार।।
आता है जीना तो जी के दिखाओ यार
बोलकर लोग कर जाते है जन्नत भी पार
आज की तकलीफ है ये एक कारोबार
करते है तुलना हर एक से हर एक बार
एक छोटी नाव लगा देती समुन्दर पार।।
शनिवार, 8 जून 2019
प्यार
सूखापन ही तो है मौत का कारण
बेरुखी से ये सारे रिश्ते क्यो मरते
पानी जब ना मिले प्यार के चलते
रेगिस्तानों में कांटे ही क्यों खिलते।।
सिक्को की खनक परेशान भले करती
नोटों की परेशानी भीगने में ही है दिखती
रिश्ता हो सिक्को सा तो क्या है उलझन
जो हो शोरदार पर हर हाल काम तो आये।।
हैं भूल नही तो और क्या ये हर दिन की
कभी हैं जो तैयारियां रखि रखी रह जाती हैं
कुछ भूल होती हैं और कुछ ग़लतियाँ मेरी
हँसना हर कोई चाहता है हँसाना ना कोई।।
कुछ पंक्तियां लिख मैं ना पाया सिर्फ ये सोचकर
ना जाने क्या अर्थ निकालेंगे जब सुनेंगे कानभर
ना अर्थ मेरा वो जो हर कोई समझ पाया
न अर्थ मेरा वो जो कोई न समझ पाया
है ये जो अधूरापन वही तो है मेरा आईना
बस समझ सके जो कोई अलिखित पंक्तियों को
तो फिर क्या फर्क मुझमें और तुझमें रह जाएगा।।
शुक्रवार, 7 जून 2019
अनंत अमित अपरिमित प्रकृति
उसी इंसान ने प्रकृति को यू रौंदा
देती रही मौका हर बार उबरने का
इंसान ने किया हर एक बार धोखा।।
माना जिसे माँ उसी को लूटा
बदले में उसका दिल भी टूटा
करती रही वो तुम्हारा इंतेज़ार
करो मेहनत और बनो चौकीदार।।
आज बैठा हूं उस रेगिस्तान के पास
जहा कल तक मछलियां खेलती थी
खोज रहा हु उस सुराख को न जाने
जहा सूख गई ये पूरी समुन्दर और झीलें।।
प्रकृति की गोद मे मनुष्य की मनुष्यता है खिलती
कुछ यादें है कैसी जो कभी नहीं मिटती
प्रकृति तो हर इंसान से बराबर प्यार है करती
मानुष की क्षमता क्यो नही प्रकृति से मिलती।।
सोच कर ही खौफ और डर बढ़ जाता है कई हजार गुना
आज एक तालाब तो कल सारी
नदिया सूखने की कगार पर
हसरते तो बहुत थी इमारतों की
पर बिन पानी प्यास कैसे बुझ सके
खरीद लिया जमीन और कारोबार बार बार
पर ला न सका एक छोटा सा उपवन हरा भरा
जब जरूरत थी इनको बचाने की तब होड़ थी कागज जुटाने की
आज कागज तो जुट चुके लेकिन सब बेअसर हो गए इस जमाने मे।
सोमवार, 29 अप्रैल 2019
अंतर्मन
कीमत तो चीजों की होती है भावनाओ की नहीं
नापते तौलते तो लोग सांसो को भी है आजकल
वरना जिंदगी फ़क़ीर भी जीते है राजाओ की तरह
जरूरते मेरी तय करते आये है जो आज तक
सुन ले वो सभी जहाँ के अंतिम फलक तक
ना अब मैं सुनने वाला हूँ उनकी थोड़ी सी भी
पर चाहूंगा कुछ अधूरा ही सही सुने वो मेरी भी
शनिवार, 6 अप्रैल 2019
उपालम्भ
शिकायत तो है उस जिक्र से शिकायत तो है खुद से।
शिकवे की उम्र ही क्या होती अगर समझ थोड़ी बड़ी होती
पानी भी बहता है ढलान पे समतल में कोई नदी नहीं होती।
रात में उजाले के लिए सूरज से शिकायत नहीं की जाती
तकदीर में हो कांटे तो भी कोशिश कम नहीं की जाती।
हसरतें हैरान कर देती है कभी - कभी इस दुनिया में
जब किसी की मुस्कराहट भी बन जाती है शिकायते।
सुबह उठ चल देते आईने में खुद को देख कर एक बार
दिन भर ना रहता उनको खुद की शिकायतों से सरोकार।
न्यायालयों में ना होता रुके हुए मामलो का ये वृहद् अम्बार
अगर लोग शिकायत करते इंसान की बजाय कर्म विचार।
अब लगता है लोग शिकायत भी अपनी रूचि से करते है
मिले फायदा तो गन्दगी छोड़ सफाई की खिलाफत करते है।
हर वक़्त न्याय सुलभ हो ये जरुरी नहीं होता
कभी तो सुलझाओ खुद को आइना दिखाकर
वक़्त की आदत है लौटाना हिसाब देखकर
न करना कभी शिकायत हैसियत देखकर।
है रास्ता जाता कहा शिकायतों ये तो पता नहीं मुझको लेकिन
दुसरो के बारे में बोलने वालो को उँचाई छूते देखा नहीं मैंने।
किस्मत की शिकायत करने वाले अक्सर भूल जाते है
रास्ते की कीमत सिर्फ चलने वाले ही जानते है
लक्ष्य तक तो एक अनपढ़ भी पहुंच सकता है
जरुरत जोश, साहस और आत्मविश्वास की होती है।
है नहीं अंत इस शिकायतों की दुनिया का लेकिन
हम भी लड़ेंगे जब तक होगा संभव और मुमकिन।
कुछ दीये आँधिया भी रात जल कर बिताते है
और कुछ की तो पूरी शाम भी नहीं होती
तजुर्बा होना अच्छा होता है बढ़ने के लिए आगे
पर कोशिशों और हार का अपना मजा होता है
बैठे बैठे तो अक्सर कामगार काम करते है
दौड़कर नेतृत्व देने का काम शिकायत करती है।
एक शिकायत ये भी है की शिकायते क्यों है मुझसे
पिंजरे के पक्षी से शिकायते नहीं सहानुभूति होनी चाहिए
कल जो आजाद हुआ मैं अगर इस शिकायती दुनिया से
तो न होगी कोई गलतियाँ और न कोई उपालम्भ।
शुक्रवार, 15 मार्च 2019
बून्द एक
क्योकि लोग किताबों को कवर देख के पढ़ने लगे है।
खोल सकते नही जब सच सबके सामने
तो क्यों आ जाते है लोग झूठ के साथ मे।
है जरूरत कुछ किताबो को खोलने की
साथ उनकी नसीहतों को तौलने की।
जीत हो या हार हर बार उठ खड़ा लड़ने की
दिखाई दे ना मार्ग तो हर द्वार खोलने की।
बून्द को होता नही सरोकार अपनी ताकत का
जरूरत होती सिर्फ एक साथ हुकूमत का।
पत्थर भी कट जाते उन बूंदों के बहाव में
चाँद क्या है सूरज भी धूमिल हो जाता बादल की छाव में।
बस चले अगर आपके शौर्य का
तो मनुष्य क्या ईश्वर भी आपका।।
शुक्रवार, 30 नवंबर 2018
खुला आसमान
काम भी अब बोझ सा लगता हैं।
शाम अब रात सी नीरस सी लगती हैं,
क्योकि साथ भी अब दूरी से बदल गयी है ।
हिसाब माँगा था हमने जिनसे न कभी महलो ताजो का,
आज ले रहे वो हमसे रसीद भी उन कीलो और धागो का।
जिनके भरोसे थी टिकी समय की टिक टिक और बाँधी,
थी उनकी बाहर की दुनिया में झांकते खिड़कियों के परदे।
उजाला भी शर्माता था जिनके हुस्न के आगे,
आज अँधेरा भी गरजता है अपने गुरुर पे।
समय सभी का आता है ये तो हमने सुना था लेकिन,
पता न था आ जाता है समय किसी का जाने से पहले।
उठी है जो ये अंकुर अब इसे थोड़ा और रहने दो,
बने ये वृक्ष या तरुवर महान थोड़ा और जागने दो।
न रोको पौधो को जड़ो को फ़ैलाने से आज सम्मान,
दो इसे भी अनंत रिक्त जमीन और खुला आसमान।।
शुक्रवार, 16 नवंबर 2018
गुनाह
बच्चों के रंगीन सपने तोड़ती हैं।
टिमटिमाते तारो से दुश्मनी लेकर
धुप की उजियारी चादर ओढ़ती हैं।।
खुद को हर किसी की नजर से गिराया
न दिया हिसाब न दिया कोई बकाया।
ओढ़ते रहा गुनाह की चादर कुछ यूं
न नजर बची न नजरिया बचा पाया।।
शनिवार, 29 सितंबर 2018
आइना
दूसरा पन्ना पलटने की न हुई हिम्मत।
दिखा गया पहला पन्ना हमें वो आइना
देख जिसे शर्म लज्जा से हुआ सामना।।
भटकते तो वो है जिन्हे लक्ष्य का ख्याल नहीं होता
ज्ञान हो मूल तो लूटने से कोई कंगाल नहीं होता ।
रास्ता कितना भी लम्बा हो पहुंचेंगे हम हर मंजिल
क्योकि अब हमारी हर कोशिश में तुम हो शामिल ।।
पंक्तिया कुछ यू चुभी पल भर
गहरे जख्म बने कुछ मन पर।
सुबह जो शाम में हुई तब्दील
अक्षर भी पढ़ना हुआ मुश्किल।।
सितारे भी पड़ने लगे जो सूर्य पे भारी
क्योकि आई थी अब अँधेरे की बारी ।
शिकायत नहीं इस रात से मुझको शायद
आने वाली सुबह होगी और भी प्यारी।।
जब तक है मेरे साँस में साँस
न होगा कभी हार का अहसास।
जहां तक चलेगी धड़कन हमारी
वहां तक रहेगी मेरी उम्मीदवारी।।
शुक्रवार, 14 सितंबर 2018
नींद
रात के प्यारे सपनो में मुस्कुराती।।
होती जब सुबह तो साफ़ होती तस्वीर।
बीते दिन से पलट जाती पूरी तकदीर।।
होती साथ नयी हिम्मत और ताक़त ।
कोमल होते कच्चे फल जो थे सख्त।।
नींद की आदत है सपनो में नयी दुनिया दिखाना।
ये प्रण हमारा सपने को साकार करके ही दिखाना।।
शुक्रवार, 7 सितंबर 2018
रात
बुझ न सके आग तो उसे बे आग नहीं कहते।
अँधेरे में न हो उजाला तो हर चीज काली नहीं हो जाती
उबलते पानी में कभी अपनी परछाई देखी नहीं जाती।।
होती सदा अंत कष्ट की
राह पहुँचती ध्येय पे।
चोटिल घावों से बढ़ साहस
लक्ष्य मिले सब हिम्मत से।।
गुरुवार, 6 सितंबर 2018
किताब
न तुम्हारी सुनी गयी।
न बयां हो सकी
न दफ़न हो सकी।।
सूखे में थी बरसात
अकेलेपन में दी साथ।
अँधेरे में बनी चिराग
ये मेरी किताब।।
बुधवार, 22 अगस्त 2018
सूर्यास्त
है सूर्यास्त जो होने वाली है
शाम भी अब ढलने वाली है।
लोग थक चुके अब काम कर कर
आराम की चांदनी फैलेगी हर घर।
सूर्य भी जा चुका अब घर अपने
बच्चे भी खेलने लगे खिलौने।
सुबह से जो निकली वो किरण
अब नींद की बनेगी विकिरण।
लिखती सदा ये एक चिर कथा अनंत
सूर्यास्त तो है केवल एक पृष्ठ का अंत।
समझ चुके पक्षी की होने वाली है रात
आते होंगे माँ बाप आज के दाने के साथ।
होगी फिर सूर्योदय एक नई शुरुआत
हम होंगे संग होगी हमारी मुलाकात।
मंगलवार, 21 अगस्त 2018
अपराध
किसी ने प्यार को ठुकराया किसी ने प्यार करने वाले को
किसी ने रोते को हसाया किसी ने हॅसते दिया रुला
दुनिया जन्नत होती अगर न होता कोई गिला शिकवा
तबियत तो तभी गयी थी हो ख़राब
जब साथ देने वाले हुए थे खिलाफ
यूँ तो जापान फिर भी जीत जाता
दो परमाणु बम भी झेल जाता
अगर लोग ना होते खुद के खिलाफ
तो चीन क्या अमेरिका भी जीत जाता जापान
इतिहास है गवाह की लोगो ने दिखाया है
जब नहीं जरुरत हर नूर को भुलाया है
चलते थे सीना तान के हम भी लेकिन
खंजर जो पीठ पे खा लगे देखने पीछे
सूरज और प्रकृति भी दुखी है मनुष्य से
मौसम क साथ बदलते है जो रिश्ते इनसे
आज कल तो सजा ऐ जुर्म यु बेबसी में होती है
जुर्म अगर संगीन हो तो सजा कठोर होती है
अपराध बोध के बिना आरोपी अपराधी नहीं होता
हर आरोपी हर बार सजा का हक़दार नहीं होता
शनिवार, 18 अगस्त 2018
गीली मिट्टी
मैं तो डरा अनंत से ही
हारा तो मैं कभी नही
जीत भी तो मिली नही
सुनु रास्तो की या खुद
रास्ता ही ना बन जाऊ
बन उजाला दुसरो को
सच की ये राह दिखाऊ
सांस का तो धोखा है
जिंदगी तो तोहफा है
न जाने कब किस घड़ी
ये तोहफा भी छिन जाए
दिन के उजाले में
वो रात ना आ जाये
जब सब रोये और
हम ही सो जाएं
गुरुवार, 16 अगस्त 2018
अटल...................कवि और लेखक कभी मरते नहीं................वो अटल अमर और अजेय है
जीतना था जग खुद को जीतने चला हूँ
हो शाम या रात न करूँगा तनिक आराम मैं।
न होगी कोई रुकावट न अल्पविराम तय
है साँझ ऐसी तो न जाने सुबह कैसी होगी
जब साथ नहीं अटल तो जीत कैसे होगी।।
राह मेरी मुश्किल पर हार न मेरी होगी
है अगर समस्या तो समाधान भी होगी
फिर उठूंगा गिरकर तेज़ धार मेरी होगी ।
है अटल संग मेरे बुनियाद मेरी बनके
हर रात मेरी होगी हर प्रभात मेरी होंगी
हर राह तेरी होंगी पर मंजिल मेरी होंगी।।
मंगलवार, 14 अगस्त 2018
शुभ स्वतंत्रता दिवस(७२)
भारतीय स्वतंत्रता दिवस
5 - प्रतिज्ञा करे की
एक दिन की देशभक्ति की जगह
आज से हम
१. रोज १० मिनट देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों और इतिहास को याद करेंगे जिससे हम अपने भविष्य को सुमार्ग प्रदान कर सके। हर उस व्यक्ति को उत्साहित करेंगे जो अंजुमन में कोई सकारात्मक पहलू रखे फिर चाहे वो कितना भी मुश्किल क्यों न हो।
२. क्योकि देश हमसे है और देश से हम तो प्रतिदिन ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे हमे या देश को कोई नुकसान हो। सदा देश के लिए स्वयं और दुसरो के समर्पण का इस्तकबाल करेंगे।
३. भारत की संस्कृति और विश्व हिंदुत्व की रक्षा के लिए अगर किसी मार्ग पे धर्म-पंथ या संप्रदाय भी आहत हो तो भी अपना मार्ग प्रशस्त करेंगे, कभी भी जाति धर्म या समुदाय के नाम पे लड़ने वालो को कोई तवज्जो नहीं देंगे।
४. "अहिंसा परमो धर्म:" पे चलते हुए जहाँ तक संभव हो हिंसा से दूर रहेंगे, शाकाहार ही इस क्षेत्र की उत्तम भोज्य है, अतः जिन क्षेत्रो में पर्याप्त संसाधन हो वहाँ पूर्ण शाकाहार का पालन करेंगे जिससे देश के संसाधनों का उचित विकास हो सके।
5. प्रति दिन अपने निर्धारित कार्य के अलावा हम एक या कुछ ऐसे कार्य करेंगे या सीखेंगे जिससे न सिर्फ हमारा कौशल विकसित हो बल्कि साथ ही साथ देश के उन्नति के लिए भी प्रभावी हो।
इतिहास
हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। 15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोगों ने काफी हद तक अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया। स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया, जिसमें भारत और पाकिस्तान का उदय हुआ। विभाजन के बाद दोनों देशों में हिंसक दंगे भड़क गए और सांप्रदायिक हिंसा की अनेक घटनाएं हुईं। विभाजन के कारण मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या तकरीबन 1.45 करोड़ थी। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।इस दिन को झंडा फहराने के समारोह, परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ पूरे भारत में मनाया जाता है। भारतीय इस दिन अपनी पोशाक, सामान, घरों और वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित कर इस उत्सव को मनाते हैं और परिवार व दोस्तों के साथ देशभक्ति फिल्में देखते हैं, देशभक्ति के गीत सुनते हैं।
साभार(विकिपीडिया)
-Mait
साहस और परिश्रम
रविवार, 12 अगस्त 2018
84 कठिनाइयाँ - समाधान तथ्य
शनिवार, 11 अगस्त 2018
कहानी
जीत की कहानी, हर हार लिखती है।
आसमान की कहानी, सितारे लिखते है
सूरज की कहानी, हर सुबह लिखती है।
अचरज की कहानी, धैर्य लिखती है
फ़तह की कहानी, कोशिशे लिखती है।
फूलो की कहानी,कलियों ने लिखी है
जंग की कहानी, गलतफहमियों ने।
विकास की कहानी, नवोन्मेष ने लिखी है
चरित्र कि कहानी, संस्कारो ने लिखी है।
खुदा की कहानी भी मैंने लिखी है
इंसान की कहानी भी मैंने लिखी है
हर दिन की कहानी भी मैंने लिखी है
हर रात की कहानी भी मैंने लिखी है
कुछ कहानी लोगो ने सुनी है
कुछ कहानी लोगो ने बनाई है।
जब जब बात कहानी पे आयी है
याद सिर्फ मुझको मेरी ही आयी है।
कहानी तो कहानी है
जो सदियों पुरानी है।
झूठ संग पानी है
सच की ये रानी है।।
आज सुनो
आज सुनो
कर्म की आग में तुम हो
धर्म के राग में तुम हो।
जीव के संहार में तुम हो।।
सत्य की राह पे मैं हूँ
धर्म की चाह में मैं हूँ।
खुद के इंतज़ार में मैं हूँ ।।
मैं भोर के पहले की रात्रि हूँ।
मैं दिन बन जहाँ में छाऊँगा।।
तुम थक चुकी अब इस पहर
मैं थकावट सब की मिटाऊंगा।
न कोई गांव न बचा कोई शहर
नयी सुबह जब होगी इस पहर ।।
तुम अंत हो कार्य दिवस का
मैं आरम्भ हु इस जग का।
उजाले से होता ये प्रयास।।
उठा वही जो रुका नहीं।
जीता वही जो हारा कही ।।
फिर कह लेना सारी रात।
न हो पायेगी कोई मुलाकात।।।।
शुक्रवार, 10 अगस्त 2018
सारे जहाँ से अच्छा
समानता
समानता
मंगलवार, 7 अगस्त 2018
जब तक
सोमवार, 6 अगस्त 2018
संघर्ष
संघर्ष
असफलता के समुद्र में
मिलता है गहराई में।
जीत में न हार में
न कभी एक बार में
ये कोशिशों के सैलाब में।।
संघर्ष एक अस्त्र है
अभिलाषा जब शिखर की
तो चलता क्यों रेत पे।
नदियाँ न मुड़ी कभी
तो मुड़ता क्यों घडी घडी
सीधा चल उस ध्येय पे।।
संघर्ष एक चाह है
सोच ली जो जीत की
तो नजरे क्यों रीत पे।
जग हँसा हर हार पे
जो जीत की नींव बनी
तू खुद का मन जीत ले ।।
संघर्ष एक राह है
पथिक की ये चाह है
रुके न किसी दहलीज पे।
बन सूरज तू गगन का
रोशन कर पूरा समां
संघर्ष की यही रीत है।।
संघर्ष से रख तू दोस्ती
ये भोर की काली रात है।
-Mait
विकास
"विकास का लक्ष्य"
अगर बार बार घरो के गिरने के कारण गहरी नींव का विकास न होता तो आज गगनचुम्बी इमारते सिर्फ कहानियो में होती जमीन पे नही.
360° घूम कर किसी को भी धोखा हो सकता है कि वो तो हिला भी नही आप धीरे धीरे पूरा चक्कर काट चुके होते है।
जब कोई व्यक्ति अपने मार्ग पे आगे बढ़ता है लेकिन किसी कारण अगर लक्ष्य तक पहुंच नहीं पाता तो उसको ये वहम होना बेहद आम बात है की उसने कुछ नहीं किया पर कई बार ये असफल प्रयास लक्ष्य तक पहुंच चुके तथाकथित सफल लोगो के प्रयास से उत्कृष्ट और प्रशंसनीय हो सकता है.
विश्वास खुद पे होना चाहिए जब लोग प्लूटो जैसे मेहनती प्लेनेट को जो सूर्य का धरती से सैकड़ो गुना ज्यादा बड़ा पथ तय करता है उस को सिर्फ एक भौतिकी की काट के कारण ग्रहो तक की श्रेणी से अलग कर सकते है तो एक व्यक्ति क्या है, लेकिन क्या इससे उस प्लूटो के किसी भी 1 सेकंड के चक्कर लगाने में परिवर्तन हुआ या होगा नामुमकिन है क्योंकि उसे उसका लक्ष्य पता है।
लक्ष्य रहित व्यक्ति, वस्तु और समय हमेशा शून्य में बदल जाते है।
आपका समय शुभ हो।
राह
भटकाव है या जो फितरत है तुम्हारी जो तुम अपने रास्ते अलग कर जाओगे दर्द हो या तकलीफ या हो कोई बीमारी देख लेना एक दिन यूँ बहुत पछ्ताओगे राह...
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कुछ दीपक रूपी व्यक्तित्व हमें हमेशा मार्ग दिखाते है फिर चाहे वे इस संसार में हो या न हो इस बे-फर्की से कुछ दीप मन में भी जलने चाहिए ...
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जब तक अंकुर न बनता वृक्ष तब तक पोषण न होता उसका जब तक। अभिलाषा नहीं ये प्रण है मेरा साथ न छूटे सुख से तेरा ।। रहे उजाला हर...
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भारतीय स्वतंत्रता दिवस 5 - प्रतिज्ञा करे की एक दिन की देशभक्ति की जगह आज से हम १. रोज १० मिनट देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों और इतिह...